भागवत पुराण, गरुड़ पुराण और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों में 28 प्रकार के नरकों का विस्तृत वर्णन मिलता है। ये नरक पापियों को उनके कर्मों के आधार पर दंड देने के लिए बनाए गए हैं। हर नरक एक विशेष प्रकार के पाप और उसके दंड के लिए निर्धारित है। ये नरक मुख्य रूप से यमराज के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, और वहाँ पापियों को उनके कर्मों के अनुसार यातनाएँ दी जाती हैं।
---
28 प्रकार के नरकों का विवरण:
1. तामिस्र (Tamisra)
पाप: दूसरों की संपत्ति और पत्नी को हड़पने वाले।
दंड: पापी को अंधेरे में भूखा-प्यासा रखा जाता है और भयंकर कष्ट दिया जाता है।
2. अंधतामिस्र (Andhatamisra)
पाप: अपने परिवार को धोखा देने वाले।
दंड: पापी को भयंकर अंधकार में यातनाएँ दी जाती हैं, जिससे वह पागल हो जाता है।
3. रौरव (Raurava)
पाप: दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाले।
दंड: पापी को भयंकर रौरव नामक पशुओं द्वारा काटा और खाया जाता है।
4. महा-रौरव (Maharaurava)
पाप: निर्दोष प्राणियों को कष्ट देने वाले।
दंड: पापी को विशाल राक्षसी जीवों द्वारा अत्यधिक पीड़ा दी जाती है।
5. कुम्भीपाक (Kumbhipaka)
पाप: मासूम जानवरों को मारने और मांस खाने वाले।
दंड: पापी को उबलते तेल में फेंक दिया जाता है।
6. कल्पसूत्र (Kalasutra)
पाप: अपने माता-पिता और गुरुओं का अपमान करने वाले।
दंड: पापी को जलते हुए लोहे की रस्सियों से बाँधा जाता है।
7. असिपत्रवन (Asipatravana)
पाप: झूठ बोलने वाले और अन्याय करने वाले।
दंड: पापी को तलवारों से कटे हुए वन में फेंका जाता है।
8. शूकरमुख (Shukramukha)
पाप: झूठे आरोप लगाने और निर्दोषों को सताने वाले।
दंड: पापी को लोहे की सुअर के मुख जैसी मशीन से कुचला जाता है।
9. अंधकूप (Andhakupa)
पाप: अपने दायित्वों की अनदेखी करने वाले।
दंड: पापी को जहरीले कीड़ों, साँपों और विषैले जानवरों के साथ रखा जाता है।
10. कृष्णसूत्र (Krishnasutra)
पाप: अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने वाले।
दंड: पापी को गहरे अंधकार में रखा जाता है, जहाँ उसे भयभीत करने वाली आवाजें सुनाई देती हैं।
11. तप्तसूर्मि (Taptasurmi)
पाप: व्यभिचार करने वाले।
दंड: पापी को गर्म लोहे की छड़ें पकड़ने के लिए मजबूर किया जाता है।
12. वज्रकंटकशल्मली (Vajrakantakasalmali)
पाप: पराई स्त्री के साथ संबंध रखने वाले।
दंड: पापी को काँटों से भरे पेड़ पर फेंका जाता है।
13. वैतरणी (Vaitarani)
पाप: अधर्म और पाखंड का पालन करने वाले।
दंड: पापी को खून, मल, और गंदगी से भरी नदी में फेंक दिया जाता है।
14. पूयोदक (Puyodaka)
पाप: पवित्र स्थानों का अपमान करने वाले।
दंड: पापी को मवाद और विष से भरी नदी में रखा जाता है।
15. प्राणरोध (Pranarodha)
पाप: निर्दोष प्राणियों की हत्या करने वाले।
दंड: पापी को एक बार-बार मारकर जीवित किया जाता है।
16. विश्वसंधि (Visvasandhi)
पाप: अपने कर्तव्यों को त्यागने वाले।
दंड: पापी को अत्यधिक गर्म धातु से यातनाएँ दी जाती हैं।
17. लालाभक्ष (Lalabhaksha)
पाप: दूसरों के धन को हड़पने वाले।
दंड: पापी को आग में तपाई गई धातु खाने के लिए मजबूर किया जाता है।
18. सारमेयाद (Sarameyadana)
पाप: चोरी करने वाले।
दंड: पापी को क्रोधित कुत्तों द्वारा नोंचा जाता है।
19. अवीचि (Avichi)
पाप: ईश्वर और धर्म का अपमान करने वाले।
दंड: पापी को ऐसी जगह रखा जाता है, जहाँ कोई राहत नहीं मिलती।
20. अयःपान (Ayahpana)
पाप: शराब पीने और दूसरों को पथभ्रष्ट करने वाले।
दंड: पापी को पिघला हुआ लोहे का रस पिलाया जाता है।
21. क्षारकर्दम (Ksharakardama)
पाप: दूसरों को झूठे विश्वास में डालने वाले।
दंड: पापी को गंदी और चिपचिपी मिट्टी में फेंका जाता है।
22. रक्तकर्दम (Raktakardama)
पाप: दूसरों का रक्त बहाने वाले।
दंड: पापी को खून और मल से भरे दलदल में रखा जाता है।
23. शूलप्रोत (Shulaprota)
पाप: निर्दोषों को सताने वाले।
दंड: पापी को भाले से बार-बार छेदा जाता है।
24. दंडशूक (Dandasuka)
पाप: अहंकारी और क्रूर व्यक्ति।
दंड: पापी को सांपों द्वारा डसवाया जाता है।
25. अवाटनीरोध (Avatanirodha)
पाप: ईर्ष्या और जलन रखने वाले।
दंड: पापी को लोहे की सलाखों से बांधकर यातनाएँ दी जाती हैं।
26. पर्यावर्तन (Paryavartana)
पाप: अशुद्ध और पाखंडी आचरण करने वाले।
दंड: पापी को जलते हुए अंगारों पर बार-बार लुढ़काया जाता है।
27. सूचीमुख (Suchimukha)
पाप: दान का दुरुपयोग करने वाले।
दंड: पापी को सुई से छेद-छेद कर यातनाएँ दी जाती हैं।
28. आत्मदर्पण (Atmadarpana)
पाप: आत्ममुग्ध और अहंकारी।
दंड: पापी को अपना ही विकृत चेहरा बार-बार दिखाकर यातनाएँ दी जाती हैं।
---
निष्कर्ष:
यह 28 प्रकार के नरक पापियों को उनके कर्मों के अनुसार दंड देने के लिए बनाए गए हैं। इन नरकों का उद्देश्य आत्मा को उसके कर्मों के प्रति उत्तरदायी बनाना और पुनः धर्म और सत्य के मार्ग पर लाना है। यह वर्णन हमें सिखाता है कि हमें अपने जीवन में सदैव धर्म, सत्य, और नैतिकता का पालन करना चाहिए ताकि हम इन यातनाओं से बच सकें।
> "कर्मों का फल अवश्य मिलता है। इसलिए धर्म का पालन करें और पवित्र जीवन जिएं।"
thanks for a lovly feedback