सूर्य भगवान ने सोचा कि केवल मंत्र देना होता, तब तो कोई बात नहीं, पर यह तो पढ़ने के लिए रहेगा। सूर्य भगवान ने सोचा, इस बालक को पहले भी कभी देखा है, कौन है यह? अरे! याद आया, यह बचपन में एक बार आया था।
सूर्य भगवान ने सोचा-- ऐसे विद्यार्थी को पास रखना ठीक नहीं है । पढ़ते-पढ़ते कब भूख लग आवे। तब तो उतनी दूर थे, तब छलांग लगा के आ गए, यहाँ तो गुरु जी सामने ही रहेंगे।
सूर्य भगवान ने सोचा -- ऐसे विद्यार्थी को पास रखना ठीक नहीं है । तो बोले -- ऐसा है, हम चलते-फिरते गुरु जी हैं। एक जगह तो रहते नहीं। कल कहीं थे, आज कहीं हैं और उसके बाद फिर कहीं। तो पढ़ो तो ऐसे गुरु जी के पास रहकर पढ़ो, जो एक जगह रहते हों। तो तुम भी वहीं रहो, उनके आश्रम में रहो और पढ़ो। हमारे साथ कैसे, हम तो सुबह कहीं और शाम कहीं, दोपहर कहीं और रात कहीं, कोई ठिकाना तो है नहीं ।
हनुमान जी बोले -- पढ़ेंगे तो आप से ही, अनन्य निष्ठा जो थी।
कैसे पढ़ोगे? हम तो चलते फिरते हैं। हनुमान जी बोले -- तो हम चलते-फिरते विद्यार्थी बन जायेंगे । आप जहाँ-जहाँ चलोगे, हम भी साथ-साथ चलेंगे। आपकी सेवा करेंगे, पढ़ते चलेंगे। आप भी तो कहीं न कहीं रहते होगे, दोपहर को, रात को, हम भी रहेंगे। आपके साथ ही, बस।
सूर्य भगवान ने सोचा -- यह विद्यार्थी तो गले ही पड़ गया। सूर्य भगवान ने कहा कि हमारे साथ रहोगे, तो भी पढ़ नहीं सकोगे।
क्यों? बोले -- हमारे पीछे पीछे चलोगे, तो हमारी पीठ तुम्हारी तरफ होगी, हमारे आगे-आगे चलोगे, तो तुम्हारी पीठ हमारी तरफ होगी, तो पढ़ाई कैसे होगी? गुरु शिष्य तो आमने-सामने बैठें, तब न पढ़ाई हो।
हनुमान जी बोले -- हाँ, यह बात तो है। सूर्य भगवान बोले -- इसीलिए कह रहा हूँ कि घर जाओ, पढ़ नहीं पाओगे। ऐसे कैसे पढ़ पाओगे?
हनुमान जी थोड़ी देर रुके। बुद्धिमतां वरिष्ठं, हनुमान जी तो बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं। तुरंत बोले -- इसका भी हल निकल आया गुरु जी। सूर्य भगवान बोले -- इसका क्या हल है? हनुमान जी बोले -- हम आपके आगे उल्टे-उल्टे चलेंगे। किसी की पीठ किसी की तरफ नहीं, आपके आगे उल्टे चलेंगे।
सूर्य भगवान बोले -- वाह ! अभी तो पढ़ाई शुरू नहीं हुई, गुरु जी के आगे ही उल्टे चलोगे? फिर पढ़ने से फायदा ही क्या है? काहे पढ़ रहे हो, जो गुरु जी के आगे ही उल्टे चलोगे । अच्छा निश्चय है यह तो, कि हम तो आप के आगे ही उल्टे चलेंगे। फिर पढ़ने का लाभ क्या? प्रयोजन क्या?
हनुमान जी ने हाथ जोड़कर कहा -- गुरु जी! यही तो मैं कह रहा हूँ कि अगर गुरुदेव का ज्ञान पाकर भी वैसे ही चलते रहे, जैसे पहले चल रहे थे, तो पढ़ने का प्रयोजन ही क्या? गुरुदेव से ज्ञान पाकर तो फिर उलट कर चलना चाहिए । जैसे पहले चलते थे वैसे नहीं , अब उलट कर चलो।
गई सो गई अब राख रही को।
बीत गई सो बीत जान दो,
अबहि बना लो काम।।
गया सो गया , उसके लिए कुछ मत सोचो ।
सूर्य भगवान बोले -- बिल्कुल ठीक, अब हम पढ़ाएंगे तुम्हें ।
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