भागवत पुराण के अष्टम स्कंध का सार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत पुराण के अष्टम स्कंध में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों और उनकी लीलाओं का वर्णन है। इसमें मुख्य रूप से समुद्र मंथन, गजेन्द्र मोक्ष, और वामन अवतार की कथाएँ शामिल हैं। यह स्कंध भगवान की भक्तवत्सलता और धर्म की स्थापना पर आधारित है। अष्टम स्कंध का सारांश निम्नलिखित है:



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अध्याय 1-4: गजेन्द्र मोक्ष कथा


1. अध्याय 1:


राजा इंद्रद्युम्न ने तपस्या में लीन होकर अपने राजकर्म की उपेक्षा की।


ऋषियों के शाप से वह अगले जन्म में गज (हाथी) बन गए।




2. अध्याय 2:


गजेन्द्र जल में कमल का फूल लेकर भगवान विष्णु की स्तुति करता है।


मगरमच्छ से संघर्ष के दौरान वह भगवान को पुकारता है।




3. अध्याय 3:


भगवान विष्णु गजेन्द्र की पुकार सुनकर प्रकट होते हैं।


उन्होंने मगरमच्छ का वध किया और गजेन्द्र को मोक्ष प्रदान किया।




4. अध्याय 4:


गजेन्द्र मोक्ष कथा यह सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों की हर संकट में रक्षा करते हैं।






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अध्याय 5-12: समुद्र मंथन कथा


5. अध्याय 5:


देवताओं और दानवों के बीच संघर्ष बढ़ने से देवता असुरों से हारने लगे।


भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन का उपाय बताया।




6. अध्याय 6:


समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत और वासुकि नाग का उपयोग किया गया।


भगवान ने कच्छप (कूर्म) अवतार लेकर पर्वत को संतुलित किया।




7. अध्याय 7:


मंथन के दौरान विष (हलाहल) उत्पन्न हुआ, जिसे भगवान शिव ने पीकर देवताओं को बचाया।




8. अध्याय 8:


मंथन से लक्ष्मी देवी, कामधेनु, कल्पवृक्ष, और अन्य रत्न निकले।




9. अध्याय 9:


अंत में अमृत कलश निकला, जिसे लेकर देवताओं और दानवों के बीच संघर्ष हुआ।


भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत दानवों से छीन लिया और देवताओं को दिया।




10. अध्याय 10-12:


समुद्र मंथन की कथा यह सिखाती है कि भगवान विष्णु धर्म की रक्षा के लिए हर रूप में सहायता करते हैं।






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अध्याय 13-20: वामन अवतार


11. अध्याय 13:


दैत्यराज बलि ने अपने पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया।


इंद्र और देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।




12. अध्याय 14-15:


भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और बलि से भिक्षा माँगी।


वामन भगवान ने तीन पग भूमि की याचना की।




13. अध्याय 16-17:


बलि ने वचन दिया, और भगवान ने अपने विराट रूप में तीनों लोकों को नाप लिया।


बलि को पाताल लोक भेजा गया, लेकिन भगवान ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया।




14. अध्याय 18-20:


वामन अवतार धर्म की स्थापना और भगवान के भक्तवत्सल स्वभाव का परिचायक है।






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अध्याय 21-24: अन्य कथाएँ और उपदेश


15. अध्याय 21:


मन्वंतर के परिवर्तन का वर्णन।


देवताओं और असुरों के बीच धर्म-अधर्म का संघर्ष।




16. अध्याय 22:


भगवान विष्णु के अन्य अवतारों का वर्णन।


यह बताया गया कि भगवान सृष्टि की रक्षा के लिए समय-समय पर अवतार लेते हैं।




17. अध्याय 23-24:


भगवान के भक्तों के लिए उनके व्रतों, उपवासों, और भक्ति की महिमा का वर्णन।


यह अध्याय भक्ति को जीवन का सर्वोच्च मार्ग बताता है।






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अष्टम स्कंध की प्रमुख शिक्षाएँ


1. भगवान की भक्तवत्सलता: गजेन्द्र मोक्ष कथा दिखाती है कि भगवान अपने भक्तों की संकट में रक्षा करते हैं।



2. धर्म की रक्षा: समुद्र मंथन और वामन अवतार की कथाएँ सिखाती हैं कि भगवान धर्म की स्थापना के लिए किसी भी रूप में अवतरित होते हैं।



3. भक्ति का महत्व: यह स्कंध भक्ति के माध्यम से भगवान को प्रसन्न करने का मार्ग बताता है।



4. त्याग और सत्यता: राजा बलि की कथा यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और त्याग से भगवान प्रसन्न होते हैं।



5. सहयोग और सामंजस्य: समुद्र मंथन की कथा सिखाती है कि कठिन कार्यों को पूरा करने के लिए सहयोग आवश्यक है।




अष्टम स्कंध भगवान विष्णु के भक्तवत्सल और धर्मरक्षक स्वरूप को उजागर करता है और भक्ति, धर्म, और त्याग का महत्व बताता है।


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