कुंभ मेला 12 वर्षों में ही क्यों ? कुंभ के 14 अखाड़े, जानें क्या है महत्व

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  कुंभ मेला 12 वर्षों में एक बार लगता है लेकिन 12 वर्षों में ही क्यों लगता है ? 11 वर्षों में क्यों नहीं लगता ? किसने निर्णय लिया था कि यह मेला 12 वर्षों पर लगा करेगा ? आज इन्हीं प्रश्नों का विश्लेषण कर रहे हैं।

 वास्तव में यह ऋषि मुनियों के एस्ट्रोलॉजी से निकला एक शुभ अवसर था जिस में उन्होंने बताया था कि इंसान की ज़िंदगी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला बृहस्पति ग्रह एक चक्कर क़रीब 12 वर्षों में लगाता है। बृहस्पति ग्रह का हमारे भाग्य चमकाने में बहुत बड़ा हाथ होता है। इसीलिए कुंभ मेला 12 वर्षों में ही लगता है।

 ख़ैर, असल बात तो ये है कि आदिकाल में ही ऋषियों ने कैसे गणना कर ली कि बृहस्पति ग्रह एक चक्कर 12 वर्षों में लगाता है ? उनको कैसे पता चला कि यह ग्रह है? क्या उन्होंने 12 सालों तक देखा ? लेकिन देखेंगे किस चीज से ? ग्रह की चाल (स्पीड) को मापने की विधि क्या थी ?  अब ऐसे प्रश्नों पर शोध करेंगे तो आज के विज्ञान की भारी बेइज़्ज़ती हो जाएगी।

कुंभ के 14 अखाड़े, जानें क्या है महत्व

 कुंभ का मेला विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में से एक है। लाखों की संख्या में लोग इस मेले में शामिल होते हैं। कुंभ का मेला हर 12 वर्षों के अंतराल होता है। लेकिन कुंभ का पर्व हर बार सिर्फ 4 पवित्र नदियों में से किसी एक नदी के तट पर ही आयोजित किया जाता है। जिनमें हरिद्वार में गंगा, उज्जैन की शिप्रा, नासिक की गोदावरी और इलाहाबाद में जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है।

 क्या होते हैं अखाड़े ?

 कुंभ में अखाड़ों का विशेष महत्व होता है। अखाड़े शब्द की शुरुआत मुगलकाल के दौर से हुई। अखाड़ा साधुओं का वह दल होता है, जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत रहता है।

 क्या होती है पेशवाई ?

 जब कुंभ में नाचते-गाते धूमधाम से अखाड़े जाते हैं, तो उसे पेशवाई कहते हैं। कहा जाता है कि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में 13 अखाड़े बनाए थे। तब से वही अखाड़े बने हुए थे। लेकिन इस बार एक और अखाड़ा जुड़ गया है, जिस कारण इस बार कुंभ में 14 अखाड़ों की पेशवाई देखने की मिलेगी।

 आइए जानें इन 14 अखाड़ों के बारे में -

1. अटल अखाड़ा

 इनके ईष्ट देव भगवान गणेश हैं। इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य दीक्षा ले सकते हैं और कोई अन्य इस अखाड़े में नहीं आ सकता है। यह सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक माना जाता है।

2. अवाहन अखाड़ा

 इनके ईष्ट देव श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन दोनों हैं। इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी है।

3. निरंजनी अखाड़ा 

 यह अखाड़ा सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा है। इस अखाड़े में करीब 50 महामंडलेश्वर हैं। इनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिक हैं। इस अखाड़े की स्थापना 826 ईसवी में हुई थी।

4. पंचाग्नि अखाड़ा 

 इस अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते है। इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है।

5. महानिर्वाण अखाड़ा 

 महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का जिम्‍मा इसी अखाड़े के पास है. इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं। इनकी स्थापना 671 ईसवी में हुई थी।

6. आनंद अखाड़ा 

 इस अखाड़े की स्थापना 855 ईसवी में हुई थी। इस अखाड़े के आचार्य का पद ही प्रमुख होता है। इसका केंद्र वाराणसी है।

7. निर्मोही अखाड़ा 

 वैष्णव संप्रदाय के तीनों अणि अखाड़ों में से इसी में सबसे ज्यादा अखाड़े शामिल हैं। इस अखाड़े की स्थापना रामानंदाचार्य ने 1720 में की थी। इस अखाड़े के मंदिर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, राजस्थान आदि जगहों पर स्थित हैं।

8. बड़ा उदासीन पंचायती अखाड़ा 

 इस अखाड़े की शुरुआत 1910 में हुई थी. इस अखाड़े के संस्थापक श्रीचंद्रआचार्य उदासीन हैं. इस अखाड़े उद्देश्‍य सेवा करना है।

9. नया उदासीन अखाड़ा 

 इस अखाड़े की शुरुआत 1710 में हुई थी. मान्यता है कि इस अखाड़े को बड़ा उदासीन अखाड़े के साधुओं ने बनाया था।

10. निर्मल अखाड़ा 

 इस अखाड़े की स्थापना श्रीदुर्गासिंह महाराज ने की थी, जिनके ईष्टदेव पुस्तक श्री गुरुग्रंथ साहिब हैं। कहा जाता है कि इस अखाड़े के लोगों को दूसरे अखाड़ों की तरह धूम्रपान करने की इजाजत नहीं है।

11. वैष्णव अखाड़ा 

 इस अखाड़े की स्थापना मध्यमुरारी द्वारा की गई थी।

12. नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा 

 इस अखाड़े की स्थापना 866 ईसवी में हुई, जिसके संस्थापक पीर शिवनाथ जी हैं।

13. जूना अखाड़ा

 इस अखाड़े के ईष्टदेव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। हरिद्वार में इस अखाड़े का आश्रम है। इस अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज हैं।

14. किन्नर अखाड़ा

 अभी तक कुंभ में 13 अखाड़ों की पेशवाई होती थी, लेकिन इस बार कुंभ में किन्नर अखाड़ा भी शामिल हो चुका है। इस अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी हैं।

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