ऋग्वेद में भूगोल

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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आज हमें बताया जाता है कि सबसे पहले आर्यभट ने कहा था कि पृथ्वी गोल है...लेकिन हमें तो बचपन में यह पढ़ाया गया था कि सबसे पहले कॉपरनिकस ने कहा था कि पृथ्वी गोल है और तब कोपरनिकस के साथ ईसाइयों ने बड़ा ही अमानवीय व्यवहार किया था। क्योंकि बाइबिल के जेनेसिस के अध्याय में लिखा था कि पृथ्वी चपटी है। 

हमारे अंदर जब थोड़ी जागरूकता आई तो हम कॉपरनिकस से थोड़ा पीछे गए।तब जाकर हमें पता चला कि आर्यभट ने हमें पहले ही बताया था कि पृथ्वी गोल है। परंतु ऋग्वेद 1/33/8 में कहा गया है - 

चक्राणास: परिणहं पृथिव्या। 

यानी पृथ्वी चक्र के जैसी गोल है। पृथ्वी से जुड़ा जो भी विषय हम पढ़ते हैं - उस विषय का नाम है - 'भूगोल'.(भू = पृथ्वी और गोल = वृत्ताकार) यह नाम ही साबित करता है कि पृथ्वी गोल है। फिर हमें वैदिक ऋषियों ने बताया कि - 

माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:। 

यानी हम पृथ्वी की संतानें हैं, अर्थात पृथ्वी हमारी माँ है। 

पृथ्वी माता कैसे हैं? 

माँ के गर्भ में हम एक झिल्ली में होते हैं, ताकि माता के शरीर के अंदर के बैक्टीरिया हमें नुकसान नहीं पहुँचा सकें। माँ के गर्भ में इस झिल्ली द्वारा ही हमें सुरक्षित रखा जाता है। अन्यथा हम वहीं सड़ - गल जाते...और कभी जन्म नहीं ले पाते। ठीक इसी प्रकार... पृथ्वी भी एक झिल्ली में सुरक्षित है। इसे हम 'ओजोन परत' कहते हैं। यह परत हमें सूर्य के हानिकारक अल्ट्रावॉइलेट विकिरणों से सुरक्षित रखती है। बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में नासा ने ओज़ोन परत का चित्र लिया है। यह सुनहरे रंग की दिखती है।

ऐसा ही उल्लेख ऋग्वेद में पाया जाता है। वहाँ पृथ्वी को 'हिरण्यगर्भा' कहा गया है। 'हिरण्य' अर्थात 'हिरन के जैसा' या सुनहरे रंग का। मतलब, जिस जिस तथ्य की जानकारी आधुनिक विज्ञान को आज पता चली, उसकी जानकारी हमारे ऋषियों को लाखों साल पहले प्राप्त हो चुकी थी। इस जानकारी का इतनी सूक्ष्मता से वर्णन हमारे ऋग्वेद में मिलता है।

आज हम जानते हैं कि पृथ्वी पश्चिम से पूरब की ओर घूम रही है। इसलिए सूर्योदय हमेशा पूरब में होता है। इस सम्बंध में ऋग्वेद (7/992) में ऋषि कहते हैं - कि 

बूढ़ी महिला की तरह झुकी हुई पृथ्वी पूरब की ओर जा रही है। ऋग्वेद हमें यह भी बताता है कि 

पृथ्वी अपने अक्ष पर झुकी हुई है। 

आज आधुनिक विज्ञान भी यही बताता है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.44 डिग्री पर झुकी हुई है।

इसके अतिरिक्त एक घूमते हुए लट्टू में जो एक लहर सी आती है, उसी प्रकार पृथ्वी के घूर्णन में भी एक लहर आती है। इसके कारण पृथ्वी की एक और गति बनती है। इस चक्र को पूरा करने में पृथ्वी को छब्बीस हजार वर्ष लगते हैं। 

भास्कराचार्य ने इसे 'भचक्र सम्पात' कहा है और इसकी कालावधि 25812 वर्ष निकाली थी। यह आज की गणना के लगभग बराबर ही है। इस गति के कारण पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव तेरह हजार वर्षों तक सूर्य के सामने और तेरह हजार वर्षों तक सूर्य के विपरीत में होता है। जब यह सूर्य के विपरीत में होता है तो 'हिम युग' होता है और जब यह सूर्य के सामने होगा तो यहाँ ताप बढ़ जाएगा जिससे बर्फ पिघलने लगेगी। इसके लिए आधुनिक विज्ञानियों ने पिछले 161 वर्षों के उत्तरी ध्रुव में होने वाले तापमान में परिवर्तन की एक तालिका बनाई है। इससे भी यह बात सिद्ध हो जाती है।

