मां कालिका, कालिकन धाम अमेठी |
माता रानी अमृत कुंड निवासिनी श्री कालिका जी के संग्रामपुर अमेठी उत्तर प्रदेश में प्रकटोत्सव के कारण महर्षि च्यवन मुनि सदा से भक्तों के आस्था के केंद्र बन चुके हैं ।
महर्षि च्यवन मुनि का इतिहास वेद सहित अठारह पुराणों में देवी भागवत में विभिन्न धार्मिक ग्रंथों सहित सुखसागर आदि में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है । महर्षि का जीवन त्याग तपस्या विश्वकल्याण धर्म रक्षा की धुरी के रूप में सदा स्मरणीय रहेगा ।
च्यवन ऋषि भृगु की पत्नी पुलोमा के गर्भ में जिस समय थे । उसी समय इनके पिता हिमालय परी क्षेत्र में तपस्या में लीन थे । प्रलोमा नाम का दैत्य इनकी माता के रूप माधुरी को देख कर आसक्त हो गया और सतीत्व भंग करने के लिए पकड़ लिया । पुलोमा माताजी ने विचार किया । यदि पति का स्मरण करती हूं तो प्रभु के श्री चरणों से ध्यान भंग हो जाएगा । यदि प्रभु का स्मरण करती हूं तो मेरे पति के ह्रदय से निकल कर,, मेरी मदद के लिए दौड़ पड़ेंगे । इसलिए ना मैं पति को बुला सकती हूं ना परमेश्वर को ।। अपनी माता की विवशता को देख कर च्यवन मुनि समय से पहले मां के गर्भ से निकल कर अपने दिव्य तेज से दैत्य को भस्मीभूत कर दिया ।। उसी क्षण माता पुलोमा ने ऋषि राज को आशीर्वाद दिया कि आप मातृशक्ति की रक्षा के लिए गर्भ से निकल पड़े हो तो आदिशक्ति मां कालिका जी की उपासना करके उनका प्रकटोत्सव कराओ । यही मेरा आदेश है । और विश्व कल्याण करने का उत्तम साधन भी।
यह घटना सतयुग के प्रथम चरण की है । महर्षि च्यवन मुनि इसी परिक्षेत्र में घनघोर तपस्या करने लगे । तपस्या करते करते उनकी शरीर पर दीमक की बांबी बन गयी । जिसमें केवल उनकी आंखें चमकती हुयी दिखायी पड़ रही थी । अयोध्या नरेश महाराज शर्याति अपनी विशाल सेना के साथ इकलौती पुत्री सुकन्या को लेकर इस परिक्षेत्र में पधारे । अपनी सहेलियों के साथ सुकन्या जी वन भ्रमण के लिए निकल पड़ी बांवी के पास पहुंच कर विल से निकलने वाले दिव्य प्रकाश को देख कर कौतूहल बस उसमें एक डंडी डाल दी । ऋषिराज की दोनों आंखें फूट गयी । महात्मा की आंखों से रक्त की धारा बहती देखकर सुकन्या डर से कांपने लगी । अयोध्या नरेश सूचना पाकर आये,, विधिवत च्यवन मुनि का पूजन करके बारंबार क्षमा याचना मांगते हुए अपनी पुत्री को पत्नी के रूप में अंगीकार करने की प्रार्थना की ।
महर्षि जी के द्वारा सुकन्या का वरण किया गया । कालांतर में अश्वनी कुमार पधारे उनके द्वारा चवनप्राश जैसे आंवलेह को प्रथम बार तैयार किया गया । महर्षि को दिव्य औषधि मिश्रित सरोवर में स्नान करने के लिए कहा गया । स्नान के बाद ऋषि राज तरुण हो गये । अश्विनी कुमारों को यज्ञ में भाग दिलाने का घोष करते हुए देवताओं के विरुद्ध एक नयी चुनौती च्यवन मुनि ने प्रस्तुत कर दी । महर्षि जी के द्वारा विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया । जिसमें देवराज इंद्र ने बज्र का प्रहार च्यवन मुनि को मार डालने के लिए,, करना चाहा । लेकिन महान तपस्वी के शरीर से एक दिव्य तेज प्रकट हुआ । जिसने देवराज इंद्र के हाथों का स्तंभन कर दिया । चारों तरफ हाहाकार मच गया । त्रिदेव की उपस्थिति में देवराज इंद्र को ऋषि द्वारा कष्ट मुक्त कराया गया ,, और अश्विनी कुमारों को यज्ञ भाग दिलाया गया ।
द्वापर के समापन के समय इसी भूमि से महर्षि च्यवन मुनि वशिष्ठ जी अत्रि महर्षि के साथ जब परीक्षित जी को जव श्राप लगा था कि सातवें दिन तक्षक के डसने से राजन तेरी मृत्यु होगी । परीक्षित जी के सम्मुख आपने जय घोष कर दिया कि जिसकी रक्षा संत करेंगे । उसकी रक्षा में भगवंत अवश्य पधारेंगे । परीक्षित तेरी मृत्यु अकाल नहीं होगी । तेरी मृत्यु को संवारने के लिए स्वयं द्वारिकाधीश पधारकर तुझे गोलोक में दिव्य स्थान प्रदान करेंगे ।
कालिकन धाम के पावन स्थान पर मुनिराज ने सतयुग में घनघोर तपस्या करके माता रानी प्रसन्न कर,, माता रानी का दिव्य दर्शन किया । माता जी ने कहां पुत्र वर मांगो। महर्षि च्यवन ने माता रानी के चरणों पर गिरकर ,,अविचल इसी स्थान पर रहने की प्रार्थना की तथा कहा,, जिस तरह आपने मुझ दास पर कृपा की है । इसी तरह अनादिकाल तक यहां पर विराजमान होकर भक्तों के लिए बांझा कल्पतरू होकर सदा विश्व का कल्याण करो।। माता रानी ने एवमस्तु कर जहां भक्तराज चमन मुनि को निहाल किया वहीं इस क्षेत्र के सभी भक्तों के लिए वरदान देने वाली देवी मां कालिका जी के रूप में विश्व प्रसिद्ध हुयीं ।
बाद में देवताओं एवं असुरों के द्वारा जव समुद्र मंथन करके अमृत प्राप्त किया गया तो,, उसकी रक्षा का भार आपके श्री चरणों में समर्पित किया गया ।। उसी समय से अमृत कलश पर विराजमान होने के कारण आपका नाम अमृत कुंड निवासिनी के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
सतयुग कालीन कालिकन धाम के मंदिर और माता रानी के प्रकटोत्सव होने के परम कारण माता रानी सुकन्या और महामुनि च्यवन। सृष्टि के सृजन से संघार तक जब तक यह मंदिर विद्यमान रहेगा । तब तक परम कल्याणकारी माता रानी राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी श्री कालिका जी के साथ महामुनि का नाम भक्तों के द्वारा हृदय की गहराइयों से लिया जाता रहेगा ।। आप ना होते तो माता रानी का दरबार इस पर क्षेत्र ना होता ।
इसलिए माता जी के साथ महामुनि च्यवन जी और माता रानी सुकन्या के श्री चरणों में कोटि-कोटि नमन प्रणाम" ।
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