सूर्य देव के परिवार का विवरण

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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कलियुग में एकमात्र प्रत्यक्ष रूप से देवता के रूप में गिने जाने वाले सूर्य देव को रविवार का दिन समर्पित किया गया है।

सूर्य देव ग्रह नहीं एक देवता हैं। सूर्य ग्रह को वेदों में जगत की आत्मा कहा गया है। ज्योतिष के कुछ ग्रंथों और पुराणों में इन्हीं सूर्य को सूर्य देव से जोड़कर भी देखा जाता है जबकि सूर्य देव का जन्म धरती पर ही हुआ माना जाता है। 

एक अन्य कथा के अनुसार कश्यप की पत्नी अदिति ने सूर्य साधना करके अपने गर्भ से एक तेजस्वीवान पुत्र को जन्म दिया था। यह भी कहा जाता है कि सूर्यदेव ने ही उन्हें उनके गर्भ से उत्पन्न होने का वरदान दिया था।

सूर्य देव का परिवार इस प्रकार है:

सूर्यदेव के माता-पिता :-

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सूर्य देव के पिता का नाम महर्षि कश्यप और उनकी माता का नाम अदिति था। माता अदिति की कोख से जन्म लेने की वजह से ही उनका नाम आदित्य हुआ। 

सूर्य देव: वे स्वयं परिवार के प्रमुख हैं और उन्हें "सविता" भी कहा जाता है। वे प्रकाश, जीवन और ऊर्जा के स्रोत माने जाते हैं। 

धर्म में प्रमुख देवता माने जाते हैं। वे सभी जीवन के स्रोत और प्रकाश के देवता हैं।

सूर्य देव की पत्नियाँ :-

सूर्य देव की पत्नियों के संदर्भ में प्रचलित कथाओं के अनुसार, उनकी मुख्य पत्नियाँ संज्ञा और छाया मानी जाती हैं।

 हालांकि, कुछ पौराणिक संदर्भों में सूर्य देव की दो अन्य पत्नियाँ, उषा और प्रत्युषा का भी उल्लेख मिलता है। 

1. संज्ञा

विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा विवस्वान् की पत्नी हुई। उसके गर्भ से सूर्य ने तीन संतानें उत्पन्न की। जिनमें एक कन्या और दो पुत्र थे। सबसे पहले प्रजापति श्राद्धदेव, जिन्हें वैवस्वत मनु कहते हैं, उत्पन्न हुए। तत्पश्चात यम और यमुना- ये जुड़वीं संतानें हुई। यमुना को ही कालिन्दी कहा गया।

2. छाया 

भगवान् सूर्य के तेजस्वी स्वरूप को देखकर संज्ञा उसे सह न सकी। उसने अपने ही सामान वर्णवाली अपनी छाया प्रकट की। वह छाया स्वर्णा नाम से विख्यात हुई। उसको भी संज्ञा ही समझ कर सूर्य ने उसके गर्भ से अपने ही सामान तेजस्वी पुत्र उत्पन्न किया। वह अपने बड़े भाई मनु के ही समान था। इसलिए सावर्ण मनु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उस छाया से शनैश्चर (शनि) और तपती नामक कन्या हुई।

3. उषा (सुबह की देवी):

उषा, सुबह की देवी मानी जाती हैं और प्राचीन वेदों में उषा को प्रकृति की देवी के रूप में वर्णित किया गया है। उषा का अर्थ है "भोर" या "सुबह"।

भूमिका: उषा को सुबह के समय का प्रतीक माना जाता है, जब सूर्य देव अपने रथ पर सवार होकर आकाश में उदित होते हैं।

महत्व: उषा, रात के अंधकार को दूर कर दिन का प्रकाश लाती हैं। उन्हें नई शुरुआत, ऊर्जा और आशा का प्रतीक माना जाता है।

4. प्रत्युषा (शाम की देवी):

प्रत्युषा, शाम की देवी मानी जाती हैं और सूर्यास्त का प्रतिनिधित्व करती हैं।

भूमिका: प्रत्युषा सूर्यास्त के समय की देवी हैं, जब सूर्य देव अपने रथ के साथ दिन के अंत में अस्त होते हैं।

महत्व: प्रत्युषा को दिन के अंत की देवी माना जाता है। वे शाम की शांति और आराम का प्रतीक हैं।

सूर्य देव के परिवार में इनका स्थान

प्रतीकात्मक महत्व: उषा और प्रत्युषा सूर्य देव की पत्नियों के रूप में प्रतीकात्मक महत्व रखती हैं। उषा सुबह का प्रारंभ करती हैं और प्रत्युषा शाम को समाप्त करती हैं। इस प्रकार, वे दिन के चक्र का प्रतिनिधित्व करती हैं और सूर्य देव की यात्रा को पूरी करती हैं।

सूर्य देव की संतानें:

1. यमराज: यमराज मृत्यु के देवता हैं और पितरों के स्वामी माने जाते हैं।धर्मराज या यमराज सूर्य के सबसे बड़े पुत्र और संज्ञा की प्रथम संतान हैं.

