मां बगलामुखी माता की साधना और सिद्धि - आवरण पूजा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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माता महामाया बगलामुखी
माता महामाया बगलामुखी

  माता महामाया बगलामुखी के पूजन के उपरान्त उनके परिवार का पूजन भी एक आवश्यक पूजनांग है। इसके अभाव में साधक का प्रयास अपूर्ण ही रहेगा। परिवार पूजा के लिये साधक को बगलामुखी यन्त्र का निर्माण करना होगा।

  सर्वप्रथम पूजा स्थान पर गाय के गोबर से लीप लें। फिर उस स्थान पर रेत की मोटी पर्त बिछा लें और उस पर हल्दी से यन्त्रराज का निर्माण करें। यन्त्र का स्वरूप निम्नवत्‌ है-

बगलामुखी यन्त्र
बगलामुखी यन्त्र


यन्त्र पूजा से पूर्व पूजन सामग्री साधक अपने पास पहले से ही रख ले। इस सामग्री में पुष्प, अक्षत, अर्घ्यं पात्र व जल का लोटा होना आवश्यक है, क्योंकि प्रत्येक मन्त्र के अन्त में पुष्प व जल से पूजन व तर्पण किया जाता है।

यन्त्र स्थापना के उपरान्त माँ पीताम्बरा से मानसिक रूप से परिवारार्चन की अनुमति लें, यथा-

श्री पीताम्बरे तत्तदावरण देवता पूजनार्थं अनुज्ञां देहि।”

 

मूल मन्त्र न्यास

 

सर्वप्रथम मूल मत्र से न्यास करे। पहले तीन बार मंत्र से प्राणायाम करे, फिर विनियोग कर ऋष्यादिन्यास करें।

 

मन्त्रोद्धार

 

प्रणवं स्थिरमायां च ततश्च नगलामुखीम्‌।

तदन्ते सर्व दुष्टानां ततो वाचं मुखं पदं॥

स्तम्भयेति ततो जिह्वां कीलयेति पद द्रयम्‌।

बुद्धिं नाशय पश्चात्तु स्थिरमायां समालिखेत्‌॥

लिखेच्च पुनरुद्धार स्वाहेति पदमन्ततः।

षटत्रिंशदक्षरी विद्या सर्वसम्पतकरी मता।

 

यन्त्रोद्धार

 

बिन्दुस्त्रिकोण-षट्‌कोण-वृत्ताष्टदलमेव च।

वृत्तं च षोडशदलं यन्त्रं च भुपुरात्मकम्‌॥

 

 विनियोग

 

सीधे हाथ में जल लेकर मत्र पढे -

 

ॐ अस्य श्री बगलामुखि मन्त्रस्य नारदऋषि त्रिष्टुप छन्दः बगलामुखी देवताह्लीं बीजम्‌ स्वाहा शक्तिः ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।”

(जल पृथ्वी पर छोड दे)

 

ऋष्यादिन्यास

नारद ऋषये नमः शिरसि। (सिर पर दाहिने'हाथ से छुए)

त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। (मुंह को छुए)

बगलामुखी देवतायै नमः हृदि। (हदय को छुए)

ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये। (गुह्य में स्पर्श करे)

स्वाहा शक्तये नमः पादयोः। (पैरों को स्पर्श करे)

 

करन्यास

ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः। (हाथ को अंगूटे का स्पर्श करे)

बगलामुखि तर्जनीभ्यां स्वाहा। (प्रथम अंगुली का स्पर्श करे)

सर्व दुष्टानां मध्यमाभ्यां वषट्‌। (मध्यमा का स्पर्शं करें)

वाचं मुखं पदं स्तम्भय अनामिकाभ्याम्‌ हुम्‌। (अनामिका का स्पर्श करे)

जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्।(अंतिम छोटी अंगुलियों का स्पर्श करे)

शत्रुबुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां फट्‌। (दोनों हथेलियों के आगे व पीछे कै भागों का स्पर्शं करें)

 

 हदयादिन्यास


ॐ हृं हृदयाय नमः। (हदय को दाहिने हाथ से स्पर्श करे)

