अच्छा बोलो, अच्छा सोचो
अच्छा कर्म करो तुम प्यारे!
तन-मन सकारात्मक ऊर्जा
से भर देगा निश्चय प्यारे!
कर्तापन का बोझ वहन कर
क्यों तनाव में मन लाते हो?
जगन्नियन्ता सब कुछ करता
फिर भी मन क्यों भरमाते हो?
मन दुर्बलता, मन ही सबलता
मन हारा, मन जीता है,
मन प्रसन्न मदमस्त रहो नित
आधा दुःख फिर जीता है।
माना, नहीं सहज जीवन है
मन प्रसन्न कैसे रह पाए,
पर तनाव में रहकर भी क्या
कोई समाधान कर पाए?
रहो समर्पित, करो समर्पण
स्वयं कर्म का दर्शक बनकर,
कभी अकर्म न आए मन में
करो कर्म कर्त्तव्य समझकर।
माना चार दिनों का जीवन
लेकिन कौन जिया इच्छा भर?
उन्नीस बीस भले हो जीवन
जियो उसे भी मन प्रसन्न कर....
- © डॉ निशा कान्त द्विवेदी 🙏
सभी को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
thanks for a lovly feedback