A composite artistic depiction blending the Ram Janmabhoomi site with the Supreme Court of India. The image showcases the grand architecture of the ne |
राम जन्मभूमि विवाद: एक विस्तृत विवरण
राम जन्मभूमि विवाद, भारत के अयोध्या शहर में स्थित एक धार्मिक स्थल से संबंधित है, जिसे हिंदू समुदाय भगवान राम की जन्मभूमि मानता है। यह विवाद हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच लंबे समय तक चला और धार्मिक, सामाजिक, और राजनीतिक प्रभाव का केंद्र बना रहा।
- सन् 1528 में राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था।
- सन् 1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार हिंसक विवाद हुआ।
- सन् 1859 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा।
- सन्1949 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया।
- सन्1980 के दशक में, हिंदू राष्ट्रवादी परिवार संघ परिवार से संबंधित विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने हिंदुओं के लिए स्थल को पुनः प्राप्त करने और इस मौके पर शिशु राम( राम लल्ला )को समर्पित एक मंदिर बनाने के लिए एक नया आंदोलन शुरू किया।
- सन् 1986 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
- सन् 1989 नवंबर में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की नींव रखी।
- 6 दिसंबर 1992 को,अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद और भारतीय जनता पार्टी ने इस स्थल पर एक रैली का आयोजन किया जिसमें 150,000 स्वयंसेवक शामिल थे,जिन्हें कारसेवकों के रूप में जाना जाता था रैली हिंसक हो गई, और भीड़ ने सुरक्षा बलों को दबोच लिया और बाबरी मस्जिद को तोड़ दि गई फिर गिराई गई। (कोठारी बन्धुओं का विशेष प्रयास रहा)
- विध्वंस के परिणामस्वरूप भारत के हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच कई महीनों तक चले देशव्यापी दंगे हुए,जिससे कम से कम 2,000 लोगों की जानें गईं और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में दंगे भड़क उठे।
- मस्जिद के विध्वंस के बाद दिसंबर 1992 को, द न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया कि "पाकिस्तान में ३० हिंदू मंदिरों" पर हमला किया गया, कुछ में आग लगा दी गई, और एक को ध्वस्त कर दिया गया।
- पाकिस्तान सरकार ने विरोध के एक दिन में स्कूल और कार्यालय बंद कर दिए बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों पर भी हमला किया गया।
- इनमें से कुछ हिंदू मंदिर जो बाबरी मस्जिद के प्रतिशोध के दौरान आंशिक रूप से नष्ट हो गए थे, वे अब भी उसी तरह से बने हुए हैं पाकिस्तान में हिंदू संरचनाओं के खिलाफ और हिंसा को पाकिस्तान सेना और स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने रोका।
- उसके दस दिन बाद 16 दिसम्बर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।
- लिब्रहान आयोग को 16 मार्च 1993 को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 17 साल लगाए।
- 1993 में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली।चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी था।मगर कोर्ट ने इस चुनौती को ख़ारिज कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है।जब मलिकाना हक़ का फैसला हो जाएगा तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी।हाल ही में केंद्र की और से दायर अर्जी इसी अतिरिक्त जमीन को लेकर है।
- 1996 में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी।इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे 1997 में कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया।
- 2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
- 2003 में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया।कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
- 30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में 700 पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा। जांच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।
- 31 मार्च 2009 को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने तक के लिए बढ़ाया गया।
- 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया।न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है,उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहाहै इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
1. विवाद की पृष्ठभूमि
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पौराणिक संदर्भ: हिंदू धर्म के अनुसार, अयोध्या भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्मस्थान है। वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस, और अन्य धार्मिक ग्रंथों में अयोध्या का उल्लेख है।
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मुगल काल: 1528 में, मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल में, उनके सेनापति मीर बाकी ने राम जन्मभूमि स्थल पर एक मस्जिद (बाबरी मस्जिद) का निर्माण करवाया। हिंदू समुदाय का दावा था कि यह मस्जिद भगवान राम के जन्मस्थान पर बने मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी।
2. विवाद का आरंभ
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19वीं सदी: ब्रिटिश काल में, हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच इस स्थल पर पूजा-अर्चना को लेकर झड़पें हुईं। 1859 में, ब्रिटिश प्रशासन ने विवादित स्थल के चारों ओर बाड़ लगवाई, जिसमें हिंदू और मुस्लिमों के पूजा स्थलों को अलग कर दिया गया।
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1949: दिसंबर 1949 में, विवादित ढांचे के अंदर रामलला की मूर्ति प्रकट होने का दावा किया गया। इस घटना ने विवाद को और बढ़ा दिया। प्रशासन ने इस स्थल को "विवादित" घोषित कर दिया और इसे बंद कर दिया गया।
3. विवादित स्थल पर कानूनी प्रक्रिया
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1950 का दशक: हिंदू पक्ष ने फैजाबाद सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर कर राम जन्मभूमि स्थल पर पूजा-अर्चना का अधिकार मांगा।
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1961: सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि यह मस्जिद उनकी संपत्ति है।
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1986: फैजाबाद जिला अदालत ने विवादित स्थल का ताला खोलने और हिंदुओं को पूजा की अनुमति देने का आदेश दिया।
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1989: विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने राम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण का अभियान शुरू किया। इसी वर्ष राम जन्मभूमि न्यास ने मंदिर निर्माण का दावा करते हुए मुकदमा दायर किया।
4. 1992 की घटना: बाबरी मस्जिद विध्वंस
- 6 दिसंबर 1992 को, हजारों कारसेवकों ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। इस घटना के बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसमें हजारों लोग मारे गए। इस घटना ने भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया।