बगलामुखि शिरसे स्वाहा। (सिर का स्पर्शं करे)

सर्वं दुष्टानां शिखायै वषट्‌।  (शिखा का स्पर्शं कर)

वाचं मुखं पदं स्तम्भय कवचाय हुम्‌। (कवच बनाये )

जिह्वां कीलय नेत्रत्रयाय वौषट्‌। (नेत्रों का स्पर्श करे)

शत्रुबुद्धिं विनाशय ॐ ह्लीं अस्त्राय फट्‌ स्वाहा, (सिर के पीछे से दाएँ हाथ से चुटकी बजाते हुये तर्जनी व मध्यमा से तीन ताली बजाएँ।)  

तदुपरान्त माता का ध्यान करें -


माता बगलामुखी का ध्यान मन्त्र


मध्ये सुधाब्धि-परिमण्डप-रत्नवेद्यां

सिंहासनोपरिगतां, परिपीतवर्णाम्‌।

पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषिताङ्गी

देवीं स्मरामि धृत मुद्गर वैरिजिह्वाम्‌॥

 

जिह्वाग्रमादाय करेण देविं वामेन शत्रुन्‌ परिपीडयन्तीम्‌।

गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढयां द्विभुजा नमामि।॥

 

 इस प्रकार माता का ध्यान करके उनका मानसोपचार पूजन करें, फिर बाह्य पूजन (आवरण पूजा) आरम्भ करें।

 

 सर्व प्रथम यन्त्र का शुद्ध जल से प्रक्षालन करके चन्दन आदि द्रव्यों और मूल मंत्र से पुष्पाञ्जलि अर्पित करे!

अर्घ्य-स्थापना करें। अपने बायीं ओर चतुरस्रवृत्तत्रिकोणात्मक मण्डल बनाकर उसके मध्य में “ॐ पृथिव्यै नमः। ॐ कमठाय नमः। ॐ शोषाय नमः। कहते हुये गन्धाक्षत, पुष्पादि से पूजन कर और “ॐ अग्निमण्डलाय दशकलात्मने बगलार्घ्यं पात्रासनाय नमः” कहकर उस त्रिकोण के ऊपर अर्घ्यपात्र रखकर “ॐ दशकलात्मने अग्निमण्डलाय नमः।” इससे गन्धाक्षत, पुष्प आदि से पूजन करे। ॐ बहिर्मण्डलाय दशकलात्मने श्री पीताम्बरायाः सामान्यार्घ्यपात्रासनाय नमः।“

 

चतुरस्रवृतत्रिकोणात्मक मण्डल का प्रारूप-

चित्र - 2
चित्र - 2


(१) यं धूम्रर्चिषे नमः।

(२) रं उष्मायै नमः।

(३) लं ज्वालिन्यै नमः।

(४) वं ज्वालिन्यै नमः।

(५) शं विस्फुलिङ्गिन्यै नमः।

(६) षं सुश्रियै नमः।

(७) सं स्वरूपायै नमः।

(८) हं कपिलायै नमः।

(९) ठं हव्यवाहाय नमः।

(१०) क्षं कव्यवाहायै नमः।

 

तदोपरान्त-

 

ॐ सूर्यमण्डलाय द्वादशकलात्मने श्री पीताम्बरार्ध्यपात्राय नमः।”

 

फिर अर्घ्य पात्र का पूजन करे।

 

(१) कं भं तपिन्यै नमः।

(२) खं वं तापिन्ये नमः।

(३) गं फं भूप्रायै नपः।

(४) घं पं मारिच्यै नमः।

(५) डं नं ज्वालिन्यै नमः।

(६) चं धं रुच्यै नमः।

(७) छं दं सुषुम्णायै नमः।

(८) जं थं भोगदायै नमः।

(९) भं तं विश्वायै नमः।

(१०) जं णं बोधिन्यै नमः।

(११) रं ढं धारिण्यै नमः।

(१२) ठं डं क्षमायै नमः।

 

