नाग पंचमी

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Nag Panchami  नागपंचमी के पावन पर्व की शुभकामनाएं 🙏 हिन्दू संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न किय...

Nag Panchami
Nag Panchami


 नागपंचमी के पावन पर्व की शुभकामनाएं 🙏

हिन्दू संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है। हमारे यहां गाय की पूजा होती है। बहनें कोकिला-व्रत करती हैं,कोयल के दर्शन हो अथवा उसका स्वर कान पर पड़े तब ही भोजन लेना,ऐसा यह व्रत है। हमारे यहाँ वृषभोत्सव के दिन बैल का पूजन किया जाता है। गाय,बैल,कोयल इत्यादि का पूजन करके उनके साथ आत्मीयता साधने का हम प्रयत्न करते हैं, क्योंकि वे उपयोगी हैं।

वट - सावित्री व्रत में बरगद की पूजा होती है।

परन्तु नाग पंचमी को जब हम नाग का पूजन करते हैं,तो हमारी संस्कृति की विशिष्टता पराकाष्ठा पर पहुंच जाती है।

भारत देश कृषिप्रधान देश था और है, सांप खेतों का रक्षण करता है, इसलिए उसे क्षेत्रपाल कहते हैं। जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके सांप हमारे खेतों को हरा भरा रखता है।

साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है, साँप के गुण देखने की हमारे पास गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए। भगवान दत्तात्रेय की ऐसी शुभ दृष्टि थी, इसलिए ही उन्हें प्रत्येक वस्तु से कुछ न कुछ सीख मिली।

साँप सामान्यतया किसी को अकारण नहीं काटता, उसे परेशान करने वाले को या छेड़ने वालों को ही वह डंसता है।

साँप भी प्रभु का सर्जन है, वह यदि नुकसान किए बिना सरलता से जाता हो, या निरुपद्रवी बनकर जीता हो तो उसे मारने का हमें कोई अधिकार नहीं है।

 जब हम उसके प्राण लेने का प्रयत्न करते हैं, तब अपने प्राण बचाने के लिए या अपना जीवन टिकाने के लिए यदि वह हमें डँस दे तो उसे दुष्ट कैसे कहा जा सकता है?

हमारे प्राण लेने वालों के प्राण लेने का प्रयत्न क्या हम नहीं करते ?

साँप को सुगंध बहुत ही भाती है। चंपा के पौधे से लिपटकर वह रहता है या तो चंदन के वृक्ष पर वह निवास करता है। केवड़े के वन में भी वह फिरता रहता है। उसे सुगंध प्रिय लगती है, इसलिए भारतीय संस्कृति को वह प्रिय है।

प्रत्येक मानव के जीवन में सद्गुणों की सुगंध आती है, सुविचारों की सुवास आती है, वह सुवास हमें प्रिय होनी चाहिए।

साँप बिना कारण किसी को नहीं काटता, वर्षों परिश्रम संचित शक्ति यानी जहर वह किसी को यों ही काटकर व्यर्थ खो देना नहीं चाहता, हम भी जीवन में कुछ तप करेंगे तो उससे हमें भी शक्ति पैदा होगी।

 यह शक्ति किसी पर गुस्सा करने में, निर्बलों को हैरान करने में या अशक्तों को दुःख देने में व्यर्थ न कर उस शक्ति को हमारा विकास करने में, दूसरे असमर्थों को समर्थ बनाने में, निर्बलों को सबल बनाने में खर्च करें, यही अपेक्षित है।

कुछ दैवी साँपों के मस्तिष्क पर मणि होती है,मणि अमूल्य होती है। 

हमें भी जीवन में अमूल्य वस्तुओं को (बातों को) मस्तिष्क पर चढ़ाना चाहिए।

समाज के मुकुटमणि जैसे महापुरुषों का स्थान हमारे मस्तिष्क पर होना चाहिए। 

हमें प्रेम से उनकी पालकी उठानी चाहिए और उनके विचारों के अनुसार हमारे जीवन का निर्माण करने का अहर्निश प्रयत्न करना चाहिए। 

सर्व विद्याओं में मणिरूप जो अध्यात्म विद्या है, उसके लिए हमारे जीवन में अनोखा आकर्षण होना चाहिए।

आत्मविकास में सहायक न हो, उस ज्ञान को ज्ञान कैसे कहा जा सकता है?

