कुबेर की पोटली
(हल्दी-गांठ, श्वेत-तिल, धनिया-बीज, पीली-सरसो, कमल-गट्टा, गोमती-चक्र, कौड़ियाँ, घुंघची, मजीठ, अक्षत, दुर्बा, पुष्प, स्वर्ण अथवा रजत मुद्रा सहित सामर्थ्य अनुसार राजकीय मुद्राएँ)
1. हल्दी गांठ
लक्ष्मी जी को प्रसन्नता, सकारात्मकता और उर्जा देने वाली दैवीय शक्तियों में से एक माना जाता है और यह सामान्य गुण हल्दी की गाँठ में भी पाया जाता है, क्योकि शास्त्रों के अनुसार घर में रखी हल्दी की गाँठ को नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा व बुरी शक्तियों नष्ट करने वाला द्रव्य मानते हैं।
बृहस्पति ग्रह से आने वाली शक्ति (किरणों के रूप में) सूर्य की अति दमदार किरणों का सानिध्य पाकर (1) पत्थर में घुसी तो पुखराज (2) वनस्पति में घुसी तो (अ) धरती के अन्दर हल्दी (ब) धरती के बाहर केला । अर्थात घर /जेब में रखी हुई हल्दी की गाँठ लक्ष्मी जी का प्रतिनिधित्व कर हर प्रकार से सुरक्षा प्रदान करती है।
गृह को नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा देने व बुरी शक्तियों को नष्ट करने के उद्देश्य से मंगलमयी माँ लक्ष्मी के प्रतिनिधित्व रुपी हल्दी की गाँठ को कुबेर पोटली में रखते हैं।
2. श्वेत तिल
तिल चाहे श्वेत हो या काले दोनों ही तिल विष्णु को अतिप्रिय है, किन्तु काला रंग लक्ष्मी कर्म व पूजा में वर्जित हो जाता है। इसलिए लक्ष्मी कर्म व पूजा में श्वेत-तिल का प्रयोग आवश्यक होता है। मनुस्मृति में तिल को दारिद्रय-नाशक और आयुर्वेद में तिल को रोग-नाशक कहा गया है। लक्ष्मी कर्म में श्वेत तिल उपयोग से जल्दी ही आर्थिक लाभ होता है और यदि गौ घृत में श्वेत तिल मिलाकर लक्ष्मी या श्री सूक्त का हवन किया जाये तो, माता लक्ष्मी की अति शीघ्र कृपा मिलती है।
विष्णु-प्रिय, दारिद्रय-नाशक, रोग-नाशक श्वेत तिल को कुबेर पोटली में रखने से माँ लक्ष्मी की अतिशीघ्र कृपा मिलती है।
3. धनिया बीज
माया रुपी लक्ष्मी जी को सम्बोधित मुहावरा उन्नत-माया, निरोगी-काया का सीधा संबंध धन और स्वास्थ्य से जुड़ता हैं, क्योकि अगर स्वास्थ्य न हो, तो धन भी कम ही आता है और यदि आ भी जाए, तो टिक नहीं पाता। संभवतः इसी तथ्य पर सनातनी परंपरा में स्वास्थ्य को भी सर्वोत्तम धन कहा जाता है। माँ लक्ष्मी को भी चिकित्साविद माना गया है, क्योकि समुन्द्र मंथन से हलाहल-विष, कामधेनु-गाय, उच्चै:श्रवा-घोड़ा, ऐरावत-हाथी, कौस्तुभ-मणि, कल्प-वृक्ष, अप्सरा रंभा, वारुणी, चंद्रमा, पांचजन्य-शंख, पारिजात-वृक्ष, शारंग-धनुष, श्री धन्वंतरि जी की उत्पत्ति के उपरान्त ही समग्र निष्कर्ष रुपी में माँ लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। इसीलिए माँ लक्ष्मी की अतिप्रिय औषधि धनिया बीज का उपयोग कुबेर पोटली में अवश्य होता है, क्योकि धनिया बीज का धन और स्वास्थ्य गहरा सम्बन्ध है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में धनिया बीज शक्तिशाली प्रतिरोधकता बढ़ाने वाला घटक है, जो संपूर्ण पाचन तन्त्र को बलि करके रोगाणुरोधी गुण प्रदान करता है, इससे शुगर, उदरवायु (गैस), मूत्र प्रवाह इत्यादि नाना प्रकार की रोग व्याधियां काया से दूर रहती है और मुख तेजस में भी लगातार वृद्धि करता हैं।
