परीक्षित जन्म और श्राप की कथा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

 परीक्षित जन्म और श्राप की कथा भागवत पुराण के प्रथम स्कंध में वर्णित है। यह कथा राजा परीक्षित के जन्म, उनकी महानता, और उनके श्राप के कारण भागवत कथा का श्रवण करने की घटना का वर्णन करती है।



---


परीक्षित का जन्म:


पृष्ठभूमि:


परीक्षित, पांडवों के वंशज और अर्जुन के पौत्र थे।


उनका जन्म महाभारत युद्ध के बाद हुआ।


जब अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र चलाकर उत्तरा के गर्भ में स्थित परीक्षित को नष्ट करने का प्रयास किया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनके जीवन की रक्षा की।



भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गर्भ की रक्षा:


अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र चलाया।


उत्तरा ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की:


> पाहि पाहि महायोगिन् देवदेव जगत्पते।

नान्यं त्वदभयं पश्ये यत्र मृत्युः परस्परम्॥

अर्थ: "हे महायोगी श्रीकृष्ण, हे देवाधिदेव, हे जगत्पति! मेरी रक्षा करें। इस संसार में आपसे बढ़कर कोई रक्षक नहीं है।"




श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से ब्रह्मास्त्र को निष्क्रिय कर परीक्षित की रक्षा की।



भगवान का दर्शन:


गर्भ में ही परीक्षित ने भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य रूप देखा।


इसलिए उनका नाम "परीक्षित" पड़ा, जिसका अर्थ है "जो जन्म के बाद भी हर जगह भगवान को देखने का प्रयास करे।"




---


परीक्षित का राजकाज और गुण:


परीक्षित को उनकी नीतियों, धर्म पालन, और न्यायप्रियता के लिए जाना जाता था।


वे धर्मराज युधिष्ठिर के आदर्शों का पालन करते हुए प्रजा का पालन करते थे।


वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे और हर परिस्थिति में धर्म का पालन करते थे।




---


परीक्षित को श्राप:


घटना का विवरण:


एक दिन राजा परीक्षित शिकार के लिए वन में गए।


वहां उन्होंने तपस्या में लीन शमीक ऋषि को देखा।


प्यास और थकान से व्याकुल परीक्षित ने ऋषि से पानी मांगा, लेकिन ऋषि मौन व्रत में लीन थे और उत्तर नहीं दिया।


क्रोधित होकर परीक्षित ने एक मरे हुए सर्प को उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया।



शमीक ऋषि के पुत्र का श्राप:


जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को इस घटना का पता चला, तो उन्होंने क्रोधित होकर परीक्षित को श्राप दिया:


> सप्तमे दिवसे विष्णो तक्षकस्त्वां जिघांसति।

मृत्युं प्राप्तो भविष्यसि, धर्मं त्वं त्यज्य नाथवत्॥

अर्थ: "सातवें दिन तक्षक नाग तुम्हें डसेगा और तुम्हारी मृत्यु होगी।"





शमीक ऋषि की शिक्षा:


शमीक ऋषि को जब इस घटना का पता चला, तो उन्होंने अपने पुत्र को समझाया कि राजा परीक्षित धर्मात्मा और भगवान विष्णु के भक्त हैं।


उन्होंने कहा कि क्रोध के वशीभूत होकर किसी को श्राप देना धर्म के विरुद्ध है।




---


परीक्षित का प्रायश्चित और भागवत कथा का श्रवण:


श्राप सुनने के बाद परीक्षित ने क्रोध या प्रतिशोध का मार्ग नहीं अपनाया।


उन्होंने अपना राजपाट त्यागकर गंगा तट पर तपस्या करने का निर्णय लिया।


उन्होंने सोचा:


> "मृत्यु निश्चित है, लेकिन भगवान के चरणों की भक्ति से मैं मोक्ष प्राप्त कर सकता हूं।"




गंगा तट पर उन्होंने शुकदेव जी से सात दिनों तक भागवत पुराण का श्रवण किया।




---


भागवत कथा का आरंभ:


परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रश्न किया:


> "हे महात्मन, मृत्यु के समय मनुष्य को क्या करना चाहिए? कौन-सी कथा सुननी चाहिए, और भगवान को प्राप्त करने का सर्वोत्तम मार्ग क्या है?"




शुकदेव जी ने भागवत पुराण सुनाकर उन्हें भगवत भक्ति, धर्म, और मोक्ष का मार्ग बताया।




---


शिक्षाएँ:


1. धैर्य और भक्ति: राजा परीक्षित ने मृत्यु के भय को भक्ति और आत्मज्ञान से दूर किया।



2. मृत्यु का स्मरण: मृत्यु अटल है, लेकिन भगवान का स्मरण इसे मोक्ष का मार्ग बना सकता है।



3. क्रोध का त्याग: ऋषि ने सिखाया कि क्रोध के वशीभूत होकर धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए।



4. भागवत कथा का महत्व: जीवन के अंतिम क्षणों में भगवान की कथा सुनने से आत्मा का उद्धार होता है।





---


प्रमुख श्लोक:


1. श्रीकृष्ण द्वारा गर्भ रक्षा:


> पाहि पाहि महायोगिन् देवदेव जगत्पते।

नान्यं त्वदभयं पश्ये यत्र मृत्युः परस्परम्॥





2. श्रृंगी का श्राप:


> सप्तमे दिवसे विष्णो तक्षकस्त्वां जिघांसति।

मृत्युं प्राप्तो भविष्यसि, धर्मं त्वं त्यज्य नाथवत्॥





3. परीक्षित का प्रश्न:


> तस्माद् भारत सर्वात्मन् भगवान् ईश्वरो हरिः।

श्रोतव्यः कीर्तितव्यश्च स्मर्तव्यश्चेच्छताभयम्॥





4. शुकदेव जी का उत्तर:


> नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया।

भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी॥







---


सारांश:


राजा परीक्षित की कथा यह सिखाती है कि धर्म और भक्ति का मार्ग ही जीवन और मृत्यु दोनों में कल्याणकारी है। भागवत कथा के श्रवण से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top