वैशेषिक दर्शन के 24 गुणों का विस्तार से वर्णन
वैशेषिक दर्शन में गुण को सृष्टि के सभी द्रव्यों का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है। कणाद मुनि के अनुसार, गुण वह विशेषता है जो द्रव्य (Substance) में विद्यमान रहती है और उसे पहचानने योग्य बनाती है।
गुणों का स्वरूप द्रव्य में निहित होता है और वे स्वयं स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं हो सकते। वैशेषिक दर्शन में 24 गुणों का उल्लेख किया गया है, जो सृष्टि में हर भौतिक और अधिभौतिक तत्व के विभिन्न पहलुओं को परिभाषित करते हैं।
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गुण की परिभाषा
> "द्रव्यसमवायी गुणः" (वैशेषिक सूत्र)
अर्थ: गुण वह है जो द्रव्य में समाहित रहता है और द्रव्य के बिना उसका अस्तित्व संभव नहीं है।
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वैशेषिक दर्शन के 24 गुण
1. रूप (रंग या आकृति):
यह दृश्य गुण है, जो चक्षु (आँख) द्वारा अनुभव किया जाता है।
उदाहरण: लाल, नीला, हरा रंग।
2. रस (स्वाद):
यह रसना (जीभ) द्वारा अनुभव किया जाता है।
रस के प्रकार: मधुर (मीठा), अम्ल (खट्टा), लवण (नमकीन), कटु (तीखा), तिक्त (कड़वा), कषाय (फीका)।
3. गंध (सुगंध/दुर्गंध):
यह गुण घ्राणेंद्रिय (नाक) द्वारा अनुभव किया जाता है।
गंध के प्रकार: सुखद, दुर्गंध।
4. स्पर्श (स्पर्श/संवेदन):
यह त्वचा (स्पर्शेंद्रिय) द्वारा अनुभव किया जाता है।
प्रकार: कोमल, कठोर, गर्म, ठंडा।
5. संख्या (गणना):
द्रव्य की गणनात्मक विशेषता।
उदाहरण: एक, दो, तीन।
6. परिमाण (मात्रा/आकार):
द्रव्य का विस्तार या आकार।
प्रकार: बड़ा, छोटा, लंबा।
7. पृथक्त्व (अलगाव):
वस्तुओं के बीच का भेद या अलगाव।
उदाहरण: एक से अधिक वस्तुओं का भिन्न-भिन्न होना।
8. संयोग (संयोग/संपर्क):
दो द्रव्यों का आपस में जुड़ना।
उदाहरण: मेज पर रखी पुस्तक।
9. वियोग (वियोजन):
दो द्रव्यों का अलग होना।
उदाहरण: पुस्तक का मेज से हटना।
10. गतिशीलता (गति/चाल):
द्रव्य की स्थान परिवर्तन करने की क्षमता।
प्रकार: ऊपर जाना, नीचे आना, फैलना।
11. स्थिरता (आलंबन):
द्रव्य की स्थिर स्थिति।
उदाहरण: किसी वस्तु का एक स्थान पर स्थिर रहना।
12. गुणात्मकता (ध्वनि):
ध्वनि (शब्द) का अनुभव।
प्रकार: संगीत, वाणी, शोर।
13. बुद्धि (ज्ञान):
किसी वस्तु या स्थिति का बोध।
उदाहरण: किसी वस्तु का पहचानना।
14. सुख (आनंद):
मानसिक और शारीरिक खुशी का अनुभव।
उदाहरण: अच्छा भोजन खाने का आनंद।
15. दुख (कष्ट):
मानसिक और शारीरिक पीड़ा का अनुभव।
उदाहरण: चोट लगने का दर्द।
16. इच्छा (कामना):
किसी वस्तु या स्थिति को प्राप्त करने की इच्छा।
उदाहरण: भोजन की इच्छा।
17. द्वेष (नापसंद):
किसी वस्तु या स्थिति से घृणा।
उदाहरण: दुर्गंध से नफरत।
18. प्रयास (उद्यम):
किसी उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयास।
उदाहरण: शिक्षा प्राप्ति के लिए अध्ययन।
19. धर्म (सद्गुण):
नैतिक और धार्मिक गुण।
उदाहरण: सत्य बोलना, दया करना।
