सहस्त्रधारा स्नान क्या है ? भगवान जगन्नाथ के क्यों नहीं होते 14 दिन तक दर्शन ? जगन्नाथ रथ यात्रा "पूर्णिमा स्नान करके बीमार पड़ गये श्रीजगन्नाथ भगवान्"
देव स्नान पूर्णिमा को 'स्नान यात्रा' या सहस्त्रधारा स्नान के रूप में जाना जाता है। जगन्नाथ रथ यात्रा से पूर्व ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को भगवान् जगन्नाथ की स्नान यात्रा निकली जाती है। पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा से पूर्व देव स्नान पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इस अनुष्ठान के दौरान भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की पूरी भक्ति और समर्पण के साथ पूजा की जाती है। यह समारोह पूरी भव्यता के साथ पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है और यह भगवान जगन्नाथ मंदिर के सबसे प्रत्याशित अनुष्ठानों में से एक है। कुछ लोग इस त्योहार को भगवान जगन्नाथ के जन्मदिन के रूप में भी मनाते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों से श्रद्धालु यहां आते हैं और इस अनोखे आयोजन के साक्षी बनते हैं। इस वर्ष देवस्नान पूर्णिमा 22 जून शनिवार को है। इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ सहस्त्रधारा स्नान करेंगे। इसके बाद पूरे 14 दिन तक भगवान के दर्शन नहीं किये जा सकेंगे । इस दौरान जगन्नाथ मंदिर के कपाट भी बंद रहेंगे। 15वें दिन मंदिर के कपाट खोले जाएंगे और फिर जगन्नाथ रथ यात्रा का प्रारंभ होगा। आइए जानते हैं सहस्त्रधारा स्नान क्या है और 14 दिन तक भगवान जगन्नाथ दर्शन क्यों नहीं देंगे ?
सहस्त्रधारा स्नान क्या है ?
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र को गर्भगृह से स्नान मंडप तक लाया जाता है। देवताओं को स्नान कराने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला जल जगन्नाथ मंदिर के अंदर मौजूद कुएं से लिया जाता है। स्नान समारोह से पहले, पुजारियों द्वारा कुछ पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। जगन्नाथ मंदिर के तीन मुख्य देवताओं को स्नान कराने के लिए सुगंधित जल के कुल 108 घड़ों का उपयोग किया जाता है। सुंगधित फूल, चंदन, केसर,कस्तूरी को स्नान जल में मिलाया जाता है। स्नान की रस्म पूरी होने के बाद भगवान को'सादा बेश' पहनाया जाता है। दोपहर में,भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को फिर से 'हाथी बेश' यानी भगवान गणेश के रूप में तैयार किया जाता है।
भगवान जगन्नाथ के क्यों नहीं होते 14 दिन तक दर्शन ?
मान्यता है कि पूर्णिमा स्नान में ज्यादा नहाने के कारण भगवान बीमार हो जाते हैं, इसलिए उनका उपचार किया जाता है। इस दौरान उन्हें कई औषधियां दी जाती है। इतना ही नहीं बीमारी में भगवान को सादे भोजन का ही भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि भगवान का स्वास्थ्य खराब होने की वजह से ही 15 दिन भक्तों के लिए दर्शन बंद कर दिए जाते हैं। इतने दिन वे अनासरा घर में रहते हैं। आषाढ़ कृष्ण दशमी तिथि को मंदिर में चका बीजे नीति रस्म होती है जो भगवान जगन्नाथ के सेहत में सुधार का प्रतीक है।
15वें दिन दर्शन देते हैं भगवान जगन्नाथ
आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा तिथि को भगवान जगन्नाथ,बलभद्र और सुभद्रा पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाते हैं और उस दिन मन्दिर के कपाट खोले जाते हैं और भगवान दर्शन देते हैं । उस दिन मंदिर में नेत्र उत्सव होता है। नेत्र उत्सव को नबाजौबन दर्शन भी कहा जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होती है।भगवान जगन्नाथ,भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने रथों पर सवार होकर अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं।
"पूर्णिमा स्नान करके बीमार पड़ गये श्रीजगन्नाथ भगवान्" (भक्त माधव दास जी की कथा)