हर पुराण तथा वेद में कई स्थानों पर न केवल पृथ्वी बल्कि सभी ग्रह, तारा तथा ब्रह्माण्ड (गैलेक्सी) को भी गोल लिखा हुआ है। सृष्टि वर्णन में पृथ्वी वर्णन भूगोल तथा आकाश का वर्णन भूगोल या खगोल लिखा है। वेद में सभी को मण्डल लिखा है। पृथ्वी गोल होने के कारण हर स्थान पर अलग अलग समय सूर्योदय या सूर्यास्त होते हैं – यह उल्लेख भी सैकड़ों स्थानों पर है। मान्धाता का राज्य पूरे विश्व में फैला था जिनके बारे में यह उक्ति सभी पुराणों में है कि उनके राज्य में हर समय कहीं सूर्योदय, कहीं सूर्यास्त होता रहता था। इन्द्र की अमरावती पुरी में जब सूर्योदय होता था, उस समय यम की संयमनी पुरी में अर्ध रात्रि, वरुण की सुखा नगरी में मध्याह्न तथा सोम की विभावरी पुरी में सूर्यास्त होता था।

 पुराणों में दो प्रकार के द्वीपों का वर्णन है-एक पृथ्वी के महादेश तथा दूसरे सूर्य के चारों तरफ ग्रहों की परिक्रमा से बने हुये क्षेत्र। ये ही वलयाकार या वृत्ताकार हैं (पृथ्वी से देखने पर)। पृथ्वी के व्यास को १००० योजन माना गया है (प्रायः १२.८ किमी. का १ योजन), अतः आकाश में पृथ्वी सहस्र-दल पद्म या सहस्रपाद है। ३ प्रकार की पृथ्वी है और सबमें द्वीपों, पर्वतों नदियों के नाम उसी प्रकार हैं जैसे पृथ्वी ग्रह पर हैं। ३ पृथ्वी हैं-सूर्य-चन्द्र दोनों से प्रकाशित पृथ्वी ग्रह, सूर्य का प्रकाश क्षेत्र (३० धाम तक (ऋक् १०/१९८/३), सूर्य प्रकाश की अन्तिम सीमा जहां वह विन्दु मात्र दीखता है (सूर्य सिद्धान्त १२/८२, ऋक् १/२२/२०-विष्णु सूर्य का परमपद)। हर पृथ्वी की तुलना में उसका आकाश उतना ही बड़ा है, जितना मनुष्य की तुलना में पृथ्वी ग्रह।

रविचन्द्रमसोर्यावन्मयूखैरवभास्यते। 

स समुद्रसरिच्छैला पृथिवी तावती स्मृता॥३॥ 

यावत् प्रमाणा पृथिवी विस्तारपरिमण्डला। 

नभस्तावत् प्रमाणं वै व्यासमण्डलतो द्विज॥४॥

                                                                        (विष्णु पुराण, २/७)।

स्पष्टतः १००० योजन व्यास की पृथ्वी पर १६ करोड़ योजन पुष्कर द्वीप नहीं हो सकता है। पृथ्वी के द्वीपों का अनियमित आकार है, वृत्ताकार नहीं है।

कई लोग अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि को छोड़ कर पृथ्वी के ७ द्वीपों का वर्णन करते हैं। किन्तु तुर्की की नौसेना के पास एक पुराना नक्शा था जिसमें अण्टार्कटिका के २ स्थल भाग तथा दोनों अमेरिका का नक्शा था। यह नौसेना प्रमुख ने नाम पर पिरी रीस नक्शा कहा जाता है। इसी के आधार पर कोलम्बस ने अमेरिका यात्रा की योजना बनाई थी। यदि अमेरिका नहीं होता तो उसे योजना की तुलना में भारत पहुंचने के लिये १०-१२ गुणा अधिक जाना पड़ता।

एसिया जम्बू द्वीप, अफ्रीका कुश द्वीप, यूरोप प्लक्ष, उत्तर अमेरिका क्रौञ्च, दक्षिण अमेरिका पुष्कर तथा आस्ट्रेलिया शक (या अग्नि कोण में अग्नि या अंग द्वीप) था। आठवां अण्टार्कटिका अनन्त या यम (जोड़ा) द्वीप था। 

नक्शा बनाने के लिये उत्तर और दक्षिण गोलार्धों को ४-४ भाग में नक्शा बनता था, जिनको भू-पद्म का ४ दल कहा गया है। उत्तर भाग के ४ नक्शे ४ रंग में बनते थे जिनको मेरु के ४ पार्श्वों का रंग कहा है। उज्जैन के दोनों तरफ (पृर्व से पश्चिम) ४५-४५ अंश भारत दल है। विषुव से ध्रुव तक आकाश के ७ लोकों की तरह ७ लोकों का विभाजन है-विन्ध्य तक भू, हिमालय तक भुवः, हिमालय स्वर्ग (त्रिविष्टप्), चीन महः (महान् से हान् जाति), मंगोलिया जनः, साइबेरिया तपस् (स्टेपीज), ध्रुव वृत्त सत्य लोक हैं। भारत के पश्चिम केतुमाल, पूर्व में भद्राश्व, तथा विपरीत दिशा में कुरु दल हैं।

उत्तर के अन्य ३ दल को ३ तल कहते हैं। भारत के पश्चिम अतल (उसके बाद का समुद्र अतलान्तक), पूर्व में सुतल, उससे पूर्व पाताल हैं। भारत के दक्षिण तल या महातल (दोनों को कुमारिका खण्ड कहते थे, आज भी उसे भारत महासागर कहते हैं)।

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