सुदामा चरित्र (श्रीमद्भागवत महापुराण, दशम स्कंध, अध्याय 80-81) श्लोकों सहित

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 सुदामा चरित्र (श्रीमद्भागवत महापुराण, दशम स्कंध, अध्याय 80-81) का वर्णन श्रीकृष्ण और सुदामा के बीच मित्रता, प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। इस कथा में भगवान के अपने भक्तों के प्रति प्रेम और उनकी कृपा का अद्भुत दर्शन होता है। यहाँ कथा को विस्तार से, संबंधित श्लोकों सहित प्रस्तुत किया गया है:



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सुदामा का परिचय और निर्धनता


सुदामा एक विद्वान ब्राह्मण और श्रीकृष्ण के बचपन के मित्र थे।

वे अत्यंत निर्धन थे और अपने परिवार का भरण-पोषण करने में कठिनाई का सामना कर रहे थे।

सुदामा की पत्नी ने उनसे आग्रह किया कि वे अपने मित्र श्रीकृष्ण से मिलें और सहायता मांगें।


श्रीमद्भागवत (10.80.3-4):


> पत्नी सुदामस्य गरीयसी पतिं, मुवाच वाचं कृतकिल्बिषा सती।

पत्युर्बलज्ञा विधवेव दुःखिता, प्रियं प्रियायाभिनवं स्मयोदया॥




“सुदामा की पत्नी, जो स्वयं धर्म और पति के प्रति समर्पित थीं, अत्यंत दुःखी होकर उनसे बोलीं: हे स्वामी! श्रीकृष्ण आपके मित्र हैं, वे परम दयालु हैं। कृपया उनसे मिलने जाएं।”



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सुदामा का द्वारका गमन


सुदामा ने अपनी पत्नी के आग्रह पर द्वारका जाने का निश्चय किया।

सुदामा ने अपने मित्र श्रीकृष्ण के लिए घर से उपहार के रूप में थोड़े से चिउड़े (चावल) लिए।

वे द्वारका पहुंचे और राजमहल में प्रवेश किया।


श्रीमद्भागवत (10.80.14):


> द्वारकां भागवत श्रेष्ठां श्री कृष्ण चरणैर्युताम्।

ददर्श ग्राम निर्यातः पुरं सुभ्रमतां गतम्॥




“सुदामा द्वारका पहुंचे, जो श्रीकृष्ण की चरण रज से पवित्र थी। उन्होंने नगर को वैकुंठ के समान दिव्य रूप में देखा।”



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श्रीकृष्ण का सुदामा से मिलन


जब श्रीकृष्ण ने सुदामा को देखा, तो वे दौड़कर उनके पास आए।

उन्होंने सुदामा को गले लगाया, उनके चरण धोए और उन्हें अपने सिंहासन पर बिठाया।

रानी रुक्मिणी स्वयं सुदामा की सेवा में लगीं।


श्रीमद्भागवत (10.80.17):


> सद्योऽभिवाद्य सहसा परिरभ्य सुसत्कृतम्।

उपवेश्य निजं पृष्ठे पर्यपृच्छदतन्द्रितः॥




“श्रीकृष्ण ने सुदामा को तुरंत गले लगाया, सम्मानपूर्वक सिंहासन पर बिठाया और प्रेमपूर्वक उनका हालचाल पूछा।”


श्रीमद्भागवत (10.80.21):


> प्रेमगद्गदया वाचा सुदामा: कृष्ण सन्निधौ।

नश्यन्मतिर्मोहवशात् स्वस्य कर्मानुभावनम्॥




“सुदामा अपने मित्र श्रीकृष्ण के स्नेह से अभिभूत हो गए और उनका गला प्रेम से भर आया। वे अपनी निर्धनता को भूल गए।”



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सुदामा का चिउड़ा भेंट करना


सुदामा ने अपने पास लाए हुए चिउड़े श्रीकृष्ण को भेंट किए।

श्रीकृष्ण ने प्रेमपूर्वक उन्हें स्वीकार किया और बड़े आनंद से खाया।


श्रीमद्भागवत (10.81.7):


> ततस्तदल्पं सुष्वाद भगवान्सर्वलोचनः।

प्रेम्णोऽञ्जसोपलम्भार्थं भृत्यानां भृत्यवत्सलः॥




“भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा के चिउड़ों को प्रेमपूर्वक खाया। उन्होंने यह दिखाया कि वे अपने भक्तों के प्रेम के भूखे हैं।”



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सुदामा की लज्जा और भगवान की कृपा


सुदामा ने अपनी निर्धनता के बारे में कुछ भी नहीं कहा।

उन्होंने केवल श्रीकृष्ण के प्रेम का आनंद लिया।

जब सुदामा अपने गांव लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनका पुराना झोपड़ा एक सुंदर महल में बदल चुका है।


श्रीमद्भागवत (10.81.32-33):


> गृहं प्रविष्टः स च ददर्श सर्वं, तदद्भुतं पुरणि कल्पितं च।

विमानकृत्यां परिभूषितं स, सपत्न्यपुत्र: स्म सुदर्शनाद्यः॥




“जब सुदामा अपने घर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि उनका पुराना घर एक दिव्य महल में बदल गया है। उनकी पत्नी और बच्चे सभी राजसी वस्त्र धारण किए हुए थे।”



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कथा का संदेश


1. भक्ति और प्रेम का महत्व:


सुदामा ने भगवान से कुछ नहीं मांगा, फिर भी श्रीकृष्ण ने उनकी निर्धनता का अंत कर दिया।


यह दिखाता है कि भगवान केवल भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होते हैं।




2. सच्ची मित्रता:


श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता दर्शाती है कि सच्चा मित्र वही है जो हर परिस्थिति में समान प्रेम रखता है।




3. भगवान की कृपा:


भगवान अपने भक्तों की समस्या बिना कहे ही समझ जाते हैं और उनकी सहायता करते हैं।




4. सादगी और समर्पण:


सुदामा का चिउड़ा भेंट करना यह दर्शाता है कि भगवान को केवल प्रेम और समर्पण चाहिए, न कि भौतिक संपत्ति।






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समाप्ति


सुदामा चरित्र हमें सिखाता है कि ईश्वर के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण हमें जीवन के सभी संकटों से मुक्त कर सकता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा को न केवल भौतिक सुख दिया, बल्कि आध्यात्मिक आनंद भी प्रदान किया। यह कथा भक्ति, मित्रता और भगवान की कृपा का प्रतीक है।


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