उड़ीसा प्रान्त में जगन्नाथ पूरी में एक भक्त रहते थे, श्री माधव दास जी अकेले रहते थे, कोई संसार से इनका लेना देना नही। अकेले बैठे बैठे भजन किया करते थे, नित्य प्रति श्री जगन्नाथ प्रभु का दर्शन करते थे, और उन्हीं को अपना सखा मानते थे, प्रभु के साथ खेलते थे। प्रभु इनके साथ अनेक लीलाएँ किया करते थे। प्रभु इनको चोरी करना भी सिखाते थे भक्त माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे।
एक बार माधव दास जी को अतिसार (उलटी-दस्त) का रोग हो गया। वह इतने दुर्बल हो गए कि उठ-बैठ नहीं सकते थे, पर जब तक इनसे बना ये अपना कार्य स्वयं करते थे और सेवा किसी से लेते भी नही थे। कोई कहे महाराजजी हम कर दें आपकी सेवा तो कहते नही मेरे तो एक जगन्नाथ ही हैं वही मेरी रक्षा करेंगे। ऐसी दशा में जब उनका रोग बढ़ गया वो उठने-बैठने में भी असमर्थ हो गये, तब श्री जगन्नाथजी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुँचे और माधवदासजी को कहा की हम आपकी सेवा कर दें।
क्योंकि उनका इतना रोग बढ़ गया था कि उन्हें पता भी नही चलता था, कब वे मल मूत्र त्याग देते थे। वस्त्र गंदे हो जाते थे। उन वस्त्रों को जगन्नाथ भगवान अपने हाथों से साफ करते थे, उनके पूरे शरीर को साफ करते थे, उनको स्वच्छ करते थे। कोई अपना भी इतनी सेवा नही कर सकता, जितनी जगन्नाथ भगवान ने भक्त माधव दास जी की करते थे।
जब माधवदासजी को होश आया, तब उन्होंने तुरन्त पहचान लिया की यह तो मेरे प्रभु ही हैं। एक दिन श्री माधवदासजी ने पूछ लिया प्रभु से - “प्रभु ! आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो। आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो ये सब करना नही पड़ता।” ठाकुरजी कहते हैं - "देखो माधव ! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता, इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की। जो प्रारब्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है। अगर उसको इस जन्म में नहीं काटोगे तो उसको भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा और मैं नहीं चाहता की मेरे भक्त को जरा से प्रारब्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े। इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नहीं टाल सकता। (भक्तों के सहायक बन उनको प्रारब्ध के दुखों से, कष्टों से सहज ही पार कर देते हैं प्रभु) अब तुम्हारे प्रारब्ध में ये 15 दिन का रोग और बचा है, इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे।" 15 दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदासजी से ले लिया।
वो तो हो गयी तब की बात पर भक्त वत्सलता देखो आज भी वर्ष में एक बार जगन्नाथ भगवान को स्नान कराया जाता है (जिसे स्नान यात्रा कहते हैं)। स्नान यात्रा करने के बाद हर साल 15 दिन के लिए जगन्नाथ भगवान आज भी बीमार पड़ते हैं। 15 दिन के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है। कभी भी जगन्नाथ भगवान की रसोई बन्द नही होती पर इन 15 दिन के लिए उनकी रसोई बन्द कर दी जाती है। भगवान को 56 भोग नही खिलाया जाता, (बीमार हो तो परहेज तो रखना पड़ेगा)
15 दिन जगन्नाथ भगवान को काढ़ो का भोग लगता है। इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है। जगन्नाथ धाम मन्दिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं। काढ़े के अलावा फलों का रस भी दिया जाता है। वहीं रोज शीतल लेप भी लगया जाता है। बीमार के दौरान उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाया जाता है और रात में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है।
भगवान जगन्नाथ बीमार हो गए है और अब 15 दिनों तक आराम करेंगे। आराम के लिए 15 दिन तक मंदिरों पट भी बन्द कर दिए जाते है और उनकी सेवा की जाती है। ताकि वे जल्दी ठीक हो जाएँ। जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते हैं उस दिन जगन्नाथ यात्रा निकलती है, जिसके दर्शन हेतु असंख्य भक्त उमड़ते हैं।
खुद पे तकलीफ ले कर अपने भक्तों का जीवन सुखमयी बनाये, ऐसे भक्तवत्सलता है प्रभु जगन्नाथ जी की।
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