20. अधर्म (दुष्टता):
अनैतिक और नकारात्मक गुण।
उदाहरण: चोरी करना, झूठ बोलना।
21. संस्कार (आदत/संस्कार):
वस्तु की स्थायी प्रवृत्ति या गुण।
प्रकार:
वेग: गति की प्रवृत्ति।
प्रवर्तन: स्थिरता बनाए रखने की प्रवृत्ति।
स्मृति: किसी घटना को याद रखने की प्रवृत्ति।
22. स्मृति (याददाश्त):
पूर्व अनुभवों को स्मरण करने की क्षमता।
उदाहरण: अतीत की घटनाएँ याद करना।
23. आश्रय (अवस्था):
द्रव्य का अपने गुणों को धारण करना।
उदाहरण: जल में ठंडक का गुण।
24. अभाव (न होने का गुण):
किसी वस्तु का न होना।
उदाहरण: किसी स्थान पर पानी की अनुपस्थिति।
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गुणों की विशेषताएँ
1. गुण द्रव्य में निहित होते हैं:
गुण स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं हो सकते; वे हमेशा किसी न किसी द्रव्य में रहते हैं।
2. गुण स्थायी और अस्थायी हो सकते हैं:
कुछ गुण स्थायी होते हैं (जैसे, पृथ्वी में गंध), जबकि कुछ अस्थायी होते हैं (जैसे, रंग बदलना)।
3. इंद्रियों के माध्यम से अनुभव किए जाते हैं:
अधिकांश गुण इंद्रियों (चक्षु, रसना, त्वचा, घ्राण, और कान) के माध्यम से अनुभव किए जाते हैं।
4. गुणों का संयोजन द्रव्य को पहचानने योग्य बनाता है:
गुणों के संयोजन से ही किसी द्रव्य की विशेषता और उपयोगिता का निर्धारण होता है।
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वैशेषिक दर्शन में गुणों का महत्व
1. सृष्टि की पहचान:
गुण सृष्टि में भौतिक और सूक्ष्म द्रव्यों को परिभाषित करते हैं।
2. द्रव्य का ज्ञान:
द्रव्य को गुणों के माध्यम से ही पहचाना जाता है।
3. तत्त्वज्ञान का आधार:
गुण तत्त्वज्ञान और सृष्टि की समझ को स्पष्ट करते हैं।
4. आध्यात्मिक दृष्टिकोण:
गुण जैसे धर्म, अधर्म, और स्मृति का महत्व आत्मा के विकास और मोक्ष प्राप्ति में होता है।
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संदर्भ
1. वैशेषिक सूत्र (कणाद मुनि):
गुणों का मूल विवरण वैशेषिक सूत्र में मिलता है।
2. भगवद्गीता:
गीता में गुणों का महत्व, विशेषकर धर्म, अधर्म, और स्मृति के संदर्भ में वर्णित है (गीता 14.5-14.25)।
3. उपनिषद:
उपनिषदों में आत्मा और उसके गुणों का वर्णन वैशेषिक गुणों से मेल खाता है।
4. आधुनिक मनोविज्ञान:
आधुनिक मनोविज्ञान में मानसिक गुण (सुख, दुख, स्मृति) और शारीरिक गुण (रूप, स्पर्श) का अध्ययन वैशेषिक गुणों के विचारों से मेल खाता है।
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निष्कर्ष
वैशेषिक दर्शन के 24 गुण सृष्टि के हर भौतिक और अधिभौतिक पहलू को समझने का आधार प्रदान करते हैं। ये गुण द्रव्यों की पहचान, उनकी विशेषताओं और उनके कार्यों को स्पष्ट करते हैं। गुणों के बिना न तो द्रव्य की परिभाषा संभव है और न ही सृष्टि के स्वरूप को समझा जा सकता है। वैशेषिक दर्शन के ये विचार भारतीय दर्शन की गहन वैज्ञानिकता और तात्त्विकता को दर्शाते हैं।
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