आदि शंकराचार्य, जिन्हें शंकर भगवत्पाद के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय दर्शन, धर्म, और संस्कृति के महानतम विचारकों में से एक थे। उन्होंने भारतीय वैदि
आदि शंकराचार्य: अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक और भारतीय दर्शन के महान आचार्य
आदि शंकराचार्य, जिन्हें शंकर भगवत्पाद के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय दर्शन, धर्म, और संस्कृति के महानतम विचारकों में से एक थे। उन्होंने भारतीय वैदिक परंपरा को पुनर्जीवित किया और अद्वैत वेदांत का प्रवर्तन किया। उनका जीवन और कार्य भारतीय उपमहाद्वीप में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनर्जागरण का प्रतीक है।
आदि शंकराचार्य का परिचय
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जन्म और स्थान:
- शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में केरल के कालाडी नामक गाँव में हुआ था।
- उनके पिता का नाम शिवगुरु और माता का नाम आर्यांबा था। वे नंबूदिरी ब्राह्मण समुदाय से संबंधित थे।
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जन्मजात प्रतिभा:
- बाल्यावस्था से ही शंकर अत्यंत मेधावी और आध्यात्मिक थे। उन्होंने आठ वर्ष की आयु में वेदों का अध्ययन पूर्ण कर लिया था।
- कम आयु में ही उनके पिता का देहांत हो गया, और उन्होंने संन्यास लेने का संकल्प किया।
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दीक्षा और शिक्षा:
- शंकर ने अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद से नर्मदा नदी के तट पर दीक्षा प्राप्त की।
- उन्होंने भारतीय दर्शन, विशेषकर अद्वैत वेदांत, को पुनः स्थापित करने के लिए भारत भर में यात्राएँ कीं।
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मृत्यु:
- शंकराचार्य का जीवनकाल अल्प था; उन्होंने केवल 32 वर्ष की आयु में 820 ईस्वी में हिमालय में ब्रह्मलीन हो गए।
अद्वैत वेदांत का परिचय
अद्वैत वेदांत:
- "अद्वैत" का अर्थ है "द्वैत का अभाव" अर्थात् एकत्व। यह दर्शन यह कहता है कि आत्मा (जीव) और ब्रह्म (सत्य) अलग नहीं हैं, बल्कि एक ही हैं।
- शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत की व्याख्या उपनिषदों, भगवद्गीता, और ब्रह्मसूत्र पर आधारित की।
मुख्य सिद्धांत:
- ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या:
- ब्रह्म (सर्वोच्च वास्तविकता) ही सत्य है, और संसार (जगत) केवल माया (भ्रम) है।
- जीव और ब्रह्म की एकता:
- आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं। जीव आत्मा माया के कारण अलग प्रतीत होती है, लेकिन जब माया समाप्त होती है, तो जीव ब्रह्म में विलीन हो जाता है।
- मुक्ति का मार्ग:
- अद्वैत वेदांत के अनुसार, आत्मा का ब्रह्म से एकत्व का ज्ञान ही मोक्ष (मुक्ति) का मार्ग है।
शंकराचार्य की रचनाएँ
1. भाष्य (टीकाएँ):
- शंकराचार्य ने प्रमुख वैदिक ग्रंथों पर भाष्य (टीकाएँ) लिखी, जिनमें:
- ब्रह्मसूत्र भाष्य: अद्वैत वेदांत की आधिकारिक व्याख्या।
- उपनिषद भाष्य: 10 मुख्य उपनिषदों पर टिप्पणियाँ।
- भगवद्गीता भाष्य: गीता के अद्वैत दृष्टिकोण की व्याख्या।
2. स्तोत्र (भक्ति ग्रंथ):
- उन्होंने भक्ति और उपासना के लिए सुंदर स्तोत्रों की रचना की:
- सौंदर्य लहरी: देवी पार्वती की महिमा।
- भज गोविंदम्: भक्ति और ज्ञान का समन्वय।
- शिवानंद लहरी: भगवान शिव की उपासना।
3. प्रकरण ग्रंथ:
- अद्वैत वेदांत को सरल रूप में समझाने के लिए छोटी रचनाएँ:
- विवेकचूड़ामणि: आत्मज्ञान का मार्ग।
- आत्मबोध: आत्मा और ब्रह्म के ज्ञान का विवरण।
- उपदेश साहस्री: उपदेशात्मक शिक्षाएँ।