साँप बिल में रहता है और अधिकांशतः एकान्त का सेवन करता है। इसलिए मुमुक्षु को जनसमूह को टालने का प्रयत्न करना चाहिए।

देव-दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन में साधन रूप बनकर वासुकी नाग ने दुर्जनों के लिए भी प्रभु कार्य में निमित्त बनने का मार्ग खुला कर दिया है।

 दुर्जन मानव भी यदि सच्चे मार्ग पर आए तो वह सांस्कृतिक कार्य में अपना बहुत बड़ा योगदान दे सकता है और दुर्बलता सतत खटकती रहने पर ऐसे मानव को अपने किए हुए सत्कार्य के लिए ज्यादा घमंड भी निर्माण नहीं होगा।

दुर्जन भी यदि भगवद् कार्य में जुड़ जाए तो प्रभु भी उसको स्वीकार करते हैं, इस बात का समर्थन शिव ने साँप को अपने गले में रखकर और विष्णु ने शेष-शयन करके किया है।

समग्र सृष्टि के हित के लिए बरसते बरसात के कारण निर्वासित हुआ साँप जब हमारे घर में अतिथि बनकर आता है तब उसे आश्रय देकर कृतज्ञ बुद्धि से उसका पूजन करना हमारा कर्त्तव्य हो जाता है। 

नाग पंचमी का उत्सव श्रावण महीने में ही रखकर हमारे ऋषियों ने बहुत ही औचित्य दिखाया है।

चातुर्मास के अंतर्गत आने वाले श्रावण मास जो नागेश्वर भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, के शुक्ल पक्ष की पंचमी अर्थात् नाग पंचमी का क्या महत्व है? यूं तो प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष वाली पंचमी का अधिष्ठाता नागों को बतलाया गया है। पर श्रावण शुक्ला पंचमी एक विशेष महत्व रखती है। 

शायद ही कोई हो जो नाग से अपरिचित होगा, लगभग हर जगह देखने को मिल जाते हैं ये सर्प। 

नाग हमेशा से ही एक रहस्य में लिपटे हुए रहे हैं इनके विषय में फैली अनेक किंवदंतियों के कारण,जैसे नाग इच्छाधारी होते हैं, मणि धारण करते हैं, मौत का बदला लेते हैं आदि-आदि। 

पर जो भी हो, सर्प छेड़ने या परेशान करने पर ही काटते हैं। आप अपने रास्ते जाइए साँप अपने रास्ते चला जाएगा।

हाँ कभी मार्ग भटक कर अचानक इनका घर में आ जाना डर का कारण हो सकता है पर ऐसे में या किसी भी परिस्थिति में इन साँपों को मारना नहीं चाहिए।

कोशिश यही करनी चाहिए कि इनको एक सुरक्षित स्थान पर छोड़ दिया जाये। हमारे धर्मग्रन्थों में भी नागों का वर्णन मिलता है -- 

 कहीं भगवान शिव के गले के आभूषण के रूप में तो

 कहीं भगवान विष्णु के शेषनाग के रूप में। 

ऐसी मान्यता है कि शेषनाग ही श्रीरामचंद्र जी के भ्राता लक्ष्मण जी के रूप में अवतरित हुए थे।

कालिय नाम के नाग का मर्दन श्रीकृष्ण द्वारा किया गया था और तारा महाविद्या को भी सर्पों के आभूषणो से युक्त बतलाया गया है। 

यज्ञोपवीत का संस्कार करते समय भी उसमें रुद्रादि देवों के साथ साथ नौ तन्तुओं में भी सर्पों आवाहन किया जाता है –

     प्रथमतन्तौ ॐ ओंकारमावाहयामि।

     द्वितीयतन्तौ ॐ अग्निमावाहयामि।

      तृतीयतन्तौ ॐ सर्पानावाहयामि।

      चतुर्थतन्तौ ॐ सोममावाहयामि।

      पञ्चमतन्तौ ॐ पितृनावाहयामि।

       षष्ठमतन्तौ ॐ प्रजापतिमावाहयामि।

       सप्तमतन्तौ ॐ अनिलमावाहयामि।

       अष्टमतन्तौ ॐ सूर्यमावाहयामि।

       नवमतन्तौ ॐ विश्वान् देवानावाहयामि।

कहकर सर्पों का आवाहन किया जाता है ताकि यज्ञोपवीत भली प्रकार द्विज की रक्षा कर सके।

नवग्रह मण्डल पर भी अधिदेवताओं की स्थापना के उपरान्त नवग्रहों के बायें भाग में प्रत्यधिदेवताओं के स्थापन में भी सर्पों का आवाहन किया जाता है--

     "अग्निरापो धरा विष्णुः शक्रेन्द्राणी पितामहाः।

      पन्नागाकः क्रमाद्वामे ग्रहप्रत्यधिदेवताः।।"