फिर प्राण-प्रतिष्ठा करे  -

 

 प्राण-प्रतिष्ठा

 

शं षं सं हं कं क्षं वं लं रं यं मं भं बं फं पं नं धं दं थं तं णं ढं डं ठं टं ञं झं जं छं चं डं घं गं खं कं अः अं ओं औं लॄं लृं ॠं ऋं आं अं

अब पात्र मे अर्घ्यं रूप मे जल भरें और उसके ऊपर “ॐ सोममण्डलाय षोडशकलात्मने बगलार्घ्यमृताय नमः।”

 

 षोडशकलाएँ 

 

(१) अं अमृतायै नमः

(२) आं मानदायै नमः

(३) इं पूषायै नमः।

(४) ईं तुष्टयै नमः।

(५) उं पुष्टयै नमः।

(६) ऊं रत्यै नयः

(७) ऋं धृत्यै नमः।

(८) ॠं शशीन्यै नमः।

(९) लॄं चन्द्रिकायै नमः।

(१०) लृं कान्त्यै नमः।

(११) एं ज्योत्सनायै नमः।

(१२) ऐँ श्येन्यै नमः।

(१३) ओं प्रीत्यै नमः।

(९४) औं अंगदायै नमः।

( १५) अं पूर्णायै नमः।

( १६) अः पूर्णामृतायै नमः।

पूजन करके अंकुश मुद्रा से सूर्यमण्डल से तीर्थ का आह्वान करके, जल में षडङ्गन्यास करके, धेनु मुद्रा से अमृतीकरण करते हुये उस जल में भगवती का ध्यान करते हुए शंख मुद्रा तथा योनिमुद्रा का प्रदर्शन करें व मूल मन्त्र से देवी का गन्धादि से पूजन करे। जल को मत्स्य मुद्रा से आच्छादित करते हुये आठ बार मूल मन्त्र से अभिमन्त्रित करें। इस जल को अपने ऊपर तथा पूजा सामग्री पर छिडकें।

 

अब यन्त्र पूजन आरम्भ करें।

 

 सबसे पहले आप उत्तर भाग में “गुं गुरुभ्यो नमः” तथा दाहिनी ओर “गं गणपतये नमः” बोलकर

पुष्पादि से पूजन करें। अब यन्त्र रज के मध्य में पूजन करे।

 

पीठ पूजन


  1. ॐ मं मण्डूकाय नमः।
  2. ॐ कां कालाग्निरुद्राय नमः।
  3. ॐ मं मूल प्रकृत्यै नमः।
  4. ॐ आं आधारशक्तयै नमः।
  5. ॐ कूं कूर्माय नमः।
  6. ॐ धं धराय नमः।
  7. ॐ सुं सुधासिन्धवे नमः।
  8. ॐ श्वें श्वेतदीपाय नपः।
  9. ॐ सुं सुराङप्रिपेष्यो नमः।
  10. ॐ मं मणिहर्म्याय नमः।
  11. ॐ हे हेमपीठाय नमः।

 

अग्न्यादि-पीठ पाद चतुष्टये

 

ॐ धं धर्माय नमः।

ॐ ज्ञां ज्ञानाय नमः।

ॐ वै वैराग्याय नमः।

ॐ ऐं ऐश्वर्याय नमः।

 

पूर्वादिपीठगात्रचतुष्टये

 

ॐ अं अधर्माय नमः।

ॐ अं अज्ञानाय नमः।

ॐ अं अवैराग्याय नमः।

ॐ अं अनैश्वर्याय नमः।

 

मध्ये

 