2. यमुनाजी: यमी अर्थात यमुना नदी सूर्य की दूसरी संतान और ज्‍येष्‍ठ पुत्री हैं, जो अपनी माता संज्ञा को सूर्यदेव से मिले आशीर्वाद चलते पृथ्‍वी पर नदी के रूप में प्रसिद्ध हुईं। यमुना गोलोक की नदी बनना चाहती थीं।

बहुत पहले भगवान विष्णु की तपस्या करने के कारण उन्हें पुराणों में श्रेष्ठ नदी होने का वरदान मिला था। खुद भगवान ने उन्हें अपनी लीला का साक्षी बनाया। ब्रज की लीलाओं में यमुना का नाम भी शामिल है।

3. वैवस्वत मनु: वे मनुष्यों के पहले मनु माने जाते हैं और मनु-स्मृति के लेखक माने जाते हैं। 

सूर्य और संज्ञा की तीसरी संतान के रूप में विख्यात हैं वैवस्वत मनु। यही मनु वर्तमान (सातवें) मन्वन्तर के अधिपति हैं। इन्होंने ही प्रलय के बाद संसार के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी ली, और विनाश के बाद नई शुरुआत करने वाले प्रथम पुरुष बने। मनु स्‍मृति की रचना के लिए विख्यात हुए। 

4. शनिदेव: शनिदेव न्याय के देवता और कर्मों के अनुसार फल देने वाले माने जाते हैं। 

सूर्य और छाया की प्रथम संतान हैं शनिदेव। न्याय और दंडाधिकारी शनिदेव कर्मफल दाता हैं। अपने जन्‍म से ही शनिदेव अपने पिता से शत्रु भाव रखते थे। भगवान शंकर के वरदान से वे नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर नियुक्‍त हुए थे।

5. तपती: छाया और सूर्य की कन्या तप्‍ति का विवाह अत्यन्त धर्मात्मा सोमवंशी राजा संवरण के साथ हुआ।

कुरुवंश के स्थापक राजर्षि कुरु इन दोनों की ही संतान थे, जिनसे कौरवों की उत्पत्ति हुई। यही तप्ति, बाद में पृथ्वी पर ताप्ती नदी के रूप में अवतरित हुई थीं।

6. सावर्णि मनु: वे आठवें मनु माने जाते हैं। सूर्य और छाया की चौथी संतान हैं सावर्णि मनु। वैवस्वत मनु की ही तरह वे इस मन्वन्तर के बाद अगले यानि आठवें मन्वन्तर के अधिपति होंगे। 

अन्य संताने :-

विष्टि या भद्रा

सूर्य और छाया की पुत्री विष्टि भद्रा को नक्षत्र लोक में जगह मिली है। भद्रा काले रंग, लंबे बाल, बड़े-बड़े दांत वाली भयंकर रूप की कन्या है। भद्रा गधे के मुख और लंबे पूंछ और तीन पैर के साथ जन्मी थी। इसका स्वभाव भी कड़क बताया गया है। दरअसल, भद्रा के जन्म के समय छाया की मनस्थिति ठीक नहीं थी, जब वह गर्भ में थी तो छाया लगातार ही क्रोध-चिंता और ईर्ष्या भाव से ग्रसित थीं।

इसका असर पुत्री के जन्म पर पड़ा। इसलिए कहा जाता है, संतान के गर्भ में होने पर माता का उस पर पूरा असर पड़ता है। भद्रा को भगवान ब्रह्मा ने काल गणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया है।

अश्विनी कुमार: संज्ञा के रहस्य का पता चलते ही सूर्य देव ने अपना तेज कम किया और वे घोड़े के स्वरूप में उनके पास गए। संज्ञा उस समय अश्विनी यानि घोड़ी के रूप में थी। 

दोनों के संयोग से जुड़वां अश्विनी कुमारों की उत्पत्ति हुई। यह दोनों कुमार देवताओं के वैद्य बने। महर्षि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिये उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया गया था, और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी।

अत्‍यंत रूपवान माने जाने वाले अश्विनी कुमार नासत्य और दस्त्र के नाम से भी प्रसिद्ध हुए। 

कर्ण : सूर्य देव की संतानों की बात करें तो महाभारत काल की कुंती को सूर्य देव की कृपा से कर्ण की प्राप्ति हुई थी।कर्ण भी सूर्य देव की भांति ही एक महानायक बना, लेकिन जैसे ही कर्ण का जन्म हुआ था, समाज के डर से कुंती ने उसे पानी मे बहा दिया था क्योंकि वो उसके कुंवारी होने की सन्तान थी। लेकिन सूर्य देव द्वारा दिए गए कवच और कुंडल कर्ण की रक्षा करते रहे और वो बड़ा होकर एक शूरवीर योद्धा बना, जिसका मुकाबला कर पाना संभव नहीं था।

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