मार्कण्डेय पुराण परिचय

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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markandeya purana in this image Maa Durga on A Lion with his matru-shakti Force
markandeya purana
in this image Maa Durga on A Lion
with his matru-shakti Force
 


 मार्कण्डेय पुराण हिन्दू धर्म के 18 पवित्र पुराणों में से एक पुराण है। मार्कण्डेय पुराण के रचयिता महर्षि मार्कण्डेय ऋषि ही है। यह पुराण प्रथम मार्कण्डेय ऋषि द्वारा क्रौष्ठि को सुनाया गया था, इसलिए यह पुराण को मार्कण्डेय पुराण के नाम से जाना जाता है। मार्कण्डेय पुराण का पुराणों की अनुक्रमणिका में सप्तम स्थान प्राप्त है।

 मार्कण्डेय पुराण में ऋग्वेद की तरह इन्द्र, सूर्य, अग्नि, वायु चंद्र आदि देवताओं पर अनुसंधान है, और नित्यकर्म और गृहस्थाश्रम आदि की चर्चा की गई है। इस पुराण में भगवती की महिमा का विस्तृत वर्णन किया गया है। मार्कण्डेय पुराण में कथाओ का विस्तृत वर्णन मिलता है, जैसे की दत्तात्रेय-चरित्र की कथा, अत्रि-अनसूया की कथा, दुर्गासप्तशती की कथा, राजा हरिश्चन्द्र की कथा आदि कथा का वर्णन किया गया है। इस पुराण में महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती यह त्रिविध रूप देविओ का चरित्र वर्णन सविस्तार रूप से किया गया है।

मार्कण्डेय पुराण का विस्तार

मार्कण्डेय पुराण सभी पुराणों में आकार में सबसे छोटा है। इस पुराण में 137 अध्याय और 9000 श्लोक मिलते है। 1 से 42 वें अध्याय तक के वक्ता महर्षि जैमिनि है, उसको सुनने वाले धर्म पक्षी हैं। 43 वें से 90 अध्याय के वक्ता महर्षि मार्कण्डेय ऋषि है, उसको सुनने वाले क्रप्टुकि हैं। मार्कण्डेय ऋषि के कथन से इस पुराण का नाम मार्कण्डेय पुराण पड़ा हुआ है।

इस पुराण में मार्कण्डेय ऋषि ने मनुष्य के कल्याण के लिए नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एव भौतिक विषयो का भली–भाँति ज्ञात किया गया है। मार्कण्डेय ऋषि ने इस पुराण में भारतवर्ष का प्रकृति से उत्पन्न होने वाले वैभव और खूबसूरती प्रकट कि गई है।

मार्कण्डेय पुराण का परिचय

मार्कण्डेय पुराण में धर्म पक्षियों को प्रवचन का अधिकारी बनाकर धर्म पक्षियों द्वारा सभी धर्मों को अच्छी तरह समझाया किया गया है। इस पुराण में सब से पहले जैमिनि का उपदेश मार्कण्डेय ऋषि के सामने है। फिर धर्म पक्षियों की कथा का वर्णन कहा गया है। बादमे उनके पूर्व जन्म की कथा का वर्णन भी कहा गया है।

मार्कण्डेय पुराण में इंद्र देव के कारण उन्हें श्राप प्राप्ति का कथन है। तदउपरांत बलभद्रजी की तीर्थ यात्रा, द्रौपदी के पांचों पुत्रों की कथा, राजा हरिश्चन्द्र की पुण्यमयी कथा, आडी और बक पक्षियों का युद्ध, पिता और पुत्र का आख्यान, दत्तात्रेयजी की कथा, महान आख्यान, मदालसा की कथा, नौ प्रकार की सृष्टि का पुण्यमयी वर्णन, कल्पान्तकाल का निर्देश, यक्ष-सृष्टि निरूपण, रुद्र आदि की सृष्टि, द्वीपचर्या का वर्णन, मनुओं की अनेक पापनाशक कथाओं का कीर्तन और उन्हीं में दुर्गाजी की अत्यधिक पुण्य देने वाली कथा है, जो आठवें मनवन्तर के प्रसंग में वर्णन किया गया है।

इस पुराण में सूर्य देव की जन्म की कथा जो तीनो वेदो के ओंकार मंत्र की उत्पति का वर्णन मिलता है। मार्कण्डेय ऋषि का चरित्र तथा पुराण सुनने का फल यह सब मार्कण्डेय पुराण में विस्तार से बताये गये है।

मार्कण्डेय पुराण का महत्त्व

मार्कण्डेय पुराण में पापनासनी पुण्यकारी चंडी देवी का माहत्म्य का वर्णन विस्तारपूर्वक कहा गया है। इस पुराण को शाक्त ग्रंथ भी कहा जाता है। मार्कण्डेय पुराण में ही दुर्गा सप्तशती का सम्पूर्ण वर्णन मिलता है। दुर्गा सप्तशती का पाठ हिन्दू धर्म के सभी लोग श्रद्धा पूर्वक करते है।

मार्कण्डेय पुराण आख्यान, उपाख्यान और कथाओ से भरा पड़ा हुआ है। इस पुराण में सबसे अधिक करुण और मार्मिक राजा हरिचन्द्र का आख्यान है। एक वचन के पूरा करने के लिए हरिचन्द्र ने अपना राज्य, एश्वर्य और अपनी पत्नी और पुत्र को भी बेच दिया था। स्वयं राज हरिचन्द्र श्मसान में चाण्डाल का काम करने लगे सिर्फ इसलिए की ऋषि विश्वामित्र की दक्षिणा पूरी करनी थी।

ऐसे पवित्र पुराण का श्रवण करने से मनुष्य सारे पापो से मुक्त हो जाता है, और धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष को प्राप्त होता है।

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