राजा प्राचीनबर्हि की कथा DALL·E 2024-11-21 20.40.37 - A detailed artistic depiction of King Pracheenbarhi from Indian mythology, deeply engrossed in
A detailed artistic depiction of King Pracheenbarhi from Indian mythology, deeply engrossed in performing grand yajnas (sacrificial rituals) with elab |
राजा प्राचीनबर्हि की कथा भागवत पुराण के चतुर्थ स्कंध के अध्याय 25-29 में विस्तार से वर्णित है। यह कथा एक रूपक कथा है, जो आत्मा, शरीर और संसार के संबंध को समझाने के लिए दी गई है। राजा प्राचीनबर्हि को नारद मुनि ने ज्ञानोपदेश दिया और उन्हें भक्ति व आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
राजा प्राचीनबर्हि का वर्णन
राजा प्राचीनबर्हि अपने यज्ञ और कर्मकांड में अत्यधिक लिप्त थे। वे अपने पापों का प्रायश्चित्त करने के लिए यज्ञ करते थे, लेकिन उनकी आत्मा परमात्मा से दूर थी। नारद मुनि ने उन्हें समझाया कि केवल यज्ञ और कर्मकांड से मोक्ष संभव नहीं है।
श्लोक
ततः स वै प्राचिनबर्हिषं नृपं
बृहत्तमायान्तरात्मने हरिः।
धियो दृढं योग उपासितः पुनः
स्वयं व्यदध्यात् कथया मृगद्विजम्।।
(भागवत पुराण 4.25.1)
भावार्थ:
नारद मुनि ने राजा प्राचीनबर्हि को जीवन का सच्चा मार्ग दिखाने के लिए ज्ञान की कथा सुनाई, जिससे वे आत्म-साक्षात्कार कर सकें।
पुरंजन की रूपक कथा
राजा प्राचीनबर्हि को उनकी स्थिति समझाने के लिए नारद मुनि ने पुरंजन नामक एक राजा की कथा सुनाई। यह कथा प्रतीकात्मक है, जिसमें पुरंजन जीवात्मा का प्रतीक है, उसका महल शरीर का, और उसकी पत्नी इंद्रियों की लालसा का प्रतीक है।
श्लोक
स तु तं मनसा दृष्ट्वा विदूरादभ्युपाययौ।
पुरं हि तस्यां स नार्यो नाम्ना पुरंजनः स्वयम्।।
(भागवत पुराण 4.25.12)
भावार्थ:
पुरंजन ने एक सुंदर नगरी (शरीर) देखी और उसमें प्रवेश कर लिया। यह शरीर में आत्मा के प्रवेश का प्रतीक है।
पुरंजन और उसकी पत्नी
पुरंजन ने अपनी पत्नी के मोह में पड़कर अपना सारा समय भोग-विलास में बिता दिया। इस रूपक कथा के माध्यम से नारद मुनि यह सिखाते हैं कि आत्मा इंद्रियों के वश में होकर संसार के सुख-दुःख में फंस जाती है।
श्लोक
संपरिष्वज्य बाहुभ्यां रेभे च हृदि तत्क्षणम्।
नार्यं प्राप्य धृतां कान्तां मोहं तद्वद्गजस्त्रिया।।
(भागवत पुराण 4.25.42)
भावार्थ:
पुरंजन अपनी पत्नी के प्रेम में इतना अंधा हो गया कि वह अपने आत्मिक कर्तव्य को भूल गया, जैसे एक हाथी किसी जाल में फंस जाता है।
पुरंजन का पश्चाताप
पुरंजन के जीवन के अंत में, जब उसकी पत्नी और परिवार ने उसे छोड़ दिया, तो उसे अपनी मूर्खता का एहसास हुआ। उसे ज्ञान हुआ कि वह सांसारिक मोह में फंसकर अपनी आत्मा का सच्चा उद्देश्य भूल गया।
श्लोक
अहं ममेति मूढस्य तदात्मन्यगृहेष्वसत्।
स्वेषु संकथ्यमानस्य म्रियतस्तस्य कर्मभिः।।
(भागवत पुराण 4.28.23)
भावार्थ:
पुरंजन ने अपने अहंकार और 'मैं' और 'मेरा' के मोह में फंसकर अपना जीवन व्यर्थ कर दिया। मृत्यु के समय उसे अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ा।
नारद मुनि का उपदेश
नारद मुनि ने राजा प्राचीनबर्हि को बताया कि पुरंजन का जीवन उनके ही जीवन का प्रतिबिंब है। नारद ने उन्हें आत्म-साक्षात्कार और भक्ति का मार्ग दिखाया।
श्लोक
एवं च मर्त्यः स्वयमात्ममायया
गृहेषु देहेष्वसितेष्वसज्जति।
तान्यर्पितं तस्य कथं भवेद्विपः
सदा स्मरेद्यश्च हरिं पुरःस्थितम्।।
(भागवत पुराण 4.29.36)
भावार्थ:
नारद मुनि ने कहा कि जो व्यक्ति अपनी आत्मा को परमात्मा में समर्पित करता है और भगवान को सदा स्मरण करता है, वही संसार के बंधनों से मुक्त हो सकता है।
कथा का संदेश
राजा प्राचीनबर्हि की कथा यह सिखाती है कि केवल यज्ञ और कर्मकांड से मोक्ष संभव नहीं है। आत्म-साक्षात्कार, भक्ति, और संसार के मोह को त्यागकर ही सच्ची शांति और मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।