गुलाब सखी का चबूतरा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Gulab sakhi ka chabutra
Gulab sakhi ka chabutra 

गुलाब एक निर्धन व्यक्ति का नाम था। बरसाने की पवित्र धरती पर उसका जन्म हुआ। 

 ब्रह्मा आदि जिस रज की कामना करते हैं उसका उसे जन्म से ही स्पर्श हुआ था। 

 पढ़ा लिखा कुछ नहीं था पर सांरगी अच्छी बजा लेता था। श्री राधा रानी के मंदिर के प्रांगण में जब भी पदगान हुआ करता था उसमें वह सांरगी बजाया करता था। 

 यही उसकी अजीविका थी। मंदिर से जो प्रशाद और दान दक्षिणा प्राप्त होती उसी से वो अपना जीवन र्निवाह करता था।

 उसकी एक छोटी लड़की थी। जब गुलाब मंदिर में सारंगी बजाता तो लड़की नृत्य करती थी। 

 उस लड़की के नृत्य में एक आकर्षण था, एक प्रकार का खिंचाव था। उसका नृत्य देखने के लिए लोग स्तंभ की भांति खड़े हो जाते। 

 गुलाब अपनी बेटी से वह बहुत प्यार करता था, उसने बड़े प्रेम से उसका नाम रखा राधा।

 वह दिन आते देर न लगी जब लोग उससे कहने लगे, गुलाब लड़की बड़ी हो गई है। अब उसका विवाह कर दे।

 राधा केवल गुलाब की बेटी न थी वह पूरे बरसाने की बेटी थी। सभी उससे प्यार करते और उसके प्रति भरपूर स्नेह रखते। 

 जब भी कोई गुलाब से उसकी शादी करवाने को कहता उसका एक ही उत्तर होता, शादी करूं कैसे ? शादी के लिए तो पैसे चाहिए न ?

 एक दिन श्री जी के मंदिर के कुछ गोस्वामियों ने कहा, गुलाब तू पैसों की क्यों चिन्ता करता है ? उसकी व्यवस्था श्री जी करेंगी। तू लड़का तो देख ? 

 जल्दी ही अच्छा लड़का मिल गया। श्री जी ने कृपा करी पूरे बरसाने ने गुलाब को उसकी बेटी के विवाह में सहायता करी, धन की कोई कमी न रही, गुलाब का भण्डार भर गया, राधा का विवाह बहुत धूम-धाम से हुआ। राधा प्रसन्नता पूर्वक अपनी ससुराल विदा हो गई।

 क्योंकि गुलाब अपनी बेटी से बहुत प्रेम करता था और उसके जीवन का वह एक मात्र सहारा थी, अतः राधा की विदाई से उसका जीवन पूरी तरहा से सूना हो गया। 

 राधा के विदा होते ही गुलाब गुमसुम सा हो गया। तीन दिन और तीन रात तक श्री जी के मंदिर में सिंहद्वार पर गुमसुम बैठा रहा। 

 लोगों ने उसको समझाने का बहुत प्रेस किया किन्तु वह सुध-बुध खोय ऐसे ही बैठा रहा, न कुछ खाता था, ना पीता था बस हर पल राधा-राधा ही रटता रहता था। 

 चौथे दिन जब वह श्री जी के मंदिर में सिंहद्वार पर गुमसुम बैठा था तो सहसा उसके कानों में एक आवाज आई, बाबा ! बाबा ! मैं आ गई। सारंगी नहीं बजाओगे मैं नाचूंगी।

 उस समय वह सो रहा था या जाग रहा था कहना कठिन था। मुंदी हुई आंखों से वह सांरगी बजाने लगा और राधा नाचने लगी

 मगर आज उसकी पायलों में मन प्राणों को हर लेने वाला आकर्षण था। इस झंकार ने उसकी अन्तरात्मा तक को झकझोर दिया था। 

 उसके तन और मन की आंखे खुल गई। उसने देखा उसकी बेटी राधा नहीं बल्कि स्वयं राधारानी हैं, जो नृत्य कर रही हैं।

 सजल और विस्फारित नेत्रों से बोला, बेटी ! बेटी ! और जैसे ही कुछ कहने की चेष्टा करते हुए स्नेह से कांपते और डगमगाते हुए वह उनकी अग्रसर ओर हुआ राधा रानी मंदिर की और भागीं। गुलाब उनके पीछे-पीछे भागा ।

 इस घटना के पश्चात गुलाब को कभी किसी ने नहीं देखा। उसके अदृश्य होने की बात एक पहेली बन कर रह गई। 

 कई दिनों तक जब गुलाब का कोई पता नहीं चला तो सभी ने उसको मृत मान लिया। 

 सभी लोग बहुत दुखी थे, गोसाइयों ने उसकी स्मृति में एक चबूतरे का निर्माण करवाया।

 कुछ दिनों के पश्चात मंदिर के गोस्वामी जी शयन आरती कर अपने घर लौट रहे थे। तभी झुरमुट से आवाज आई, गोसाई जी ! गोसाई जी ! 

गोसाई जी ने पूछा, कौन ?

गुलाब झुरमुट से निकलते हुए बोला, मैं आपका गुलाब। 

गोसाई जी बोले, तू तो मर गया था। 

 गुलाब बोला, मुझे श्री जी ने अपने परिकर में ले लिया है। अभी राधा रानी को सांरगी सुना कर आ रहा हूं। देखिए राधा रानी ने प्रशाद के रूप में मुझे पान की बीड़ी दी है। 

 गोस्वामी जी उसके हाथ में पान की बीड़ी देखकर चकित रह गए क्योंकि यह बीड़ी वही थी जो वह राधा रानी के लिए अभी-अभी भोग में रखकर आ रहे थे।

गोसाई जी ने पूछा, तो तू अब रहता कहां है ?

उसने उस चबूतरे की तरफ इशारा किया जो वहां के गोसाइयों ने उसकी स्मृति में बनवाया था।

 तभी से वह चबूतरा “गुलाब सखी का चबूतरा” के नाम से प्रसिद्द हो गया और लोगो की श्रद्धा का केंद्र बन गया।

राधा राधा रटते ही भाव बाधा मिट जाए ।

कोटि जन्म की आपदा श्रीराधे नाम से जाय।।

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