माँ लक्ष्मी की अतिप्रिय औषधि धनिया-बीज को शक्तिशाली प्रतिरोधकता स्वास्थ्य वर्धक और सतत तेजस वृद्धि वाले घटक मानते हुए रोगाणुरोधी काया और सुदृण पाचन तन्त्र के निमित्त कुबेर पोटली में रखने की प्रथा हैं।
4. पीली सरसों
पीली सरसो के अनेको उपयोग, प्रयोग और लाभ शास्त्रों में वर्णित है, किन्तु सरसो का एक गुण अति विशिष्ट माना गया है और वो है, नकारात्मक शक्तियों को अपने में समाहित कर लेने का गुण। मां लक्ष्मी स्वयं ही प्रसन्नता, सकारात्मकता और उर्जा देने वाली दैवीय शक्ति है, इनके आस-पास नकारात्मक शक्तियों का वास सम्भव नहीं होता। लक्ष्मी आगमन की बाधाओं को समाप्त करने के लिए ही पीली सरसो का उपयोग होता है।
पीली सरसो के उपयोग से गृह कलह-कलेश, नकारात्मक ऊर्जा, पितृ-दोष, दृष्टि-दोष, भूत-प्रेत, जादू-टोना, बुरी शक्तियों का साया अथवा अन्य किसी भी प्रकार की नकारात्मक शक्ति नष्ट होती है, जो गृह सुख-शांति को बढाती है। इसिलए चांदी के डिब्बी या कुबेर पोटली में पीली सरसो मुख्य माना जाता है, जिससे धन आगमन बाधित नहीं होता है। पूजन से पूर्व घर के सारे कोनों में पीली सरसों का छिड़काव कर पीत वस्त्र में कुछ सरसों के दानों को कपूर के साथ बांधकर घर के मुख्य दरवाजे पर लटकाने से नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश बाधित होता है।
नकारात्मक शक्तियों को अपने में समाहित करते हुए सकारात्मकता उर्जा संचारित कर गृह कलह-कलेश, नकारात्मक ऊर्जा, पितृ-दोष, दृष्टि-दोष, भूत-प्रेत, जादू-टोना, बुरी शक्तियों के प्रभाव को दूर रखने के लिए पीली सरसो को कुबेर पोटली में रखते हैं।
5. कमल गट्टा
मां लक्ष्मी को महाविद्या कमला या पद्माक्षी के नाम से भी जाना जाता है। पदमा शब्द का निर्माण पदम से हुआ है जिसका अर्थ है कमल। पदम से उत्पन्न पदमा को ही धन की मूल देवी माना जाता है। माँ लक्ष्मी देवी का श्रीमुख पद्म के समान सुंदर, कांतियुक्त है, ऊरू पद्मा समान है, इनकी प्रसन्नता के लिए कमल गट्टा प्राय: सरोवरों और झीलों में पैदा होते हैं। कमल के पांचों अंगों में से देवी कमला का वास होता है। देवी कमला को कमल का हर एक अंग प्रिय है लेकिन इन्हें सर्वाधिक प्रिय है कमल का बीज अर्थात कमल गट्टा। इसीलिए कमल पुष्प विष्णु को भी अत्यधिक प्रिय है| कुबेर पोटली में 6 कमलगट्टे पर लाल सिंदूर लगाकर रखने पर मां की विशेष कृपा रहती है, साथ ही मां लक्ष्मी, भगवान विष्णु और कुबरे जी की भी कृपा मिलती है। मान्यता है कि जो मनुष्य उत्तम लक्ष्मी की प्राप्ति की कामना से दीवाली, नवमी, अक्षय तृतीया और धनतेरस के दिन 108 दाने की कमल गट्टे की माला द्वारा कनकधारा मंत्र / स्तोत्र का पाठ या जप कर ले, उसके पास धन व स्वर्ण की वर्षा होती है। कमल गट्टा से वजन बढ़ने की समस्या, डायबिटीज़, पाचन तंत्र, रक्त संचार की व्याधियों में लाभ मिलता है।
