तुलसी नर का क्या बड़ा, समय होत बलवान । भीलन लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण ।। |
एक समय था।ईस्ट इंडिया नाम की ब्रिटिश कंपनी लगभग पूरे विश्व पर राज करती थी। ब्रिटेन से सबसे बुरे पर प्रभावशाली लोग इस कंपनी के मलिक हुआ करते थे। एक टाइम में ब्रिटेन की ऑफिसियल सेना से दुगुनी बड़ी सेना इनके पास हुआ करती थी।
दुनिया के लगभग सारे व्यापार पर एकाधिकार हुआ करता था इनका। अफ़्रीका में तो लोगों की ग़ुलामी तक का व्यापार करती थी ये कंपनी……. In short जलवा जलाल था इसका।
1857 के सिपाही विद्रोह के पहले ये कंपनी भारत में भी राज करती थी और ऐसा कौन सा भारतीय होगा जो इनके जुल्म की दास्तान से परिचित ना हो ?
ख़ैर ये तो हुआ ईस्ट इंडिया का इतिहास।
अभी ये कंपनी क्या कर रही है ? क्या ये exist करती है ?
हर चीज़ का अंत होता है। जैसा मैंने ऊपर लिखा “समय होत बलवान” तो ईस्ट इंडिया कंपनी का भी बुरा समय आया। एक समय लोगों ने कंपनी के प्राइवेट इक्विटी से बहुत पैसे कमाए बाद में ईस्ट इंडिया के शेयर सर्टिफिकेट का भाव 2 कौड़ी का हो गया था । जिसके पास भी ये शेयर थे उसके लिए ये कचरा था।
इस कचरे पर एक भारतीय “संजीव मेहता” की निगाह पड़ गई । एक तो संजीव को इसमें बिज़नेस की संभावना दिख रही थी और उससे बड़ी बात उस ब्रिटिश कंपनी का मलिक बनना जो १०० सालों तक भारतीयों को ग़ुलाम बना रखा था, ये अपने आप में गर्व की बात थी।
संजीव मेहता ने ईस्ट इंडिया कंपनी को महज़ 20 मिनट में ख़रीद लिया और उससे ज़्यादा मज़ेदार बात कि उन्होंने इस कंपनी का मूल्य एक “पेपर नैपकिन” पर लिख के दे दिया था और उसी भाव में उन्होंने इस कंपनी को ख़रीदा ।
आज ईस्ट इंडिया कंपनी चाय का व्यापार करती है और इसका पहला स्टोर लंदन में ही खुला।
सोच के ही आनंद आ जाता है कि जिस कंपनी ने भारत में अत्याचार किए उसे एक भारतीय ने नैपकिन पे भाव लिख के ख़रीद लिया।
सच है समय होत बलवान!
thanks for a lovly feedback