  "ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो जे के च पृथिवीमनु।

       ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः।।"

अनन्ताद्यान् महाकायान् नानामणिविराजितान्।

आवाहयाम्यहं सर्पान् फणासप्तकमण्डितान्।। 

ॐ भूर्भुवः स्वः सर्पा इहागच्छत इह तिष्ठत सर्पेभ्यो नमः सर्पानावाहयामि स्थापयामि।

शास्त्रों में पंचमी को नागों को दूध से स्नान करवाने को कहा गया है वह भी जरुरी नहीं कि नाग असली हो, ताँबे या गोबर या मिट्टी से बने नाग का ही अभिषेक किया जाना चाहिए। 

पुराणों के अनुसार किसी भी पंचमी तिथि को जो नागों को दुग्धस्नान करवाता है उसके कुल को "वासुकि, तक्षक, कालिय, मणिभद्र, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कर्कोटक तथा धनञ्जय" – ये सभी नाग अभयदान देते हैं ।

इस संबंध में श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर से कही गयी एक कथा -

एक बार राक्षसों व देवताओं ने मिलकर जब सागर मंथन किया था तो उच्चैःश्रवा नामक अतिशय श्वेत घोड़ा निकला जिसे देख नागमाता कद्रू ने अपनी सौत विनता से कहा--

“देखो! यह अश्व श्वेतवर्ण का है परन्तु इसके बाल काले दिखाई पड़ रहे हैं।" 

विनता बोली--

     “यह अश्व न तो सर्वश्वेत है, न काला है और न ही लाल रंग का।” 

यह सुनकर कद्रू बोली--

       “अच्छा? 

तो मेरे साथ शर्त करो कि यदि मैं इस अश्व के बालों को कृष्णवर्ण का दिखा दूँ तो तुम मेरी दासी हो जाओगी और यदि नहीं दिखा सकी तो मैं तुम्हारी दासी हो जाऊँगी।” 

विनता ने शर्त स्वीकार कर ली और फिर वो दोनों क्रोध करती हुई अपने-अपने स्थानों को चली गयीं। कद्रू ने अपने पुत्रों को सारा वृत्तान्त कह सुनया और कहा--

     “पुत्रों! तुम अश्व के बालों के समान सूक्ष्म होकर उच्चैःश्रवा के शरीर से लिपट जाओ, जिससे यह कृष्ण वर्ण का दिखने लगेगा और मैं शर्त जीतकर विनता को दासी बना सकूंगी।” 

यह सुन नाग बोले--

     “माँ! यह छल तो हम लोग नहीं करेंगे, चाहे तुम्हारी जीत हो या हार, छल से जीतना बहुत बड़ा अधर्म है।” 

पुत्रों के ऐसे वचन सुनकर कद्रू ने क्रुद्ध होकर कहा--

      “तुमलोग मेरी आज्ञा नहीं मानते हो, इसलिए मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम सब, पांडवों के वंश में उत्पन्न राजा जनमेजय के सर्पयज्ञ में अग्नि में जल जाओगे।” 

नागगण, नागमाता का यह शाप सुन बहुत घबड़ाये और वासुकि को साथ लेकर ब्रहमाजी को सारी बात कह सुनाई।

ब्रह्मा जी ने कहा--

       “वासुके! चिंता न करो,यायावर वंश का बहुत बड़ा तपस्वी जरत्कारु नामक ब्राह्मण होगा जिसके साथ तुम अपनी जरत्कारु नाम की बहिन का विवाह कर देना और वह जो भी कहे, उसका वचन स्वीकार लेना। उनका पुत्र आस्तीक उस यज्ञ को रोक तुम लोगों की रक्षा करेगा।”

यह सुन वासुकि आदि नाग प्रसन्न हो उन्हें प्रणाम कर अपने लोक को चले गए। 

कालांतर में वह यज्ञ जब हुआ तो नाग पंचमी के दिन ही आस्तीक मुनि ने नागों की सहायता की थी।

 अतः उस दाह की व्यथा को दूर करने के लिए ही गाय के दुग्ध द्वारा नाग प्रतिमा को स्नान कराने की मान्यता है जिससे व्यक्ति को सर्प का भय नहीं रहता इसीलिए यह "दंष्ट्रोद्धार पंचमी" भी कहलाती है। 

नागपंचमी को किसी भी समय घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर नागों के चित्र या एक-एक गोबर से नाग बनाकर उनका दही, दूध, दूर्वा, पुष्प, कुश, गंध, अक्षत और नैवेद्य अर्पित करते हुए पूजन करके ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन करवाने से व्यक्ति के कुल में कभी सर्पों का भय नहीं होता।

महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है।

इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं-

तक्षक नाग

      धर्म ग्रंथों के अनुसार,तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया।

जैसे ही ऋत्विजों (यज्ञ करने वाले ब्राह्मण) ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तिक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए।

कर्कोटक नाग

             कर्कोटक शिव के एक गण हैं, पौराणिक कथाओं के अनुसार, सर्पों की मां कद्रू ने जब नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब भयभीत होकर कंबल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए।

ब्रह्माजी के कहने पर कर्कोटक नाग ने महाकाल वन में महामाया के सामने स्थित लिंग की स्तुति की, शिव ने प्रसन्न होकर कहा- 

        जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा। इसके बाद कर्कोटक नाग उसी शिवलिंग में प्रवेश कर गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं।

मान्यता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार के दिन कर्कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।

कालिया नाग

     श्रीमद्भागवत के अनुसार, कालिया नाग यमुना नदी में अपनी पत्नियों के साथ निवास करता था। उसके जहर से यमुना नदी का पानी भी जहरीला हो गया था। श्रीकृष्ण ने जब यह देखा तो वे लीलावश यमुना नदी में कूद गए। यहां कालिया नाग व भगवान श्रीकृष्ण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को पराजित कर दिया,कालिया नाग की पत्नियों ने श्रीकृष्ण से कालिया नाग को छोडऩे के लिए प्रार्थना की,तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि तुम सब यमुना नदी को छोड़कर कहीं और निवास करो। श्रीकृष्ण के कहने पर कालिया नाग परिवार सहित यमुना नदी छोड़कर कहीं और चला गया।

इनके अलावा कंबल, शंखपाल, पद्म व महापद्म आदि नाग भी धर्म ग्रंथों में पूज्यनीय बताए गए हैं।

नागपंचमी पर नागों की पूजा कर आध्यात्मिक शक्ति और धन मिलता है, लेकिन पूजा के दौरान कुछ बातों का ख्याल रखना बेहद जरूरी है।

हिंदू परंपरा में नागों की पूजा क्यों की जाती है और ज्योतिष में नाग पंचमी का क्या महत्व है?

  अगर कुंडली में राहु-केतु की स्थिति ठीक ना हो तो इस दिन विशेष पूजा का लाभ पाया जा सकता है।

जिनकी कुंडली में विषकन्या या अश्वगंधा योग हो, ऐसे लोगों को भी इस दिन पूजा-उपासना करनी चाहिए. 

जिनको सांप के सपने आते हों या सर्प से डर लगता हो तो ऐसे लोगों को इस दिन नागों की पूजा विशेष रूप से करना चाहिए।

जो भी नागों की कृपा पाना चाहते हैं उन्हें नागपंचमी के दिन ना तो भूमि खोदनी चाहिए और ना ही साग काटना चाहिए।

उपवास करने वाला मनुष्य सांयकाल को भूमि की खुदाई कभी न करे।

नागपंचमी के दिन धरती पर हल न चलाएं।

देश के कई भागों में तो इस दिन सुई धागे से किसी तरह की सिलाई आदि भी नहीं की जाती,न ही आग पर तवा और लोहे की कड़ाही आदि में भोजन पकाया जाता है।

किसान लोग अपनी नई फसल का तब तक प्रयोग नहीं करते जब तक वह नए अनाज से बाबे को रोट न चढ़ाएं।

आमतौर पर नागपंचमी के पर्व को महिलाओं का ही पर्व माना जाता है, जो कि बिल्कुल गलत है।

 “नाग” वास्तव में कुण्डलिनी शक्ति के स्वरूप हैं, यह विशेष पर्व कुण्डलिनी शक्ति की उपासना का पर्व है।

 इस पर्व पर छोटा-मोटा कुण्डलिनी जागरण प्रयोग कर व्यक्ति किसी भी प्रकार की भय बाधा से मुक्ति पा सकता है।

नागपंचमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर सूर्योदय के साथ सबसे पहले शिव पूजा सम्पन्न करनी चाहिए।

शिव पूजा में शिवजी जी का ध्यान कर शिवलिंग पर दूध मिश्रित जल चढ़ायें और एक माला “ॐ नमः शिवाय” मन्त्र का जाप अवश्य करें। 

नाग पूजा में साधक अपने स्थान पर भी पूजा सम्पन्न कर सकता है और किसी देवालय में भी।

