सिर्फ 'राम नाम' जप से ही हनुमान जी अमोघ रामबाण से बच गए

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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   षोडश उपचार आदि में क्यों न हो, बड़े से बड़े पूजार्चना से भी अधिक शक्तिशाली होती है सिर्फ श्रद्धा, भक्ति, विश्वास के साथ "राम नाम" जाप, जो अमोघ रामबाण को भी व्यर्थ कर सकती है। यह रामनाम जप मन्त्र शिव जी से अंजनी को मिली थी। समय आने पर इस जपमंत्र को अंजनी माता से वीर सुपुत्र बजरंगवली जी को भी मिला था। इस कारण से शिव- अंशी हनुमान जी के प्रति किसी भी अस्त्र प्रयोग व्यर्थ मात्र था।

  उदाहरण के तौर पर श्रीराम जी के दरवार में एक दिन हनुमान जी प्रभु- सेवा में तल्लीन होकर होश- हवास खो बैठे थे। ठीक उसी समय ही गुरु वशिष्ठ जी वंहा पधारे तो, हनुमान जी को इस बारे में मालूम नहीं पड़ा। परिणामतः सिर्फ उनको छोड़कर उपस्थित बाकी सभी लोगों खड़े होकर मुनिश्रेष्ठ को यथाविधि सम्मान प्रदान करने लगे। जब हनुमान जी ने मुनि जी के तरफ आंख उठाकर भी नहीं नहीं देखा, तब वशिष्ट जी अपमानित होकर हनुमान के लिए "दण्ड" मांग किया। इस मांग को टालना सम्भव नहीं था। तुरन्त श्रीराम जी ने निष्पक्ष राजधर्म पालन के लिए हनुमान के प्रति 'अमोघ रामबाण' प्रयोग करने की एलान करने के बाद ही वशिष्ट जी सन्तुष्ट होकर वंहा से लौट गए थे।

 नित्य श्रीराम- सेवा- मग्न हनुमान जी अनजान में उस समय गुरु वशिष्ट जी के प्रति सम्मान प्रदर्शन नहीं कर पाए थे। श्रीराम जी के अमोघ अस्त्र प्रयोग सर्वथा अव्यर्थ-- यह बात को हनुमान जी बखुबी जानते थे। फिर भी निर्विकार हनुमान जी घर को लौट कर माता अंजनी को सब कुछ बता दिया। हनुमान के प्रति 'दंड- घोषणा' के बारे में सब कुछ सुनने के बाद भी माता अंजनी ने बिल्कुल विचलित नहीं हुई और अमोघ प्रतिकार स्वरूप जगत् में सब से बड़ा "रक्षा कवच" शिवदत्त "राम नाम जप" करने के लिए पुत्र को कहा।

  माता भी एक गुरु है। हनुमान जी गुरु समा माता जी द्वारा उपद्दिष्ट होकर "राम नाम" जप में तल्लीन हो गए और घोषणा के अनुसार यथा काल में सरजू नदी तट में श्रीराम जी भी गुरु वशिष्ट जी को साथ में लेकर अमोघ रामबाण प्रयोग किया। परन्तु अमोघ रामबाण, अमोघ "रामनाम- जप- कवच" को भेद नहीं कर सका और व्यर्थ होकर श्रीराम जी के पास लौट गया। इस अनहोनी से वशिष्ठ जी चकित हो गये, तो गुरु जी को श्रीराम जी ने इस जप- रहस्य को समझाकर सन्तुष्ट करने के बाद, राजनवर को लौट गए।

  कलियुग में सब से बड़ा रक्षा कवच है अमोघ मन्त्र स्वरूप रामनाम- जप। इस शिव- प्रदत्त स्वयंसिद्ध महामंत्र, अमोघ रामबाण से भी भी अधिक शक्तिशाली "सुरक्षा कवच", जिसके सामने सभी मन्त्र, बाण, अस्त्र, टोटके, अभिचार प्रयोग-- सबकुछ निष्फल हो जाते हैं। मगर इस जप के लिए जरूरी है-- शुद्ध तथा सकारात्मक आचार- विचार युक्त एकात्मिक साधना में अखण्ड तन्मयता।

  रामनाम जप के बारे में तुलसीदास ने लिखा है कि-- "राम नाम मनिदीप धरु, जीह देहरीं द्वार। तुलसी भीतर बाहेरहुं, जी चाहसि उजियार।।6।। हिय निर्गुन नयनन्हि सगुन, रसना नाम सुनाम। मनहुँ पुरट सम्पुट लसत, तुलसी ललित ललाम।।7।। राम नाम को अंक है, सब साधन है सून। अंक गए कछु हाथ नही, अंक रहे दस गून।।10।।

 भावार्थ :-- "जो इस मानव देह रूपी घर के अंदर और बाहर दोनों (लौकिक और पारमार्थिक ज्ञान) ओर ज्ञान रूपी प्रकास करना चाहता है उसे राम नाम रूपी मणि को देह रूपी घर की देहरि (जीभ पर)पर रखना चाहिए।।6।। हृदय में निर्गुन ब्रह्म और आंखों के सम्मुख प्रभु की सगुन स्वरूप की साकार झांकी तथा जीभ से प्रभु का सुंदर नाम मानो सोने की डिब्बी में सुंदर मणि के समान है राम नाम निर्गुन ब्रह्म और सगुण स्वरूप भगवान दोनों से बड़ा है ।। 7।। राम नाम रूपी अंक के सामने सभी साधन शून्य के समान है राम नाम रूपी अंक न होनेपर उनका अस्तित्व शून्य होता है और राम नाम रूपी अंक के आते ही दस हो जाता है अर्थात दस गुना हो जाता है ।।10।।

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