ॐ अं अनन्ताय नमः।

ॐ तं तत्वपदमासनाय नमः,

ॐ विं विकारात्मक केशरेभ्यो नमः।

ॐ प्रं प्रकृत्यात्मक पत्रेभ्यो नमः।

ॐ पं पञ्चाशतवर्णं कर्णिकायै नमः।

ॐ सं सूर्यमण्डलाय नमः।

ॐ इं इन्दुमण्डलाय नमः।

ॐ पां पावकमण्डलाय नमः।

ॐ सं सत्वाय नमः।

ॐ रं रजसे नपः।

ॐ तं तमसे नमः।

ॐ आं आत्मने नमः।

ॐ अं अन्तरात्मने नमः।

ॐ पं परमात्मने नमः।

ॐ ज्ञां ज्ञानात्मने नमः।

ॐ मां मायातत्वाय नमः।

ॐ कं कलातत्वाय नपः।

ॐ विं विद्यातत्वाय नमः।

ॐ पं परमतत्वाय नमः।

 

तदोपरान्त पूर्व आदि दिशा में अष्टदल पर नव शक्तियों का पूजन करे -

 

ॐ जयायै नमः।

ॐ विजयायै नमः।

ॐ अजितायै नमः।

ॐ अपराजितायै नमः।

ॐ नित्यायै नमः।

ॐ विलासिन्यै नमः।

ॐ दोग्धयै नमः।

ॐ अघोरायै नमः।

ॐ मंगलायै नमः

 

उपरोक्त पीठ शक्ति पूजन करने के उपरान्त यन्त्र को दूध व जल कौ धार आदि प्रदान करके निम्नांकित मत्रोच्चार करें-

ॐ ह्लीं बगलामुखी योग पीठाय नमः

 तदोपरान्त माता का ध्यान करें कि उनके मुख से तेज निकल रहा है। आप भी अपने हृदय से तेज निकालकर देवी के तेज के साथ संयोजन कर, अंजलि में पुष्प लेकर, मूल मन्त्र से यन्त्र पर स्थापना करे। फिर यन्त्र में भगवती का आह्वान करते हए, आह्वानी, स्थापिनी, सन्निधापिनी, सन्निरोधिनी मुद्राओं का प्रदर्शन करते हुये “हुं ” से अवगुण्ठित कर “श्री पीताम्बरे सकलीकृता भव, सकलीकृता भव।” फिर “श्री पीताम्बरे इहाऽमृतीकृत्य भव, इहाऽमृतीकृत्य भव ” धेनुमुद्रा से अमृती कर महामुद्रा से अमृती कर पराम्बा के अंग में षडंगन्यास कर प्राण प्रतिष्ठा करे

 

प्राण-प्रतिष्ठा

 

भगवती के हदय को स्पर्श करते हुये विनियोग करे –

 

 विनियोग  

 

 ॐ अस्य श्री प्राणप्रतिष्ठामन्त्रस्य ब्रह्माविष्णुरुद्रा ऋषयः ऋग्यजुस्सामानिच्छन्दांसि, पराऽऽख्या प्राणशक्ति्देवता, आं बीजं, हीं शक्तिः, क्रौं कीलकम्‌ देवी प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः।

 

 ऋष्यादिन्यासः

 

ॐ अगुष्ठयोः ॐ आं ह्रीं क्रौं अं कं खं गं घं ङं आं ॐ हीं वायवग्निसिलिल पृथ्वीस्वरूपाऽऽत्मनेंऽग प्रत्यंगयौः तर्जन्ययोश्च ॐ आं ह्रीं क्रौं इं चं छं जं झं ञं ईं परमात्मपरसुगन्धाऽऽत्मने शिरसे स्वाहा मध्यमयोश्च। ॐ आं ह्रीं क्रौ उं टं ठं डं ढं णं ऊं श्रोत्रत्वक्चक्षु-र्जिह्वाघ्राणाऽऽत्मने शिखायै वषट्‌ अनामिकयोश्च। ॐ आं हीं क्रौ एं तं थं दं धं नं ऐं प्राणात्मने-कवचाय हुं कनिष्ठिकयोश्च। ॐ आं ह्रीं क्रौं ओं पं फं बं भं मं औं वचनादानगमनविसर्गानन्दाऽऽत्मने ओं नेत्रत्रयाय वौषट्‌। ॐ आं ह्रीं क्रौ यं वं रं लं वं शं षं सं हों हं सः मनोबुद्धयहंकारचित्ताऽऽत्मने अस्त्राय फट्‌।

 