किसी धातु का बना छोटा-सा नाग का स्वरूप ले लें या फिर एक सफेद कागज पर नाग देवता का चित्र बना लें। इसे अपने पूजा स्थान में सामने सिन्दूर से रँगे चावलों पर स्थापित करें और एक पात्र में दूध नैवेद्य स्वरूप रखें। सर्वप्रथम अपने सद्गुरुदेव जी का ध्यान कर, सर्प भय निवृति हेतु प्रार्थना करें। तत्पश्चात नागदेवता का ध्यान करें कि -

  हे‚ नागदेव! मेरे समस्त भय, मेरी समस्त पीड़ाओं का नाश करें, मेरे शरीर में अहंकार रूपी विष को दूर करें, मेरे शरीर में व्याप्त क्रोध रूपी विष से मेरी रक्षा करें।

 इसके बाद नागदेव के चित्र पर सिन्दूर का लेप करें तथा इसी सिन्दूर से अपने स्वयं को तिलक लगायें। इस के बाद अग्र लिखित मन्त्र का १०८ बार पाठ करते हुये नाग देवता तथा कुण्डलिनी शक्ति का ध्यान करें।

मन्त्र :

ॐ जरत्कारूर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी। 

वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।।

              जरत्कारूप्रिया स्तीकमाता विषहरेति च।                

महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता।।

द्वादशैतानि नमानि पूजाकाले तु यः पठेत्। 

 तस्य नागभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।। 


जो स्त्रियाँ नागपंचमी के दिन नागदेव का विधि-विधान सहित पूजन करती हैं, उनकी सन्तान प्राप्ति की कामना अवश्य पूर्ण होती है। स्त्रियों को अपनी सन्तान रक्षा हेतु भी नाग शान्ति प्रयोग करना चाहिये। 

नागपंचमी के दिन सांयकाल शिव का ध्यान करते हुए नाग देव का पूजन करना चाहिए। इसमें पूजन तो ऊपर दी गई विधि के अनुसार ही करना है, किन्तु अन्तर केवल इतना ही है, कि सन्तान प्राप्ति तथा रक्षा हेतु आगे दिये मन्त्र का १०८ बार जाप करना चाहिए --

ॐ अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।

शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।

एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।

सन्तान प्राप्यते सन्तान रक्षा तथा।

सर्वबाधा नास्ति सर्वत्र सिद्धि र्भवेत्।। 

यह प्रयोग नागपंचमी से लेकर सात दिन तक सम्पन्न करें। इस प्रयोग को करने से भयबाधा व सन्तान की कामना पूर्ति अवश्य होती है।

"नमोऽस्तु सर्व सर्पेभ्यो"

सभी सर्पों को नाग पंचमी पर नमन।

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अध्यात्म,200,अनुसन्धान,19,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,2,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,15,आज का समाचार,13,आधुनिक विज्ञान,19,आधुनिक समाज,146,आयुर्वेद,45,आरती,8,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,5,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,13,कथा,6,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,119,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,1,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,1,चार्वाक दर्शन,3,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,49,तन्त्र साधना,2,दर्शन,35,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,48,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पौराणिक कथाएँ,64,प्रश्नोत्तरी,28,प्राचीन भारतीय विद्वान्,99,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,38,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,11,भागवत,1,भागवत : गहन अनुसंधान,27,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत कथा,118,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,3,भागवत के पांच प्रमुख गीत,2,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,90,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत नवम स्कन्ध,25,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,21,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,12,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,53,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,33,भारतीय अर्थव्यवस्था,4,भारतीय इतिहास,20,भारतीय दर्शन,4,भारतीय देवी-देवता,6,भारतीय नारियां,2,भारतीय पर्व,40,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,35,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय संविधान,1,भारतीय सम्राट,1,भाषा विज्ञान,15,मनोविज्ञान,1,मन्त्र-पाठ,7,महापुरुष,43,महाभारत रहस्य,33,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,4,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,124,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,65,राष्ट्रीयगीत,1,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,150,लघुकथा,38,लेख,168,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,10,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,1,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,32,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,9,व्रत एवं उपवास,35,शायरी संग्रह,3,शिक्षाप्रद कहानियाँ,119,शिव रहस्य,1,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,14,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,संस्कृत,10,संस्कृत गीतानि,36,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सनातन धर्म,2,सरकारी नौकरी,1,सरस्वती वन्दना,1,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,8,सुविचार,5,सूरज कृष्ण शास्त्री,455,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,59,स्वास्थ्य और देखभाल,1,हँसना मना है,6,हमारी संस्कृति,93,हिन्दी रचना,32,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,2,about us,2,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,computer,37,Computer Science,38,contact us,1,darshan,17,Download,3,General Knowledge,29,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,Research techniques,38,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,
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भागवत दर्शन: नाग पंचमी
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