5. कानूनी और राजनीतिक लड़ाई
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1993: केंद्र सरकार ने "अयोध्या अधिनियम" के तहत विवादित भूमि का अधिग्रहण किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस भूमि के स्वामित्व के सवाल पर फैसला करने का आदेश दिया।
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2002-2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2002 में विवादित भूमि पर खुदाई का आदेश दिया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने खुदाई में दावा किया कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मौजूद हैं।
30 सितंबर 2010 को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि को तीन भागों में बांटने का आदेश दिया:- रामलला विराजमान (हिंदू पक्ष)
- सुन्नी वक्फ बोर्ड (मुस्लिम पक्ष)
- निर्मोही अखाड़ा
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2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी।
6. सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला (2019)
9 नवंबर 2019 को, सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से विवाद का निपटारा करते हुए फैसला सुनाया:
- विवादित भूमि को रामलला विराजमान को सौंपा गया।
- केंद्र सरकार को तीन महीने के भीतर मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट बनाने का निर्देश दिया गया।
- मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि देने का आदेश दिया गया।
7. मंदिर निर्माण और वर्तमान स्थिति
- 5 अगस्त 2020 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया।
- राम मंदिर का निर्माण श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है और यह 2024 में श्रद्धालुओं के लिए खुलने की उम्मीद है।
8. विवाद का धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभाव
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धार्मिक प्रभाव: हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए यह स्थल भगवान राम की आस्था का प्रतीक है। इस विवाद ने धार्मिक आंदोलनों और संगठनों को सशक्त किया।
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राजनीतिक प्रभाव: राम जन्मभूमि आंदोलन ने भारतीय राजनीति में बड़े बदलाव लाए। भारतीय जनता पार्टी (BJP) जैसे दलों ने इस आंदोलन से अपनी स्थिति मजबूत की।
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सामाजिक प्रभाव: इस विवाद ने देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया और हिंदू-मुस्लिम संबंधों को प्रभावित किया।
9. निष्कर्ष
राम जन्मभूमि विवाद न केवल एक कानूनी मुद्दा था, बल्कि यह भारत के धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले और मंदिर निर्माण के साथ, इस विवाद का समाधान हो गया है। यह स्थल अब भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतीक बन गया है।
- सन् 1528 में राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था।
- सन् 1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार हिंसक विवाद हुआ।
- सन् 1859 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा।
- सन्1949 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया।
- सन्1980 के दशक में, हिंदू राष्ट्रवादी परिवार संघ परिवार से संबंधित विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने हिंदुओं के लिए स्थल को पुनः प्राप्त करने और इस मौके पर शिशु राम( राम लल्ला )को समर्पित एक मंदिर बनाने के लिए एक नया आंदोलन शुरू किया।
- सन् 1986 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
- सन् 1989 नवंबर में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की नींव रखी।
- 6 दिसंबर 1992 को,अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद और भारतीय जनता पार्टी ने इस स्थल पर एक रैली का आयोजन किया जिसमें 150,000 स्वयंसेवक शामिल थे,जिन्हें कारसेवकों के रूप में जाना जाता था रैली हिंसक हो गई, और भीड़ ने सुरक्षा बलों को दबोच लिया और बाबरी मस्जिद को तोड़ दि गई फिर गिराई गई। (कोठारी बन्धुओं का विशेष प्रयास रहा)
- विध्वंस के परिणामस्वरूप भारत के हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच कई महीनों तक चले देशव्यापी दंगे हुए,जिससे कम से कम 2,000 लोगों की जानें गईं और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में दंगे भड़क उठे।
- मस्जिद के विध्वंस के बाद दिसंबर 1992 को, द न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया कि "पाकिस्तान में ३० हिंदू मंदिरों" पर हमला किया गया, कुछ में आग लगा दी गई, और एक को ध्वस्त कर दिया गया।
- पाकिस्तान सरकार ने विरोध के एक दिन में स्कूल और कार्यालय बंद कर दिए बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों पर भी हमला किया गया।
- इनमें से कुछ हिंदू मंदिर जो बाबरी मस्जिद के प्रतिशोध के दौरान आंशिक रूप से नष्ट हो गए थे, वे अब भी उसी तरह से बने हुए हैं पाकिस्तान में हिंदू संरचनाओं के खिलाफ और हिंसा को पाकिस्तान सेना और स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने रोका।
- उसके दस दिन बाद 16 दिसम्बर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।
- लिब्रहान आयोग को 16 मार्च 1993 को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 17 साल लगाए।
- 1993 में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली।चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी था।मगर कोर्ट ने इस चुनौती को ख़ारिज कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है।जब मलिकाना हक़ का फैसला हो जाएगा तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी।हाल ही में केंद्र की और से दायर अर्जी इसी अतिरिक्त जमीन को लेकर है।
- 1996 में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी।इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे 1997 में कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया।
- 2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
- 2003 में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया।कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
- 30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में 700 पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा। जांच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।
- 31 मार्च 2009 को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने तक के लिए बढ़ाया गया।
- 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया।न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है,उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहाहै इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
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