इस प्रकार न्यास करके पुष्पादि से यन्त्र मे हृदय को स्पर्शं करते हुये बोलै-

 

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं वं रं लं वं शं षं सं हों हं सः बगलाया जीव इह स्थितः। ॐ आं ह्रीं क्रौं वं यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः बगलाया सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितः। ॐ आं ह्रीं क्रौं वं यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः बगलाया वाङमनश्चक्षु-श्रोत्र-घ्राण-प्राणा इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।

 तदोपरान्त भगवती का पंचोपघार अथवा षोडशोपचार से पूजन कर पुष्पाञ्जलि लेकर देवी से परिवारार्चन की अनुमति प्राप्त करे।

सच्चिन्मये। परे! देवि! परामृतरसप्रिये!।

 अनुज्ञां देहि देवेशि! परिवार्चनाय मे!

 

 प्रथम आवरण

 

(१) ॐ सत्वाय नमः। ॐ सत्व श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि

(२) ॐ रजसे नमः। ॐ रज श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि।

(३) ॐ तमसे नमः। ॐ तम श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि।

चित्र संख्या - ३
चित्र संख्या - ३


अभीष्ट सिद्धिं मे देहि! शरणागत वत्सले।

भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणाय ते नमः॥

 

(इस मन्त्र से पुष्पाञ्जलि अर्पित करें)

 

षटकोण में


हृदये (४) ॐ ह्लीं नमः।

छिरसि (५) ॐ बगलामुखि नमः।

शिखायै (६) ॐ सर्वदुष्टानां नमः।

कवचाय्‌ (७) ॐ वाचं मुखं पदं स्तम्भय नमः।

नेत्र त्रयाय (८) ॐ जिह्वां कीलय नमः।

अस्त्राय (९) ॐ बुद्धिं विनाशय ह्लाी ॐ स्वाहा।

चित्र संख्या - ४
चित्र संख्या - ४


ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सले।

भक्तया समर्पये तुभ्यं द्वितीयावरणाय ते नमः॥

 

(इस मन्त्र से पुष्पाञ्जलि अर्पित करे!)

 

मन्त्र पूजा

(पूर्वादि अष्ट दल मे पीछे के भाग में)

 

(१०) ॐ ब्राहयायै नमः।

(११) ॐ माहेश्वर्यै नमः।

(१२) ॐ कौमार्यै नमः।

(१३) ॐ वैष्णवै नमः।

(१४) ॐ वाराह्यै नमः।

(१५) ॐ इन्द्राण्यै नमः।

(१६) ॐ चामुण्डायै नमः।

(१७) ॐ महालक्ष्यै नमः।

चित्र संख्या- 5
चित्र संख्या- 5

 

अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सले।

भक्तया समर्पये तुभ्यं तृतीयावरणाय ते नमः॥

(यन्त्रराज को पुष्पाञ्जलि अर्पित करें!)

 

