जरासंध का आक्रमण

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0
Invasion of Jarasandha
Invasion of Jarasandha


जब कंस का वध हो गया तो मगध का सबसे शक्तिशाली सम्राट जरासंध क्रोधित हो उठा, क्योंकि कंस उसका दामाद था।

 जरासंघ कंस का श्वसुर था। कंस की पत्नी मगध नरेश जरासंघ को बार-बार इस बात के लिए उकसाती थी कि कंस का बदला लेना है। इस कारण जरासंघ ने मथुरा के राज्य को हड़पने के लिए 17 बार आक्रमण किए। हर बार उसके आक्रमण को असफल कर दिया जाता था। फिर एक दिन उसने कालयवन के साथ मिलकर भयंकर आक्रमण की योजना बनाई।

 कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया। उसने मथुरा नरेश के नाम संदेश भेजा और कालयवन को युद्ध के लिए एक दिन का समय दिया। श्रीकृष्ण ने उत्तर में भेजा कि युद्ध केवल कृष्ण और कालयवन में हो, सेना को व्यर्थ क्यूं लड़ाएं? कालयवन ने स्वीकार कर लिया।

 कृष्ण और कालयवन का युद्ध हुआ और कृष्‍ण रणभूमि छोड़कर भागने लगे, तो कालयवन भी उनके पीछे भागा। भागते-भागते कृष्ण एक गुफा में चले गए। कालयवन भी वहीं घुस गया। गुफा में कालयवन ने एक दूसरे मनुष्य को सोते हुए देखा। कालयवन ने उसे कृष्ण समझकर कसकर लात मार दी और वह मनुष्य उठ पड़ा।

 उसने जैसे ही आंखें खोलीं और इधर-उधर देखने लगा, तब सामने उसे कालयवन दिखाई दिया। कालयवन उसके देखने से तत्काल ही जलकर भस्म हो गया। कालयवन को जो पुरुष गुफा में सोए मिले। वे इक्ष्वाकु वंशी महाराजा मांधाता के पुत्र राजा मुचुकुन्द थे, जो तपस्वी और प्रतापी थे। उनके देखते ही कालयवन भस्म हो गया। मुचुकुन्द को वरदान था कि जो भी उन्हें उठाएगा वह उनके देखते ही भस्म हो जाएगा।

  जरासन्ध आध्यात्मिक रूप से वृद्धावस्था का प्रतीक है। यह प्रत्येक प्राणी की अन्तिम अवस्था है। इसी के बाद कालयवन अर्थात् काल का आगमन होता है। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top