भागवत सप्ताह के चतुर्थ दिन की कथा( चार घंटे में )

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत सप्ताह के चतुर्थ दिन की कथा का सार निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है। इसे चार घंटे में पढ़ने के लिए विभाजित किया जा सकता है।

भागवत सप्ताह के चतुर्थ दिन में अष्टम स्कंध और नवम स्कंध का वर्णन किया जा सकता है। इन स्कंधों की कथा में भगवान की महिमा, भक्ति, और धर्म का विस्तार से वर्णन है। इसे चार घंटे के समय में पढ़ने के लिए विभाजित किया गया है।



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पहला घंटा: अष्टम स्कंध का प्रारंभ


1. समुद्र मंथन की कथा:


देवताओं और दानवों के बीच अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन।


मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया।


मंथन से उत्पन्न चौदह रत्न, जैसे लक्ष्मी देवी, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष आदि।


भगवान विष्णु का मोहिनी रूप में अवतार लेकर अमृत को देवताओं में वितरित करना।


संदेश: जीवन में संघर्षों से ही अमृततुल्य फल प्राप्त होते हैं।



2. वामन अवतार की कथा:


दैत्यराज बलि द्वारा तीन लोकों पर विजय।


भगवान विष्णु का वामन रूप में अवतार।


वामन का तीन पग भूमि का दान मांगना और बलि की भक्ति देखकर उन्हें पाताल लोक का राजा बनाना।


संदेश: बलिदान, विनम्रता और भक्ति से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।




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दूसरा घंटा: अष्टम स्कंध का समापन


1. गजेंद्र मोक्ष की कथा:


गजेंद्र नामक हाथी का मगर से संघर्ष और श्रीहरि की शरणागति।


भगवान विष्णु का गजेंद्र की पुकार सुनकर उसकी रक्षा करना।


संदेश: संकट के समय में सच्ची भक्ति और समर्पण से भगवान सहायता करते हैं।



2. अन्य कथाएं:


भगवान विष्णु का प्रहलाद के वंशजों और अन्य भक्तों की रक्षा करना।


देवताओं और दानवों के बीच संतुलन बनाए रखना।




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तीसरा घंटा: नवम स्कंध का प्रारंभ


1. राजा सगर और कपिल मुनि की कथा:


राजा सगर द्वारा अश्वमेध यज्ञ का आयोजन।


उनके पुत्रों द्वारा कपिल मुनि का अपमान और उनके श्राप से पत्थर बनना।


गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने का प्रयास।


संदेश: तप, भक्ति और परिश्रम से कठिन कार्य भी संभव होते हैं।



2. राजा दिलीप और भागीरथ की कथा:


भागीरथ द्वारा गंगा को धरती पर लाने का तप और प्रयास।


गंगा का पतित पावनी रूप में धरती पर अवतरण।


संदेश: दृढ़ संकल्प और भक्ति से असंभव कार्य भी संभव होते हैं।




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चौथा घंटा: नवम स्कंध का समापन


1. राजा अम्बरीष की कथा:


राजा अम्बरीष की एकादशी व्रत कथा।


दुर्वासा ऋषि का क्रोध और सुदर्शन चक्र से उनकी रक्षा।


संदेश: ईश्वर के प्रति अटूट भक्ति से सभी संकटों का निवारण होता है।



2. अन्य राजाओं की कथाएं:


इक्ष्वाकु वंश के राजाओं का वर्णन।


भगवान राम के पूर्वजों की महानता और धर्मपरायणता।



3. नवम स्कंध का निष्कर्ष:


भक्ति और धर्म का महत्व।


जीवन में समर्पण और निष्ठा का फल।


कृष्ण जन्म की कथा


भागवत पुराण में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा बड़ी भावनात्मक और प्रेरणादायक है। यह कथा धर्म की स्थापना, अधर्म का नाश और भक्तों की रक्षा के उद्देश्य को स्पष्ट करती है।



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भूमिका: कंस का अत्याचार और पृथ्वी का विलाप