अष्टदल के अग्रभागों में पुनः पूजा का क्रम जारी करें-


(१८ ) ॐ असितांग भैरवाय नमः।

(१९) ॐ रुरु भैरवाय नमः।

(२०) ॐ चण्डभैरवाय नमः।

(२१) ॐ क्रोध भैरवाय नमः।

(२२) ॐ उन्मत्त भैरवाय नमः।

(२३) ॐ कपाल भैरवाय नमः।

(२४) ॐ भीषण भैरवाय नमः।

(२५) ॐ संहार भैरवाय नमः।

चित्र संख्या-६
चित्र संख्या-६


पूजनोपरान्त यन्त्रराज को पुष्पाञ्जलि अर्पित करें -


अधिष्ठ सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले

भक्त्या समर्पये तुभ्यं चतुर्थावरणाये ते नमः॥


घोडशदल मं पुनः पूजा का क्रम जारी करे -


(२६) ॐ मंगलायै नमः।

(२७) ॐ स्तभिन्यै नमः।

(२८) ॐ जुंधिण्यै नमः।

(२९) ॐ मोहिन्यै नमः।

(३०) ॐ वश्यायै नमः,

(३९) ॐ बलायै नमः।

(३२) ॐ अचलायै नमः।

(३३) ॐ भुधरायै नमः।

(३४) ॐ कल्पषायै नमः।

(३५) ॐ धाञ्यै नमः।

(३६ ) ॐ कलनायै नमः।

(३७) ॐ कालाकर्षिण्यै नमः।

(३८) ॐ भ्रामिकायै नमः।

(३९) ॐ मदंगमनाय नमः।

(४०) ॐ भोगस्थायै नमः।

(४१) ॐ भाविकायै नमः।

चित्र संख्या -७
चित्र संख्या -७


पुनः यन्त्रराज को पुष्पाञ्जलि अर्पित करे ।

 

अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले।

भक्तया समर्पये तुभ्यं पञ्चमावर्णाय ते नमः॥

 

भूपुरस्य पूर्वादिचतुर्द्वारे -

पुनः पूजा का क्रम जारी करे

 

(४२) ॐ गं गणपतये नमः।

(४३) ॐ बं बटुकायै नमः।

(४४) ॐ यां योगिनिभ्यो नमः।

(४५) ॐ श्चं क्षेत्रपालाय नमः।

चित्र संख्या - ८
चित्र संख्या - ८


पुनः पुष्पाञ्जलि अर्पित करें-

अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले।

भक्तया समर्पये तुभ्यं षष्ठावरणाय ते नमः॥

 

पूर्वं से अग्निकोण क्रम में - पूजा क्रम आरम्भ करें -


(४६) ॐ लं इन्द्राय नमः।

(४७) ॐ रं अग्नये नमः।

(४८ ) ॐ मं यमाय नमः।

(४९) ॐ क्षं निक्रत्यै नमः।

(५०) ॐ वं वरुणाय नपः।

(५९) ॐ यं वायवे नमः।

(५२) ॐ कं कुबेराय नमः।

(५३) ॐ हं ईशानाय नमः।

(५४) ॐ आं ब्रह्मणे नमः।

(५५) ॐ हीं अनन्तायै नमः।

(५६ ) ॐ वं वज्ञाय नपः।

(५७) ॐ शं शक्तयै नमः।

(५८) ॐ दं दंडाय नमः।

(५९) ॐ खं खड्गाय नमः।

(६०) ॐ पं पाशाय नमः।

(६९) ॐ अं अंकुशायै नमः।

(६२) ॐ गं गदायै नमः।

(६३) ॐ त्रिं त्रिशुलाय नमः।

(६४) ॐ पं पदाय नमः।

(६५) ॐ चं चक्राय नमः।

 

पुनः पुष्पाञ्जलि यंत्रराज को अर्पित करे।

 

अभीष्ठ सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले।

भक्तया समर्पये तुभ्यं सप्तावरणाय ते नमः॥

 

यन्त्र पूजा के उपरान्त मूल मन्त्र से धूप, दीप आदि कर भगवती को प्रदान करें स्तोत्र आदि का पाठ करे।

 

 यदि अनुष्ठान करना है, तो पुरुश्चरण हेतु जप आरम्भ करे। यदि सामान्य रूप से जाप करे तो कम से कम एक माला करे। यदि दस माला करें तो अति उत्तम होगा, क्योकि भण्डार में जितना अधिक संग्रह होगा, उतने ही सफल आप होगे।

 प्रत्येक देवी, देवता अथवा आयुध के “नमः” तक उच्चारण के उपरान्त “श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि”  का उच्चारण करते हुये पुष्प, पुष्प मिश्रित अक्षत अथवा केवल अक्षत चढाकर दुग्ध अथवा जल से तर्पण करे।

यथा-

ॐ गं गणपतये नमः ” के उपरान्त “ॐ गणपति श्री पादुकां पूजयामि (अक्षत आदि चढ़ाएँ) तर्पयामि। (दुग्ध अथवा जल चढ़ाएँ) क्रम संख्या १ से क्रम संख्या ६५ तक यही आवृत्ति रहेगी।

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