नैमिषक्षेत्र अथवा नैमिषारण्य (उत्तर प्रदेश)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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नैमिषारण्य के प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं:-

 1 चक्रतीर्थ एवं इसके चारों ओर स्थित मंदिर

 2 श्री ललिता देवी मंदिर

 3 आदि गंगा अर्थात् गोमती नदी के निकट स्थित व्यास गद्दी

 4 दधीचि कुंड


 1. चक्रतीर्थ


चक्रतीर्थ नैमिषारण्य का मूल तीर्थ है। यह एक गोलाकार कुंड है। ऐसा माना जाता है कि यह महाविष्णु के चक्र द्वारा निर्मित है। इस कुंड से बह कर आते जल का भक्तगण पवित्र स्नान के लिए प्रयोग करते हैं। ऐसी मान्यता है कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के सब पावन स्थलों का जल यहाँ चक्रतीर्थ में उपस्थित है।

 चक्रतीर्थ की कथा -

एक समय कुछ असुर ऋषियों की साधना भंग करने के उद्येश्य से उन्हें कष्ट दे रहे थे। उन सब ऋषियों ने ब्रम्हाजी  के समक्ष जाकर अपनी समस्या व्यक्त की। तब ब्रम्हाजी  ने सूर्य की किरणों से एक चक्र की रचना की तथा उन ऋषियों से इस चक्र का पीछा करने को कहा। उन्होंने कहा कि जहां भी यह चक्र रुक जाये वहां वे शान्ति से रह सकते हैं। जी हाँ! आपने सही पहचाना। ब्रम्हा का चक्र नैमिषारण्य में आकर रुक गया। नेमी का एक और अर्थ है किनारा। यहाँ इसका अर्थ है कुंड का किनारा। ऐसी मान्यता है कि कुंड का जल पाताल लोक से आता है। इस चक्र को मनोमय चक्र भी कहते हैं। चक्रतीर्थ को ब्रम्हांड का केंद्र बिंदु माना जाता है।


 2. श्री ललिता देवी मंदिर


 नैमिषारण्य का श्री ललिता देवी मन्दिर एक शक्ति पीठ है। ऐसा कहा जाता है कि दक्ष यज्ञ के अग्नि कुंड में जब अपमानित सती ने प्राण त्याग दिए तब क्रोधित शिव ने उनका मृत देह उठाकर तांडव किया था। मान्यता है कि नैमिषारण्य में यहीं देवी सती के पार्थिव शरीर का ह्रदय गिरा था। यहाँ देवी ललिता को लिंग-धारिणी शक्ति भी कहा जाता है। श्री ललिता देवी नैमिषारण्य की पीठासीन देवी है। अतः इनके दर्शन के बिना आपकी नैमिषारण्य की यात्रा अधूरी है

 एक किवदंती के अनुसार जब ऋषिगण विष्णु का चक्र लिए नैमिषारण्य आये थे तब चक्र धरती के भीतर चला गया एवं वहां से जल का अनियंत्रित भण्डार उमड़ कर बाहर आने लगा। तब देवी ललिता ने जल का नियंत्रण किया ताकि ऋषिगण शान्ति से साधना कर सकें।


 3. नैमिषारण्य  में व्यास गद्दी


एक विशाल वट वृक्ष के नीचे बैठकर वेद व्यासजी ने धार्मिक ग्रंथों का आख्यान किया था जिन्हें आज हम वेदों, पुराणों एवं शास्त्रों इत्यादि के नाम से जानते हैं। यहाँ स्थित विशाल प्राचीन वट वृक्षों में से एक वृक्ष ५००० वर्ष पुराना माना जाता है। अर्थात यह वृक्ष महाभारत काल अथवा वेद व्यास के जीवनकाल का है, ऐसी मान्यता है। यही वह वृक्ष है जिसे वास्तविक व्यास गद्दी कहा जाता है। वर्तमान में यह वृक्ष नवीन मंदिरों से घिरा हुआ है जिनमें से एक के भीतर गद्दी स्थित है।

व्यास गद्दी, वेद व्यास को समर्पित एक छोटा सा मंदिर है। मंदिर के भीतर त्रिकोण के आकार में वस्त्रों का ढेर रखा है जिसे वेद व्यास सदृश माना जाता है। यहाँ कई सूचना पट्टिकाएं हैं जो यह कहती हैं कि ग्रंथों की रचना इसी स्थान पर की गयी थी।


 4. दधीचि कुंड


यह कुंड किसी भी मंदिर के प्रांगण में स्थित एक सामान्य लेकिन अपेक्षाकृत बड़ा कुंड है। इसके चारों ओर कई मंदिर निर्मित हैं। इनमें प्रमुख मंदिर ऋषि दधीचि को समर्पित है। दधीचि कुंड को मिश्रिख तीर्थ भी कहा जाता है।

महर्षि दधीचि की कथा सर्वोच्च बलिदान की कथा है। एक समय की बात है। असुर वृत्र इंद्र को अनेक कष्ट दे रहा था। वृत्रासुर को वरदान प्राप्त था कि उसे लकड़ी या धातु से बने किसी भी अस्त्र-शास्त्र से मारा नहीं जा सकता। अतः इंद्र के लिए उसका वध करना असंभव था। तब इंद्र विष्णु की शरण में गया। विष्णु ने इंद्र को सलाह दी कि वह महर्षि दधीचि के पास जाकर उनसे उनकी अस्थियों की मांग करे एवं उन अस्थियों से एक हथियार बनाए।

इंद्र ने महर्षि दधीचि से नैमिषारण्य में ही भेंट की थी। ऋषि दधीचि ने इंद्र की मांग स्वीकार की। किन्तु मृत्यु से पूर्व महर्षि दधीचि सम्पूर्ण भारतवर्ष के पवित्र जल से स्नान करना चाहते थे। चूंकि समय की कमी थी, इंद्र स्वयं ही सर्व पवित्र तीर्थों का जल लेकर नैमिषारण्य आया। उसमें स्नान के पश्चात दधीचि ने प्राण त्याग दिए। तत्पश्चात उनकी अस्थियों से इंद्र ने वज्र का निर्माण किया एवं वृत्रासुर का वध किया।

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