विष्णु- कलावतार स्वयं सिद्ध महर्षि वेदव्यास

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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ved vyas ji maharaj
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   कैवर्तराज के पोष्यपुत्री थी मत्स्यकन्या 'सत्यवती'। वही 'सत्यवती' और 'वशिष्ट' के पुत्र 'शक्तिऋषि' की पत्नी 'अद्यशन्ति' की गर्भज 'पराशर' मुनि का सन्तान महर्षि 'व्यासदेव' का जन्म यमुना- द्वीप के हस्तिनापुर में हुआ था। पुराण के अनुसार दिव्य शक्ति सम्पन्न व्यासदेव विष्णु भगवान के कला- अवतार थे। व्यासदेव के पत्नी 'वाटिका' के गर्भज पुत्र महाज्ञानी 'शुकमुनि' का व्याह 'पिवरी' से हुआ था। ऐसे ही था वेदव्यास जी के आदर्श- परिवार। 

   जन्मस्थान यमुना द्वीप और पिता का नाम पराशर होने की कारण व्यासदेव जी ‘पाराशर्य’ और ‘द्वैपायन’ नाम से परिचित और शरीर का वर्ण कृष्ण जी के सदृश घननील होने की वजह से वे ‘कृष्णद्वैपायन’ नाम से भी प्रख्यात हैं। बदरी वन में रहने के कारण वे ‘बादरायण’ भी कहे जाते हैं। उनको कल्पभेद- आधारित इतिहास- भूगोल- खगोलादि सहित सम्पूर्ण वेद- वेदांग और परमात्म तत्त्व का ज्ञान स्वतः प्राप्त हुआ था।

    उनके वेदव्यास नाम के पीछे जो कारण है वह इसी प्रकार-- "प्रारम्भ में वेद एक ही था। ऋषिवर अङ्गिरा ने उसमें से सरल तथा भौतिक उपयोग के छन्दों को पीछे से संगृहीत किया, जो ‘अथर्वाड़िगरस’ या ‘अथर्ववेद’ के नाम से प्रसिद्ध है। व्यासदेव ने मनुष्यों की आयु और शक्ति को अत्यन्त क्षीण होते देख कर 'वेदों' का 'व्यास' अर्थात 'विभाग' किया था। इसलिये वे ‘वेदव्यास’ नाम से जगत में प्रसिद्ध हुए। वे वेदार्थ- दर्शन की शक्ति के साथ सम्पूर्ण इतिहास पदवाच्य अनादि पुराण को लुप्त होते देखकर सभीओं के लिए वेदार्थ ज्ञान के साथ महापुराणों तथा उपपुराणों का प्रणयन किया था।"

     पुराणों में विस्तृत रूप लेकर कल्पभेद, अर्थात प्रत्येक कल्प में समयान्तर के भेद से उस कल्प का इतिहास में भेद से चरित्र भेद पाये जाते हैं। इसलिए समस्त चरित्र इस कल्प के अनुरूप हों तथा धर्म- अर्थ- काम- मोक्ष सम्बन्धी समस्त सिद्धांत भी उनमें एकत्र हो जायं, इस उद्देश्य से व्यास जी ने महान ग्रन्थ ‘महाभारत’ की रचना की थी। महाभारत को ‘पंचम वेद’ और व्यास जी की दूसरे नाम में ‘काष्र्णवेद’ भी कहते हैं।

      व्यास जी ने श्रुति का सारांश को महाभारत में एकत्र किया था। कहा जाता है कि "इस ग्रंथरत्न को व्यास बोलते जाते थे और भगवान गणेश जी स्वयं लिखते चले थे।" गणेश जी का सर्त्त यही था कि '‘लिखते समय यदि उनके लेखनी क्षण भर भी न रूके, तो वह यह कार्य कर सकते हैं।’' वही हुआ की जब गणेश जी व्यासोक्त श्लोकों का अर्थ समझने के लिये थोड़ी देर रूक जाते, इस अवसर में व्यास जी भी और कितने ही श्लोकों की रचना कर डालते थे। इस प्रकार यह महाभारत लिपिबद्ध हुआ था।

     फिर वेदव्यास जी ने ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद का अध्ययन क्रमशः अपने शिष्यों पैल, जैमिनी, वैशम्पायन और सुमन्तु को तथा महाभारत का अध्ययन रोमहर्षण सूत को कराया था। ऐसे ही अति प्राचीन काल से आर्य संस्कृति की इतिहास तथा वेदाधारित अद्भुत ज्ञान- विज्ञान को व्यासकृत पुराणों और महाभारत आजतक उज्जीवित करके रखा हैं।

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