शंकराचार्य के कार्य
1. सनातन धर्म का पुनर्जागरण:
- शंकराचार्य ने वैदिक परंपरा को पुनः स्थापित किया, जो उस समय बौद्ध और जैन धर्म के प्रभाव में थी।
- उन्होंने धर्म और दर्शन को तर्क और शास्त्रार्थ के माध्यम से पुनर्जीवित किया।
2. चार मठों की स्थापना:
- उन्होंने भारत के चार दिशाओं में चार मठ स्थापित किए, जो अद्वैत वेदांत और वैदिक परंपरा के प्रचार-प्रसार के केंद्र बने:
- शृंगेरी मठ (दक्षिण भारत)
- द्वारका मठ (पश्चिम भारत)
- ज्योतिर्मठ (उत्तर भारत, बद्रीनाथ)
- गोवर्धन मठ (पूर्व भारत, पुरी)
3. एकता का संदेश:
- शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के माध्यम से यह संदेश दिया कि धर्म, जाति, और पंथ के भेदभाव को समाप्त कर आत्मा और ब्रह्म की एकता को पहचाना जाए।
4. शास्त्रार्थ और प्रवचन:
- उन्होंने पूरे भारत में भ्रमण कर शास्त्रार्थ किए और वैदिक धर्म और अद्वैत वेदांत का प्रचार किया।
शंकराचार्य के प्रमुख सिद्धांत
1. माया का सिद्धांत:
- माया वह शक्ति है, जो ब्रह्म को वास्तविकता से छिपाती है और संसार को वास्तविक प्रतीत कराती है।
- जब माया समाप्त होती है, तो जीव ब्रह्म को पहचान लेता है।
2. आत्मा की असीमता:
- आत्मा (जीव) अनंत, अमर, और असीम है। यह केवल माया के कारण सीमित प्रतीत होती है।
3. ज्ञान का महत्व:
- अद्वैत वेदांत के अनुसार, आत्मज्ञान (आत्मा और ब्रह्म का एकत्व) ही मोक्ष का साधन है।
4. भक्ति और ज्ञान का समन्वय:
- शंकराचार्य ने भक्ति को ज्ञान प्राप्ति का सहायक माना और इसे आत्मा की शुद्धि का साधन बताया।
शंकराचार्य के प्रभाव
1. अद्वैत वेदांत का प्रचार:
- अद्वैत वेदांत के सिद्धांत भारतीय दर्शन का मुख्य आधार बने और भारत के दार्शनिक और आध्यात्मिक विकास को दिशा दी।
2. वैदिक परंपरा का पुनरुद्धार:
- उन्होंने वैदिक धर्म को संगठित और सुदृढ़ किया और भारतीय उपमहाद्वीप में वैदिक परंपरा को पुनर्जीवित किया।
3. भक्ति आंदोलन पर प्रभाव:
- शंकराचार्य के स्तोत्रों और शिक्षाओं ने भक्ति आंदोलन को प्रेरित किया।
4. भारतीय एकता का प्रतीक:
- शंकराचार्य की चार मठ स्थापना और उनके भ्रमण ने भारतीय संस्कृति और एकता को मजबूत किया।
शंकराचार्य की शिक्षाएँ
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आत्मज्ञान का महत्व:
- आत्मा और ब्रह्म के एकत्व को समझने से ही जीवन का अंतिम लक्ष्य (मोक्ष) प्राप्त होता है।
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सार्वभौमिक एकता:
- सभी जीवों में एक ही ब्रह्म का वास है, और इस ज्ञान से सभी भेद समाप्त हो जाते हैं।
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माया का भेदन:
- माया के प्रभाव से मुक्ति पाने के लिए ज्ञान, भक्ति, और साधना आवश्यक है।
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शास्त्रों का अध्ययन:
- उपनिषद, भगवद्गीता, और वेदांत ग्रंथों का अध्ययन जीवन को सत्य की ओर ले जाता है।
निष्कर्ष
आदि शंकराचार्य भारतीय दर्शन, धर्म, और संस्कृति के महानतम आचार्य थे। उनकी शिक्षाएँ और रचनाएँ अद्वैत वेदांत की गहराई को समझाती हैं और आत्मज्ञान का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
उनका योगदान भारतीय धर्म और दर्शन में अमूल्य है और उनकी कृतियाँ आज भी भारतीय और वैश्विक चिंतन में प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी शिक्षाएँ यह संदेश देती हैं कि आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं, और इस ज्ञान से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
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