Ashadh Purnima (Guru Purnima), Gopadma Vrat Puja, Nakshatra Worship, Saraswati Puja, |
आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि के दौरान श्री विष्णु भगवान का पूजन और गुरु का पूजन किया जाता है। वर्ष भर में आने वाली सभी प्रमुख पूर्णिमाओं में एक आषाढ़ पूर्णिमा भी है। इस दिन भी किसी विशेष कार्य का आयोजन होता है और विशेष पूजन भी होता है। इस दिन भी चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं से युक्त होता है।
सत्यनारायण पूजा
सत्यनारायण कथा का पाठ भी पूर्णिमा के दौरान संपन्न होता है। इस दिन मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस कथा को सुनना और पढ़ना आवश्यक होता है। पूर्णिमा तिथि धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस दिन जीवन चंद्रमा की तरह उच्चवल और प्रकाशमान होता है। इस प्रकाश के सामने ईश्वर भी नतमस्तक हुए बिना नहीं रह पाते।
गोपद्म व्रत पूजा
आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गोपद्म व्रत करने का भी विधान होता है। इस दिन श्री विष्णु भगवान का पूजन होता है. इस दिन प्रात:काल व्रत का पालन आरंभ होता है. व्रती को प्रातः स्नान करने के पश्चात श्री विष्णु के नामों का स्मरण करना चाहिए और पूरे दिन श्री विष्णु का ध्यान करना चाहिए। विष्णु भगवान का धूप, दीप, गंध, फूल आदि वस्तुओं से पूजन करनी चाहिए। पूजा के पश्चात ब्राह्मणों को विभिन्न प्रकार के पकवान खिलाने चाहिए तथा वस्त्र, आभूषण आदि दान करना चाहिए। गोपद्म व्रत में गाय का पूजन भी करना चाहिए. गाय को तिलक लगा कर पूजन करके आशीर्वाद लेना चाहिए। गोपद्म व्रत को पूर्ण श्रद्धाभाव से करने पर व्यक्ति के पापों की शांति होती है। इस दिन भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं व्यक्ति को मनोवांछित फल प्राप्त होता है। इस व्रत की महिमा से व्रती संसार के सभी सुखों को प्राप्त कर विष्णु लोक को पाता है।
आषाढ़ पूर्णिमा पर नक्षत्र पूजन का महत्व
पूर्णिमा तिथि हिन्दू पंचांग के अनुसार नक्षत्र के आधार पर भी तय होती है. इस समय आषाढ़ नक्षत्र का पूजन करना भी अत्यंत ही शुभ प्रभाव वाला होता है। यदि किसी जातक का नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा या उत्तराषाढ़ा हो तो उसके लिए इस पूर्णिमा तिथि के दिन दान और तप करने का लाभ प्राप्त होता है।
प्रत्येक माह का नामकरण पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा जिस नक्षत्र में विद्यमान होता है उसके अनुसार होता है। आषाढ़ माह की पूर्णिमा को चंद्रमा यदि पूर्वाषाढ़ा या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में होता है तो यह सौभाग्यदायक बनती है।
आषाढ़ पूर्णिमा पर करें सरस्वती पूजा
इस दिन जो सरस्वती का पूजन करता है, उसकी शिक्षा उत्तम रहने के योग बनते हैं. इस पूर्णिमा तिथि के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। ये दिन अपने ज्ञान को विस्तार देने का होता है। इस दिन गुरु पूजन के साथ देवी सरस्वती पूजन का भी महत्व होता है। सरस्वती पूजा में माता की प्रतिमा व तस्वीर को स्थापित करना चाहिए. सरस्वती के सामने जल से भरा कलश स्थापित करके गणेश जी और नवग्रह की पूजा करनी चाहिए। माता को माला एवं पुष्प अर्पित करने चाहिए। माता को सिन्दूर, अन्य श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करनी चाहिए। सरस्वती माता को श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। देवी को सरस्वती पूजन में पीले रंग का फल अर्पित करने चाहिए। इस दिन मालपुए और खीर का भी भोग भी लगाना चाहिए।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है और इसी के संदर्भ में यह समय अधिक प्रभावी भी लगता है। गुरू के ज्ञान एवं उनके स्नेह के प्रति आभार प्रकट करती है ये आषाढ़ पूर्णिमा। गुरू को ईश्वर से भी आगे का स्थान प्राप्त है। ऎसे में इस दिन के शुभ अवसर पर गुरु पूजा का विधान है।
जीवन में गुरु का स्वरुप किसी भी रुप में प्राप्त हो सकता है। यह शिक्षा देते शिक्षक हो सकता है, माता-पिता हो सकते हैं, या कोई भी जो हमें ज्ञान के पथ का प्रकाश देते हुए हमारे जीवन के अधंकार को दूर कर सकता है। गुरु के पास पहुंचकर ही व्यक्तो को शांति, भक्ति और शक्ति प्राप्त होती है।
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