महाविद्या कमला (लक्ष्मी माँ) या पद्माक्षी की प्रसन्नता के लिए कमल गट्टा कुबेर पोटली में रखा जाता है।
6. गोमती-चक्र
लक्ष्मी जी की कृपा मात्र से ही सभी कार्य पूर्ण होते हैं। लक्ष्मी जी को तीनो लोको के संचालन चक्र का संचालक कहा जाता है। गोमती चक्र, देवी लक्ष्मी के चक्र संचालन का प्रतिनिधित्व करता है, जिसकी स्थापना से लक्ष्मी जी गृह संचालन में भी प्रतीकात्मक भूमिका का निर्वहन करती हैं। गोमती चक्र का उपयोग विशेष रूप से सौभाग्य, क़र्ज़ मुक्ति और सांसारिक गति में सद्गति की प्रेरणा देता है साथ ही लक्ष्मी जी को विशेष प्रसन्नता देता है।
गोमती चक्र, सुदर्शन चक्र के रूप में शंख रूप का एक पत्थर, जो कुंडली में लिपटे दिव्य सांप जैसा दिखता है। गोमती चक्र को गौ-नेत्र मानते हुए भगवान शिव के नेत्र भी कहा जाता हैं। इससे मन की शांति, अधिक चेतना, बेहतर भक्ति, सभी प्रकार की सुरक्षा, समाज में प्रतिष्ठित, वित्तीय विकास, एकाग्रता, व्यापार वृद्धि, बच्चों की सुरक्षा, पूजा की शक्ति के साथ समृद्धि, खुशी, अच्छा स्वास्थ्य, पर्याप्त धन, बुरे प्रभावों से बचाने, बीमारी को ठीक करने की विशेष शक्तियाँ होती हैं। वास्तु दोष के बुरे प्रभाव को खत्म करने के लिए भवन की नींव में 11 गोमती चक्र गाड़े जाते हैं। गोमती चक्र का उपयोग लक्ष्मी रूप में आन्तरिक सभी चक्रों को भी गति प्रदान करता है।
तीनो लोको के संचालन चक्र की संचालिका लक्ष्मी जी के संचालन प्रतीक गोमती चक्र का उपयोग लक्ष्मी के प्रतिनिधित्व रूप में विशेष रूप से कुबेर पोटली में रखते हैं।
7. कौड़ी
लक्ष्मी जी के वैभव का प्रतीक कौड़ीयों को माना जाता है, जिनके पास नाना प्रकार की कौड़ियाँ संचित रहती हैं, वहां दारिद्य, क़र्ज़, अपयश की न्यूनतम रहती है और आस-पास में विकास, एकाग्रता, सुरक्षा, शांति, चेतना, स्वास्थ्य व प्रतिष्ठा सदैव बना रहता है। मान्यता है कि 7 या 11 कौड़ियों को केसर, हल्दी, चन्दन के घोल में भिगोकर लाल वस्त्र में बांधकर घर या दुकान या ऑफिस के गुप्त स्थलों पर रखने से लक्ष्मी जी की कृपा मिलती है और धन सम्पदा, वैभव, ऋद्धि सिद्धि सभी कुछ उतरोत्तर बढ़ता है।
वैभव की प्रतीक कौड़ीयां लक्ष्मी जी के कृपारूप का प्रतिनिधित्व करती है, जिनके बिना कुबेर पोटली अधूरी ही मानी जाती हैं।
8. घुंघची
घुंघची (गूंजा) के लाल बीज, माँ लक्ष्मी के सवारी (उल्लू) के नेत्रों के रूप में निरुपित किया जाता है। मान्यता है कि माँ लक्ष्मी की सवारी के नेत्र पुरे वर्ष घर-परिवार के रोग व्याधियों और दारिद्य को देखती है और उनका शमन कराती है, क्योकि आयुर्वेद के अनुसार गुंजा वीर्यवर्द्धक, बलवर्द्धक, अन्यंत मधूर, पुष्टिकारक, भारी, कड़वी, वात नाशक बलदायक तथा रुधिर विकारनाशक तथा बालों के लिए लाभकारी होता है। ज्वर, वात, पित्त, मुख शोष, श्वास, तृषा, आंखों के रोग, खुजली, पेट के कीड़े, कुष्ट (कोढ़) रोग को नष्ट करने वाले घुंघची बीज वात नाशक और अतिबाजीकरण होते हैं।
