सनातन धर्म में 108 का महत्व ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Importance of 108 in Sanatan Dharma?
Importance of 108 in Sanatan Dharma?


तार्किकता के तमाम दावों के बाद भी दुख हो या खुशी, व्यक्ति का एक पांव आस्था, अध्यात्म या परंपरा की ओर बढ़ ही जाता है। हिंदू से लेकर दुनिया के तमाम दूसरे धर्मों को मानने वालों का ऐसा ही एक सिरा जुड़ता है नंबर 108 से।

सरकारी तौर पर यह भारत में इमरजेंसी में एंबुलेंस को बुलाने के लिए टोल फ्री नंबर है। लेकिन मान्यताओं के अनुसार, जीवन के बहुत से पहलुओं के आध्यात्मिक उपचार के लिए भी अहम है 108 की संख्या। इसलिए पूजा, हवन से लेकर सम्मान तक में 108 की संख्या को ब्रह्मास्त्र जितना शक्तिशाली माना जाता है।

अक्सर हम संतों या विद्वानों के नाम के आगे श्री श्री 108 की उपाधि देखते हैं। कुछ लोग 1008 भी लगाते हैं। लेकिन, जानकार मानते हैं कि मूल संख्या 108 ही है, जिसका महत्व है। ऐसा कहा जाता है एक (1) ब्रह्म यानी ईश्वर का प्रतीक है। वहीं 8 प्रकृति का द्योतक है, जिसमें पांच तत्व और तीन गुण - सत्व, रज और तम शामिल हैं। शून्य पूर्णता या निर्विकार होने का प्रतीक है। अर्थ यह निकला कि जो प्रकृति के विभिन्न पहलुओं से निराकार होकर ईश्वर में रम जाए, उसे 108 कहा जाता है।

ॐ (अ+उ+म) को ब्रह्म या ईश्वर की ध्वनि माना जाता है। इसी प्रकार 108 को उसकी गणितीय अभिव्यंजना के तौर पर देखा जाता है। हालांकि, स्वंय को अहमियत देने के लिए अपने नाम के आगे 108 लगाने वाले इस मानक पर कितना खरा उतरते हैं, यह एक अलग सवाल है।

अब आते हैं दूसरे प्रमुख सवाल पर, आखिर रुद्राक्ष से लेकर अन्य पवित्र मालाओं तक में 108 दाने या मनके ही क्यों होते हैं? ईश्वर के नामों के जाप से लेकर पूजा हवन तक में 108 बार ही उच्चारण या आहुति के लिए क्यों कहा जाता है?

देखिये मनुष्य का पूरा जीवन ग्रहों और नक्षत्रों के प्रभाव से जुड़ा होता है। इसे ज्योतिष या खगोलीय विज्ञान में विस्तार से समझा जा सकता है। इसलिए, किसी इच्छा को पूरा करने के लिए या दुख को दूर करने के लिए पूजा-अर्चना की कड़ी भी 108 से जुड़ती है।

हिंदू परंपरा में अमूमन हर घर में व्यक्ति की कुंडली बनाई जाती है। इसके आधार पर उसके भाग्य को देखने और समझने की कोशिश होती है। इस कुंडली में 12 घर होते हैं, जो 12 अलग-अलग राशियों के होते हैं। वहीं, 9 ग्रहों को मान्यता दी गई है। ऐसे में राशियों और ग्रहों में गुणा करें, तो 108 की संख्या आती है। इसी तरह, अगर आप नक्षत्रों की बात करें तो इनकी संख्या 27 होती है। इनके चार चरण या दिशाएं हैं। इनका भी गुणा करने पर योग 108 आता है। इसलिए, जब हम किसी ग्रह को शांत करने के लिए या अनुकूल बनाने के लिये कोई विशेष पूजा पाठ या कर्मकांड करते हैं, तो 108 बार उसका जाप किया जाता है, जिससे जीवन और प्रकृति के हर पहलू पर उसका प्रभाव पड़े। इसीलिए, माला में भी 108 मनके होते हैं।

ग्रहों में परिवर्तन या दूसरी खगोलीय घटनाओं का मनुष्य के जीवन चक्र पर काफी असर पड़ता है। इसके तार भी 108 से जुड़ते हैं। सूर्य से पृथ्वी की दूरी सूर्य के व्यास का लगभग 108 गुना है। वहीं चंद्रमा से पृथ्वी की दूरी भी चंद्रमा के व्यास का लगभग 108 गुना है। ऐसे में ग्रह, नक्षत्रों, सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की गति और कलाओं में बदलाव के जीवन पर भी असर को ज्योतिष विज्ञान मान्यता देता है।

दावा किया जाता है कि संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। इसकी वर्णमाला में कुल 54 अक्षर पुल्लिंग और 54 अक्षर स्त्रीलिंग के होते हैं। इनका योग भी 108 होता हैं। इन्हें शिव और शक्ति या पार्वती के तौर पर भी परिभाषित किया जाता है। आयुर्वेद से लेकर योग तक में 108 की अहमियत बताई गई है। माना जाता है कि मनुष्य के शरीर में 108 मर्म या दबाव बिंदु (एक्यूप्रेशर पॉइंट) होते हैं। उपनिषदों की कुल संख्या 108 है और शक्तिपीठ की संख्या भी 108 मानी जाती है। नृत्य में प्रमुख तौर पर 108 मुद्राएं होती हैं।

बौद्ध धर्म में भी 108 का महत्व बताया गया है। जानकारों का कहना है कि बौद्ध धर्म में 6 इंद्रियों - गंध, स्पर्श, स्वाद, श्रवण या ध्वनि, दृश्य या नज़र और चिंतन या विचार को मान्यता दी गई है। इनकी अनुभूति सुखद, पीड़ादायक या उदासीन होती है। मन की पवित्र या अपवित्र, दोनों ही स्थिति इस पर प्रभाव डालती है, जिसका सिरा व्यक्ति के अतीत, वर्तमान और भविष्य से भी जुड़ता है। इनका कुल योग 108 होता है, जिसे 108 भावनाओं के तौर पर भी देखा जाता है। मार्शल ऑर्ट ख़ासकर शाओलिन परंपरा पर भी इसका प्रभाव दिखता है। वहां भी 108 ऑर्ट स्टाइल प्रमुख तौर पर पाई जाती हैं।

धर्म कोई भी हो, उसके खगोलीय आधार एक जैसे ही होते हैं। एक ही प्राचीन ज्ञान परंपरा से अलग-अलग हिस्सों में इनका विस्तार हुआ है। इसलिए जो मूल अवधारणाएं हैं, उसका उल्लेख हर जगह मिलता है। 108 की संख्या भी उनमें से एक है।

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