आज उसका जन्म दिन था। दोनों बच्चे व पत्नी स्वागत में व्यस्त थे। कुछ रिश्तेदार भी आए हुए थे ।टेबल सजाई जा रही थी। रंग बिरंगे गुब्बारे देख कर बच्चे चहक रहे थे।उपहारों के रंग बिरंगे पैकेट्स थे।सभी तैयारियों में लगे थे।बड़ा सा केक टेबल पर सजाया हुआ था और वह न जाने कहाँ खो गया। उसकी स्मृति उसे कई साल पीछे ले आई..! जब वह मात्र बारह-तेरह साल का था । शहर में एक पेड़ के नीचे बैठा रहता। आने-जाने वालों के सामने हाथ फैलाकर भीख मांगता। शाम तक इतना हो जाता कि उसका व उसकी मां का पेट भर जाता।
एक दिन वहां से एक मास्टर साहब गुजरे। वे शहर में नए आए थे। अपने स्कूल तक पैदल ही जाते थे। वह दौड़ कर उनके पास गया। हाथ जोड़कर नमस्ते करके हाथ फैला दिया। उसे कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी कि मास्टर साहब हैं , तो दस का नोट तो हाथ में आएगा ही। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उल्टे उनके भाव से साफ जाहिर हुआ कि उसका इस तरह से हाथ फैलाना उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। फिर भी उन्होंने पांच का सिक्का हथेली पर रख दिया।
एक-दो दिन तो इस तरह रोज मांगते रहने पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। दो पांच रुपए हाथ में रख दिया करते। पर उनके मिजाज से लगता था कि उन्हें भिखमंगों से नफरत है। एक दिन मास्टर साहब को गुस्सा आ ही गया। बुरी तरह से डांट दिया। कहने लगे 'शर्म नहीं आती भीख मांगते हुए ! अच्छे-भले सेहतमंद हो , मेहनत करके खाओ।
तुम्हारी तरह सभी भीख मांगने लग जाएं तो देश में कमाएगा कौन ? हमारे देश के जितने भी भीख मांगने वाले हैं अगर मेहनत करने लग जाएं तो हमारी अर्थव्यवस्था को काफी गति मिल सकती है ! मास्टर साहब के चेहरे पर गुस्से को भांपकर वह चुपचाप गर्दन नीची कर पेड़ की तरफ लौट गया।
अब मास्टर साहब उसे रुपया नहीं देते। वह दौड़ कर उनके पास भी नहीं जाता। बस पेड़ की छाया में बैठा रहता। मास्टर साहब भी तिरछी नजरों से घूरते हुए तेजी से निकल जाते। एक दिन मास्टर साहब खुद उसके पास आए। पास बैठे और हालचाल पूछा। उसे लगा आज साहब मूड में हैं , उसे बीस रुपए तो जरूर देंगे , पर ऐसा नहीं हुआ। वे पैसों की जगह एक पैकेट देकर कहने लगे - 'आज मैं तेरे लिए एक उपहार लाया हूँ।'
फिर पैकेट खोला , उसमें से निकली वजन तौलने वाली मशीन ! उसे देते हुए बोले - 'आज से तुम्हें भीख मांगने की जरूरत नहीं ! ये मशीन सामने रख देना। लोग अपने आप तुलेंगे और तुझे दो रुपए देकर जाएंगे। इससे तुझे किसी के सामने हाथ भी फैलाना नहीं पड़ेगा। तुम अपने मेहनत की खाओगे।' कहकर उन्होंने गाल पर हल्की सी थपकी दी और चले गए। उसकी आंखें भर आईं।
अब स्कूल से लौटते हुए मास्टर साहब हमेशा उसके पास खुद रुकते। उसका हालचाल पूछते , उसकी दिन भर की कमाई के बारे में पूछते। कभी-कभी हंस कर मजाक में कहते - 'पैसों की बचत करके रखना , तेरी शादी में काम आयेंगे !' धीरे-धीरे पैसों की भी बचत होने लगी। इस बीच छोटी सी चाय की रेंकडी भी खोल ली।
दुकान चल निकली तो धंधे का धीरे धीरे विस्तार कर लिया। आज भरा पूरा परिवार , कुछ पैसा , एक मोटर साइकिल , दोस्त सब कुछ है। किसी चीज की कमी नहीं है। पर मास्टर साहब जाने कहां होंगे ! उनका तो इस स्कूल से कुछ ही महीनों बाद तबादला हो गया था।''हैप्पी बर्थडे टू यू' गाने के साथ उसका ध्यान टूटा।
उसने मोमबत्तियां बुझाई। सबने उपहार भेंट किए , पर उसे वह उपहार याद आ रहा था , जिसने उसकी जिंदगी को बदल दिया था। उसी उपहार ने उसे इस मुक़ाम तक पहुंचाया। न जाने कहां होंगे वे मास्टर साहब ! पर जहां भी होंगे सैंकड़ों को नई राह दिखा रहे होंगे। अपने साहब को याद करते हुए उसकी आंखें नम हो आईं।
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