श्री द्वारकाधीश धाम, द्वारका (गुजरात)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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द्वारिका धाम, द्वारिका गुजरात
द्वारिका धाम, द्वारिका गुजरात


समुद्र तल से ऊचाई -- 38 फ़ीट

निकटतम रेलवे स्टेशन -- द्वारका (2 किमी )

निर्माण पूर्ण -- 15वीं सदी (वर्तमान भवन)

निर्माता---- वज्रनाभ

द्वारका धाम की क्या विशेषता है?

  • चार धाम में से एक द्वारका धाम है
  • ध्वज को दिन में 5 बार से बदल दिया जाता है, लेकिन प्रतीक समान रहता है।
  • द्वारिका वह जगह है जहां भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक राक्षस को मार डाला।
  • कृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए, गोकुल में पले, पर राज उन्होने द्वारका में ही किया।
  • द्वारका भारत के पश्चिम में समुद्र के किनारे पर बसी है। आज से हजारों वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने इसे बसाया था।
  • यहीं बैठकर उन्होने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली। पांडवों को सहारा दिया।
  • कहते हैं असली द्वारका तो पानी में समा गई, लेकिन कृष्ण की इस भूमि को आज भी पूज्य माना जाता है। इसलिए द्वारका धाम में श्रीकृष्ण स्वरूप का पूजन किया जाता है।

चूना पत्थर से हुआ है मंदिर का निर्माण

  • इस प्राचीन व अद्भुत मंदिर का निर्माण चूना पत्थर से किया गया है, जो आज भी अपनी स्थिति में खड़ा हुआ है।
  • मान्यताओं के अनुसार, यहां जल का दान करने से पितरों को जल की प्राप्ति होती है और उनको मुक्ति भी मिलती है।
  • शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार द्वारकाधीश के दर्शन जरूर करने चाहिए।

द्वारका धाम की कथा

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार इन्होंने दिया था शाप

 भगवान कृष्ण और देवी रुक्मणी को यह शाप दुर्वासा ऋषि ने दिया था। जिसकी वजह से ना सिर्फ द्वारकाधीश के मंदिर में देवी रुक्मणी मूर्ती है बल्कि इस शाप की वजह से उन्हें 12 साल तक अलग रहना पड़ा।

अलग हिस्से में है मंदिर

 इसका प्रमाण है आज भी द्वारकाधीशजी के मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर रुक्मणीजी का मंदिर एक अलग हिस्से में बना हुआ है। 12 वीं सदी में बने देवी रुक्ममी के इस मंदिर में आने वाले सभी भक्तों को वह कथा सुनाई जाती है जिस भूल की वजह से श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी को अलग रहना पड़ा था।

दुर्वासा ऋषि ने रखी थी शर्त

 यदुवंशी दुर्वासा ऋषि को अपना कुलगुरु मानते थे। पौराणिक कथा अनुसार, भगवान कृष्ण और देवी रुक्मणी शादी के बाद दुर्वासा ऋषि के आश्रम पधारे। उन्होंने दुर्वासा ऋषि से महल जाकर भोजन और आशीर्वाद देने के लिए आमत्रित किया। जिसे ऋषिवर ने स्वीकार कर लिया लेकिन साथ में एक शर्त रख दी।

इस तरह किया रथ का इंतजाम

 दुर्वासा ऋषि ने कहा कि आप जिस रथ से आए हैं, मैं उस रथ में नहीं जाउंगा। मेरे लिए अलग रथ का इंतजाम किया जाए। भगवान कृष्ण ने उनकी शर्त को मान लिया। लेकिन समस्या थी कि उनके पास एक ही रथा था, ऐसे में भगवान ने रथ के दोनों घोड़ों को निकाल दिया और उनकी जगह स्वयं श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी रथ में जुत गए।

यहां हुई श्रीकृष्ण और रुक्मणी से भूल

 रथ खींचते-खींचते देवी रुक्मणी को प्यास लग गई। प्यास बुझाने के लिए श्रीकृष्ण ने जमीन पर पैर का अंगूठा मारा, जिससे गंगाजल निकलने लगा। दोनों युगल ने प्यास बुझा ली। लेकिन दुर्वासा ऋषि से जल की पेशकश नहीं की। जिससे दुर्वासा ऋषि को क्रोध आ गया।

12 साल तक अलग रहने का दिया शाप

 क्रोध में दुर्वासा ऋषि ने भगवान कृष्ण और देवी रुक्मणी को 12 साल तक अलग रहने का शाप दिया, साथ ही यह भी कहा कि जिस जगह गंगा प्रकट की है, वह स्थान बंजर हो जाएगा।

 ऐसे मिली शाप से मुक्ति

 देवी रुक्मणी ने शाप से मुक्ति के लिए भगवान विष्णु की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने रुक्मणीजी को शाप से मुक्त किया। दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण यहां जल का दान किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, यहां जल का दान करने से पितरों को जल की प्राप्ति होती है और उनको मुक्ति भी मिलती है।

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