सत्संग सुनने का फल

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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एक बार देवर्षि नारद भगवान विष्णु के पास गए और प्रणाम करते हुए बोले.. “भगवान मुझे सत्संग की महिमा सुनाइये।” भगवान मुस्कराते हुए बोले, नारद ! तुम यहां से आगे जाओ, वहां इमली के पेड़ पर एक रंगीन प्राणी मिलेगा। वह सत्संग की महिमा जानता है, वही तुम्हें समझाएगा भी।

 नारद जी खुशी-खुशी इमली के पेड़ के पास गए और गिरगिट से बातें करने लगे। उन्होंने गिरगिट से सत्संग की महिमा के बारे में पूछा। सवाल सुनते ही वह गिरगिट पेड़ से नीचे गिर गया और छटपटाते हुए प्राण छोड़ दिए। नारदजी आश्चर्यचकित होकर लौट आए और भगवान को सारा वृत्तांत सुनाया।

भगवान ने मुस्कराते हुए कहा, इस बार तुम नगर के उस धनवान के घर जाओ और वहां जो तोता पिंजरे में दिखेगा, उसी से सत्संग की महिमा पूछ लेना। नारदजी क्षण भर में वहां पहुंच गए और तोते से सत्संग का महत्व पूछा। थोड़ी देर बाद ही तोते की आंखें बंद हो गईं और उसके भी प्राण पखेरू उड़ गए।

इस बार तो नारद जी भी घबरा गए और दौड़े-दौड़े भगवान कृष्ण के पास पहुंचे। नारद जी कहा, भगवान यह क्या लीला है। क्या सत्संग का नाम सुनकर मरना ही सत्संग की महिमा है ? भगवान हंसते हुए बोले, यह बात भी तुमको जल्द ही समझ आ जाएगी। इस बार तुम नगर के राजा के महल में जाओ और उसके नवजात पुत्र से अपना प्रश्न पूछो।

नारदजी तो थरथर कांपने लगे और बोले, "अभी तक तो पक्षी ही अपने प्राण छोड़ रहे थे। इस बार अगर वह नवजात राजपुत्र मर गया तो राजा मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा।” भगवान ने नारद जी को अभयदान दिया। नारद जी दिल मुट्ठी में रखकर राजमहल में आए। वहां उनका बड़ा सत्कार किया गया। अब तक राजा को कोई संतान नहीं थी। अतः पुत्र के जन्म पर बड़े आनन्दोल्लास से उत्सव मनाया जा रहा था।

नारदजी ने डरते-डरते राजा से पुत्र के बारे में पूछा। नारदजी को राजपुत्र के पास ले जाया गया। पसीने से तर होते हुए , मन-ही-मन श्रीहरि का नाम लेते हुए नारदजी ने राजपुत्र से सत्संग की महिमा के बारे में प्रश्न किया तो वह नवजात शिशु हंस पड़ा और बोला !

“महाराज! चंदन को अपनी सुगंध और अमृत को अपने माधुर्य का पता नहीं होता। ऐसे ही आप अपनी महिमा नहीं जानते, इसलिए मुझसे पूछ रहे हैं। वास्तव में आप ही के क्षणमात्र के संग से मैं गिरगिट की योनि से मुक्त हो गया और आप ही के दर्शनमात्र से तोते की क्षुद्र योनि से मुक्त होकर इस मनुष्य जन्म को पा सका।

आपके सान्निध्यमात्र से मेरी कितनी सारी योनियां कट गईं और मैं सीधे मानव-तन में ही नहीं पहुंचा अपितु राजपुत्र भी बना। यह सत्संग का ही अदभुत प्रभाव है। बालक बोला- हे ऋषिवर नवीत,अब मुझे आशीर्वाद दें कि मैं मनुष्य जन्म के परम लक्ष्य को पा लूं। नारदजी ने खुशी-खुशी आशीर्वाद दिया और भगवान श्री हरि के पास जाकर सब कुछ बता दिया।

भगवान ने कहा , सचमुच , सत्संग की बड़ी महिमा है।संत का सही गौरव या तो संत जानते हैं या उनके सच्चे प्रेमी भक्त ! इसलिए जब कभी मौका मिले।सत्संग का लाभ जरूर ले लेना चाहिए।क्या पता किस संत या भक्त के मुख से निकली बात जीवन सफल कर दें..! !!

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