कहानी रक्षाबंधन की

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 रक्षाबंधन का त्यौहार था। सीमा जो हर बार इस त्यौहार पर पन्द्रह दिन पहले से ही आसमान अपने सर पर उठाये घूमती थी इस बार न जाने क्यों थकी हारी व बेसुध सी दिखाई पड़ती थी मानो इस बार त्यौहार नहीं कोई डरावना दिन धीरे-धीरे करीब आ रहा था। घर वाले भी उसके इस व्यवहार से अचंभित व परेशान थे। पूछने पर आंखों से आंसुओं की कुछ बूंदों के अलावा उसका एक भी शब्द ना बोलना सभी को और परेशान कर रहा था। पिता का पहले ही निधन हो जाने के कारण घर में मां और उसका एक बड़ा भाई ही था बड़े भाई के प्यार दुलार ने बहन को कभी पिता की कमी महसूस होने नहीं दी थी उसकी इसी देखभाल और प्यार दुलार के चलते सीमा को कभी अपने पिता की कमी महसूस नहीं होती थी। मजाल था कि दोस्तों और रिश्तेदारों में कभी कोई उसके भाई की बुराई कर पाता। हर किसी से लड़ पड़ती थी।

 भाई का लगन हो चुका था शादी को बमुश्किल महीना भर ही बाकी था ऐसे में वह अभी तक अपनी नई नवेली भाभी के स्वागत में जहां रोज नए नए प्लान बना रही थी उसे अचानक से ऐसा क्या हो गया कि अब उसे इक इक पल भी काटना मुश्किल हो रहा था। इसी बीच कई दिनों के बाद उसके मोबाइल की घंटी बजी और फोन उठाते ही उधर से एक जानी पहचानी सी आवाज में कोई बोला हैलो सीमा कैसी है क्या चल रहा है और बिना रुके ही सवालों पर सवाल और अंत में वो सवाल जो उसे बड़ा परेशान किए हुए था कि इस बार रक्षाबंधन पर क्या गिफ्ट ले रही है। आखिरी सवाल सुनते ही उसकी थोड़ी बहुत बात करने की इच्छा भी मानो दम तोड़ चुकी थी।फिर भी जैसे तैसे करके उसने बोलने की हिम्मत कर धीमी आवाज में कहा कि यार मीना सब ठीक है तुम कहो तो हम बाद में बात करें।मीना कोई और नहीं बल्कि उसकी सबसे अच्छी व एक मात्र करीबी दोस्त थी सो उसे ये जानने में बिल्कुल भी समय नहीं लगा कि सीमा बहुत परेशान है।सो डाटते हुए बोली क्या हुआ अगर अब मुझसे भी बात करने का समय नहीं है तो समझ लो आज ये मेरी आखिरी काल है।इतना सुनते ही सीमा फफक फफक कर रोने लगी और पूछने पर बताया कि यार हर बार महीने भर पहले से ही जो भैया क्या लेगी क्या लेगी की रट लगाए रहते थे इस बार शादी क्या तय हो गई मुझसे गिफ्ट तो छोड़ो राखी के त्योहार की चर्चा तक नहीं की। रोते हुए आगे बोली कि शायद ---- तभी टोकते हुए मीना बोली अरे पगली बस इतनी सी बात देखना तेरे भैया को मैं तुझसे ज्यादा जानती हूं जरूर इस बार कोई सरप्राईज देंगे। परिवर्तन की संभावना से वाकिफ मीना भी मन ही मन परेशान हो रही थी फिर भी ढांढस बंधाते हुए जैसे ही उसका फोन कटा सीमा की जिंदगी के तारों में उतरा थोड़ा सा करंट भी कट चुका था।बहुत दिनों के बाद इतना कुछ बोलने के बाद वो फिर से मौन की चादर ओढ़ किसी कोने में बैठ गई।

आखिर सरकते सरकते रक्षाबंधन का वो दिन आ ही गया। सूर्योदय की पहली किरण से सीमा के मन में आशा की थोड़ी सी किरण जागी जरूर लेकिन दिन ढलने के साथ उसका वो अनदेशा और दृढ़ होता गया कि भैया अब बदल चुके हैं । अब कभी अंत न होने वाली अनंत निशा का अनुभव कर वो घर की एक अंधेरी कोठरी में जैसे ही घुसी। वैसे ही डोर बेल बजी और जैसे ही उसने दरवाजा खोला सामने भैया और उसकी होने वाली भाभी ढेर सारे कपड़ों के साथ फूलों से सजी स्कूटी लिए खड़े थे।दोनों ने हैपी रक्षाबंधन बोला ही था कि आसमान में छाए बादलों व सीमा की आंखों से एक साथ पानी गिरना शुरू हुआ।धन्यवाद बोलने की लाख कोशिशों के बाद भी उसके मुंह से एक भी शब्द निकलने को राजी नहीं थे तभी उसके भैया ने मुस्कराते हुए बोलना शुरू किया और कहा कि बहन इस बार तुम्हारे लिए प्लानिंग करने का जिम्मा तुम्हारी होने वाली भाभी ने लिया था सो उनके ये गिफ्ट्स लो और बदले में जल्दी से दो चाय बनाओ ।सीमा की आंखों में आज जो चमक थी वो ढेर सारे आंसुओं के निकल जाने की वजह से दोगुनी हो चली थी और होती भी क्यों न उसे अपने भाई में पिता के साथ भाभी में एक मां जो मिल चुकी थी। बाकी अपने आप को बोलने के लिए तैयार करने को वो चाय बनाने चली गई ।

लेखक -हेमन्त शुक्ल

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