माधव माली और लक्ष्मी जी कथा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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एक बार भगवान विष्णु जी शेषनाग पर बैठे-बैठे ऊब रहे थे, और उन्होंने धरती पर घूमने का विचार मन में किया, वैसे भी कई साल बीत गये थे धरती पर आये, और वह अपनी यात्रा की तैयारी मे लग गये, स्वामी को तैयार होता देख कर लक्ष्मी मां ने पूछा !!आज सुबह सुबह कहां जाने कि तैयारी हो रही है?? विष्णु जी ने कहा हे लक्ष्मी मै पृथ्वी लोक पर घूमने जा रहा हूं, तो कुछ सोच कर लक्ष्मी मां ने कहा ! हे देव क्या मै भी आप के साथ चल सकती हुं???? भगवान विष्णु ने दो पल सोचा फ़िर कहा एक शर्त पर, तुम मेरे साथ चल सकती हो। तुम धरती पर पहुंच कर उत्तर दिशा की ओर बिलकुल मत देखना।

 इस के साथ ही माता लक्ष्मी ने हां कह के अपनी मनवाली और सुबह सुबह मां लक्ष्मी ओर भगवान विष्णु धरती पर पहुंच गये, अभी सूर्य देवता निकल रहे थे, रात बरसात हो कर हटी थी, चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी, उस समय चारों ओर बहुत शान्ति थी, ओर धरती बहुत ही सुन्दर दिख रही थी, ओर मां लक्ष्मी मन्त्र मुग्ध हो कर धरती को देख रही थी, ओर भूल गई कि पति को क्या वचन दे कर आई है? और चारों ओर देखती हुई कब उत्तर दिशा की ओर देखने लगी पता ही नही चला।

उत्तर दिशा मै मां लक्ष्मी को एक बहुत ही सुन्दर बगीचा नजर आया, ओर उस तरफ़ से भीनी भीनी खुशबू आ रही थी,ओर बहुत ही सुन्दर सुन्दर फ़ुल खिले थे,यह एक फूलों का खेत था, ओर मां लक्ष्मी बिना सोचे समझे उस खेत मे गई ओर एक सुंदर सा फूल तोड लाई, लेकिन यह क्या जब मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के पास वापस आई तो भगवान विष्णु की आंखो मै आंसु थे, और भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी को कहा कि कभी भी किसी से बिना पूंछे उस का कुछ भी नही लेना चाहिये, और साथ ही अपना वचन भी याद दिलाया।

मां लक्ष्मी को अपनी भूल का पता चला तो उन्होने भगवान विष्णु से इस भुल की माफ़ी मांगी, तो भगवान विष्णु ने कहा कि जो तुम ने जो भूल की है उस की सजा तो तुम्हे जरुर मिलेगी?? जिस माली के खेत से तुमने बिना पूंछे फूल तोड़ा है, यह एक प्रकार की चोरी है, इस लिये अब तुम तीन साल तक माली के घर नौकर बन कर रहो, उस के बाद मैं तुम्हे बैकुण्ठ मे वापस बुलाऊंगा, मां लक्ष्मी ने चुपचाप सर झुका कर हां कर दी । (आज कल की लक्ष्मी थोडे थी?)

और मां लक्ष्मी एक गरीब औरत का रुप धारण करके , उस खेत के मालिक के घर गई। घर क्या एक झोपड़ा था, और मालिक का नाम माधव था, माधव की बीबी, दो बेटे ओर तीन बेटियां थी , सभी उस छोटे से खेत में काम करके किसी तरह से गुजारा करते थे।

मां लक्ष्मी जब एक साधारण गरीब औरत बन कर माधव के झोपड़े पर गई तो माधव ने पूछा बहिन तुम कोन हो ?ओर इस समय तुम्हें क्या चाहिये? तब मां लक्ष्मी ने कहा ,मै एक गरीब औरत हूं । मेरी देख भाल करने वाला कोई नहीं, मैनें कई दिनों से खाना भी नहीं खाया मुझे कोई भी काम दे दो, साथ में मै तुम्हारे घर का काम भी कर दिया करुंगी, बस मुझे अपने घर मै एक कोने मै आसरा दे दो? माधव बहुत ही अच्छे दिल का मालिक था, उसे दया आ गई, लेकिन उस ने कहा, बहिन मै तो बहुत ही गरीब हूं, मेरी कमाई से मेरे घर का खर्च मुश्किल से चलता है, लेकिन अगर मेरी तीन की जगह चार बेटियां होती तो भी हमें गुजारा करना था, अगर तुम मेरी बेटी बन कर जैसा रुखा सुखा हम खाते हैं उसमें खुश रह सकती हो तो बेटी अन्दर आ जाओ।

माधव ने मां लक्ष्मी को अपने झोपड़े में शरण दे दी, और मां लक्ष्मी तीन साल उस माधव के घर पर नौकरानी बन कर रही।

जिस दिन मां लक्ष्मी माधव के घर आई थी उस से दूसरे दिन ही माधव को इतनी आमदनी हुयी फूलों से कि शाम को एक गाय खरीद ली, फ़िर धीरे धीरे माधव ने काफ़ी जमीन खरीद ली, ओर सब ने अच्छे अच्छे कपडे भी बनवा लिये, ओर फ़िर एक बडा पक्का घर भी बनवा लिया, बेटियो ओर बीबी ने गहने भी बनवा लिये, ओर अब मकान भी बहुत बडा बनवा लिया था।

माधव हमेशा सोचता था कि मुझे यह सब इस महिला के आने के बाद मिला है, इस बेटी के रुप मे मेरी किस्मत आ गई है मेरी, और अब २-५ साल बीत गये थे, लेकिन मां लक्ष्मी अब भी घर में और खेत में काम करती थी, एक दिन माधव जब अपने खेतो से काम खत्म करके घर आया तो उस ने अपने घर के सामने द्वार पर एक देवी स्वरुप गहनों से लदी एक औरत को देखा, ध्यान से देख कर पहचान गया अरे यह तो मेरी मुहं बोली चौथी बेटी यानि वही ओरत है, और पहचान गया कि यह तो मां लक्ष्मी है।

अब तक माधव का पुरा परिवार बाहर आ गया था, और सब हैरान हो कर मां लक्ष्मी को देख रहे थे। माधव बोला हे मां ! हमे माफ़ कर, हमने तेरे से अंजाने में ही घर और खेत मे काम करवाया, हे मां ! यह कैसा अपराध हो गया, हे मां ! हम सब को माफ़ कर दे।

अब मां लक्ष्मी मुस्कुराई ओर बोली है माधव तुम बहुत ही अच्छे ओर दयालु व्यक्त्ति हो, तुम ने मुझे अपनी बेटी की तरह से रखा, अपने परिवार के सदस्या की तरह से, इस के बदले मै तुम्हे वरदान देती हूं कि तुम्हारे पास कभी भी खुशियों की और धन की कमी नही रहेगी, तुम्हे सारे सुख मिलेगे जिस के तुम हक दार हो, और फ़िर मां अपने स्वामी के द्वारा भेजे रथ मे बैठ कर बैकुण्ठ चली गई।

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