कुबेर पोटली में रखी घुघुचियाँ माँ लक्ष्मी की सवारी उल्लू के नेत्रों के रूप में पुरे वर्ष घर-परिवार के रोग व्याधियों और दारिद्य को देखती है और उनका शमन कराती है।
9. मजीठ
माँ लक्ष्मी को भी चिकित्साविद माना गया है, इसीलिए माँ लक्ष्मी की अतिप्रिय औषधि मंजिष्ठा का उपयोग कुबेर पोटली में अवश्य होता है। आयुर्वेदिक प्रणाली में मूल्यवान औषधीय पौधे की जड़ी-बूटी से अनगिनत रोगों से निजात पाने और शारीरिक समस्याओं को दूर होते हैं। मजीठ को मंजिष्ठा कहा जाता है। चरक संहिता व सुश्रुत संहिता के उल्लेख में मंजिष्ठा को वर्ण्य, विषघ्न तथा ज्वरहर महाकषाय में विसर्प या हर्पिज़ की चिकित्सा, प्रियंग्वादिगण व पित्तसंशमन द्रव्य में इसकी गणना है। यह विष, कफरोग, सूजन, योनिरोग, नेत्ररोग, कान का रोग, कुष्ठ, रक्तदोष, प्रमेह या मधुमेह, स्वरभंग, यूरीनरी प्रॉब्लम, बुखार, अर्श या पाइल्स तथा कृमिरोग नाशक होने के साथ ही रक्त को स्वच्छ कर त्वचा बलिष्ठ करता है। गृह में मंजिष्ठा रखने मात्र से उर्जा संचित होती है और निरोगिता बनी रहती है।
पूरे वर्ष घर-परिवार में उर्जा संचारण, निरोगिता बनाये रखने के उद्देश्य से चिकित्साविद लक्ष्मी की अतिप्रिय जड़ी-बूटी मंजिष्ठा औषधि रूप में कुबेर पोटली में रखी जाती है।
10. गुल्लक
पेट रुपी गुल्लक में पुरे वर्ष तक कुबेर जी को भोजन स्वरुप राजकीय मुद्रा दी जाती है। पौराणिक मान्यता है कि जिस घर में कुबेर का पेट प्रतिदिन भरा रहता है, वहां किसी का भी पेट और जेब खाली नहीं रहता है और यदि प्रतिदिन कुबेर का पेट ना भरा जाये, तो अगले दिवस ही खाली पेट कुबेर जी उस स्थान को त्याग देते हैं।
शास्त्रकारों के अनुसार कुबेर धनपति होकर भी लक्ष्मी के समक्ष आधार विहीन हो जाते हैं, क्योकि लक्ष्मी आगमन से ही स्वछता, प्रसन्नता, सुव्यवस्था, श्रमनिष्ठा एवं मितव्ययिता स्थापित हो जाती है, जिसकी आवश्यकता स्वयं कुबेर जी को भी रहती है। लक्ष्मी जी स्वयं जिनकी पत्नी हैं, उन भगवान विष्णु को भी एक बार कुबेर से कर्ज लेना पड़ा था, जिसके परिणाम स्वरूप कुबेर को लक्ष्मी जी ने अपना दास घोषित कर वरदान दिया कि जहां-जहां भी कुबेर जी का आदर सत्कार होगा, वहाँ-वहाँ लक्ष्मी का आवागमन भी अवश्य रहेगा।
आर्थिक सबलता और संचय प्रवृत्ति ही लक्ष्मी जी को गृह में निवासित करा सकती है, क्योकि (आदि-लक्ष्मी, धन-लक्ष्मी, धान्य-लक्ष्मी, गज-लक्ष्मी, सन्तान-लक्ष्मी,वीर-लक्ष्मी, भाग्य-लक्ष्मी, विजय-लक्ष्मी,विद्या-लक्ष्मी) सभी महालक्ष्मीयां संचय-प्रवृत्ति से स्थिर हो सकती है/
लक्ष्मी कुबेर पोटली (सामग्री सहित) में समायोजित पूजन सामग्री की सूची
1. हल्दी गांठ
2. श्वेत तिल
3. धनिया बीज (धान्याकम्)
4. पीली सरसो (सर्षपः)
5. कमल गट्टा (पद्मभिज)
6. गोमती चक्र (धेनुपदी)
7. कौड़ी श्वेत (कपार्ड)
8. कौड़ी बड़ी (कपार्ड)
9. घूघची (कृष्णला)
10. मजीठ (मंजिष्ठा)
11. शुभ चिन्हक
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