पृथ्वी पर अत्याचार और अधर्म बढ़ गया था। राक्षसों ने धर्म का नाश करना शुरू कर दिया था।


पृथ्वी ने गाय का रूप धारण करके भगवान विष्णु के पास प्रार्थना की।


भगवान विष्णु ने देवताओं को आश्वस्त किया कि वे जल्द ही पृथ्वी पर अवतार लेकर अधर्म का नाश करेंगे।




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कंस और देवकी-वसुदेव का विवाह


कंस अपनी बहन देवकी का विवाह वसुदेव के साथ करता है।


विवाह के समय एक आकाशवाणी होती है: "हे कंस! देवकी का आठवां पुत्र तुम्हारा वध करेगा।"


यह सुनकर कंस क्रोधित हो जाता है और देवकी को मारने का प्रयास करता है।


वसुदेव कंस से प्रार्थना करते हैं और वचन देते हैं कि वे अपने सभी संतानें कंस को सौंप देंगे।


कंस देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल देता है।




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पहले छह पुत्रों की हत्या


कंस ने देवकी और वसुदेव के पहले छह पुत्रों को जन्म के तुरंत बाद मार दिया।


देवकी और वसुदेव ने इस क्रूरता को सहा और भगवान पर विश्वास बनाए रखा।




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बलराम का जन्म (सातवीं संतान)


सातवीं संतान भगवान बलराम थे, जिन्हें भगवान की योगमाया ने रोहिणी माता के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया।


कंस को लगा कि देवकी का सातवां गर्भ नष्ट हो गया है।




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श्रीकृष्ण का दिव्य जन्म


भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया।


जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो कारागार में दिव्य प्रकाश फैल गया।


वसुदेव-देवकी ने श्रीकृष्ण के बाल रूप में दर्शन किए।


भगवान ने उन्हें अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन देकर यह बताया कि वे अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए अवतरित हुए हैं।


श्रीकृष्ण ने कहा: "मुझे गोकुल में नंद बाबा और यशोदा माता के पास ले जाओ।"


इसके बाद भगवान ने अपने बाल रूप में आकर माता-पिता को आश्वस्त किया।




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वसुदेव का गोकुल गमन


वसुदेव ने श्रीकृष्ण को एक टोकरी में रखा और कारागार के दरवाजे स्वतः खुल गए।


जेल के पहरेदार गहरी निद्रा में थे।


वसुदेव जब यमुना नदी पार करने लगे, तो नदी का जल श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श से कम हो गया।


शेषनाग ने अपने फन से श्रीकृष्ण की रक्षा की।


गोकुल पहुंचकर वसुदेव ने श्रीकृष्ण को यशोदा माता के पास सुला दिया और उनके स्थान पर योगमाया देवी को ले आए।




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कंस की विफलता


जब कंस ने नवजात शिशु को मारने का प्रयास किया, तो वह बच्ची (योगमाया) ने आकाश में प्रकट होकर कहा:

"हे कंस! तुम्हारा वध करने वाला गोकुल में जन्म ले चुका है।"


यह सुनकर कंस भयभीत और चिंतित हो गया।




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गोकुल में आनंद


नंद बाबा और यशोदा माता ने बाल श्रीकृष्ण को गोकुल में पाकर आनंद मनाया।


पूरे गोकुल में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया गया।


ब्रजभूमि में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ।




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कथा का संदेश


1. अधर्म का अंत: कंस जैसे शक्तिशाली अधर्मी भी धर्म के आगे टिक नहीं सकते।



2. भक्ति और विश्वास: देवकी और वसुदेव की दृढ़ भक्ति और सहनशीलता ने भगवान को अवतरित होने के लिए प्रेरित किया।



3. ईश्वर की योजना: भगवान की लीलाओं के पीछे हमेशा धर्म की स्थापना और भक्तों की रक्षा का उद्देश्य होता है।


श्रीकृष्ण का जन्म हमें जीवन में धर्म, सत्य और विश्वास को बनाए रखने की प्रेरणा देता है।

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