चुगली के बुरे प्रभाव

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0
maharaj prithu.The bad effects of gossip
maharaj prithu
The bad effects of gossip


 एक दिन राजा पृथु प्रातःकाल घोड़ों के अस्तबल में गए। तभी वहां एक साधु भिक्षा मांगने आया। साधु को प्रातःकाल भिक्षा मांगते देख पृथु क्रोध से भर गए। साधु की निंदा करते हुए उन्होंने बिना सोचे-समझे अस्तबल से घोड़े की लीद उठाकर अपने पात्र में डाल ली। साधु भी शांत स्वभाव का था, अतः वह भिक्षा लेकर वहां से चला गया। उसने वह गोबर कुटिया के बाहर एक कोने में रख दिया। कुछ समय पश्चात राजा पृथु शिकार खेलने गए। पृथु ने जंगल में देखा कि एक कुटिया के बाहर घोड़ों की लीद का बहुत बड़ा ढेर लगा हुआ है। उन्होंने देखा कि वहां दूर-दूर तक न तो कोई अस्तबल था और न ही कोई घोड़ा दिखाई दे रहा था। वह आश्चर्यचकित होकर कुटिया के पास गया और साधु से बोला - "महाराज! एक बात बताइए, यहां न तो कोई घोड़ा है और न ही कोई अस्तबल, फिर इतना सारा घोड़ों का लीद कहां से आया?" संत बोले, "हे राजन! यह गोबर मुझे एक राजा ने भिक्षा में दिया था। अब समय आने पर उसे यह गोबर खाना पड़ेगा।" यह सुनकर राजा पृथु को सारी घटना याद आ गई। वे संत के चरणों में गिर पड़े और क्षमा मांगने लगे। उन्होंने संत से पूछा, "हमने थोड़ा सा गोबर दिया था, पर यह तो बहुत है?" संत बोले, "हम जो भी किसी को देते हैं, वह दिन-प्रतिदिन बढ़ता है और समय आने पर हमारे पास वापस आ जाता है, यह उसी का फल है।" यह सुनकर पृथु की आंखों में आंसू भर आए। उन्होंने संत से विनती करते हुए कहा, "महाराज! मुझे क्षमा कर दीजिए। मैं फिर कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा।" कृपया मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मैं अपने बुरे कर्मों का प्रायश्चित कर सकूं!" राजा की दुखी हालत देखकर संत बोले, "हे राजन! इसका एक उपाय है। आपको कुछ ऐसा करना होगा, जो देखने में तो गलत लगे, पर वास्तव में गलत न हो। जब लोग आपको गलत देखेंगे, तो आपकी आलोचना करेंगे। लोग जितनी अधिक आलोचना करेंगे, आपका पाप उतना ही हल्का होता जाएगा। आपका अपराध आपकी आलोचना करने वालों के हाथों में पड़ जाएगा।

यह सुनकर राजा पृथु महल में आये और खूब विचार किया और अगले दिन सुबह से ही शराब की बोतल लेकर चौराहे पर बैठ गये। सुबह-सुबह राजा को इस हालत में देखकर सब लोग आपस में राजा की आलोचना करने लगे कि यह कैसा राजा है। यह कैसा निंदनीय कार्य कर रहा है। क्या यह सभ्य है?? आदि आदि!!आलो

चना की परवाह किए बिना राजा पूरे दिन शराबी की तरह व्यवहार करता रहा। इस सम्पूर्ण कृत्य के पश्चात जब राजा पृथु पुनः संत के पास पहुंचे तो उन्होंने गोबर के ढेर के स्थान पर मुट्ठी भर गोबर देखा और आश्चर्य से बोले, "महाराज! यह कैसे हुआ? इतना बड़ा ढेर कहां गायब हो गया!!"

संत ने कहा, "हे राजन, यह आपकी अनुचित आलोचना के कारण हुआ है। आपका पाप उन सभी लोगों में समान रूप से विभाजित हो गया है, जिन्होंने आपकी अनावश्यक आलोचना की है।

 जब हम किसी की अनावश्यक आलोचना करते हैं, तो हमें उनके पापों का बोझ उठाना पड़ता है और हमें अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है, चाहे हम हंसकर भुगतें या रो कर। हम जो भी देते हैं, वह आपको वापस मिलेगा!

दूसरों की आलोचना करो और अपना बर्तन भरो। जाने-अनजाने में हम अपने आस-पास के लोगों की आलोचना करते हैं, जबकि हमें उनकी वास्तविक परिस्थितियों का कोई ज्ञान नहीं होता। आलोचना का स्वाद बहुत स्वादिष्ट होता है, इसलिए लगभग हर व्यक्ति इसे चखने के लिए उत्सुक रहता है।

दरअसल आलोचना एक ऐसा मानवीय गुण है जो सभी लोगों में किसी न किसी मात्रा में पाया जाता है। अगर हमें यह पता चल जाए कि दूसरों की आलोचना करने के परिणाम कितने भयानक होते हैं तो हम इस पाप से आसानी से बच सकते हैं।

 रविवार भानु सप्तमी तथा शीतला सप्तमी के इस शुभ दिवस पर सभी सनातनी हिन्दुओं को कोटि कोटि बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएं ।

 आनन्दकन्द , कृपा सिंधु, दीनबंधु , दीनानाथ,दुखहर्ता, भगवान राम की अनुकम्पा से आपको सपरिवार, इष्ट मित्रों एवं सगे संबंधियों सहित सभी को दीर्घजीवन एवं खुशियों से भरा मंगलमय जीवन प्राप्त हो और कर्म पथ पर महान उंचाई उपलब्ध हों ।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top