महाभारत में जब अर्जुन ने जयद्रथ के वध की प्रतिज्ञा की तो कौरव सेनापति द्रोणाचार्य ने तिहरे व्यूह का निर्माण किया जिसमें सबसे अंत के व्यूह को 'कमल व्यूह' या 'पद्म व्यूह' बताया गया है जो मूलतः रथों के कई वर्तुलों का बना हुआ था जिसके केन्द्र में जयद्रथ सुरक्षित था अर्थात तकनीकी तौर पर यह रथों का व्यूह था।
द्रोणाचार्य ने दोंनों व्यूहों के पीछे सात कोस की दूरी पर बनाया था। क्यों ? क्योंकि रथ व्यूह की एक ही कमजोरी थी-'हाथी' और पांडवों की हस्तिसेना एक तो वैसे ही कमजोर थी और ऊपर से भारत की सर्वश्रेष्ठ हस्तिसेना कलिंग के पास थी और वह दुर्योधन के पक्ष में भीम के नेतृत्व वाली हस्तिसेना को रोकने के लिए प्रथम अग्रिम व्यूह में तैनात थी।
रथी अर्जुन के लिए भी कमल व्यूह को तोड़ना असंभव नहीं तो दुष्कर अवश्य था और वह भी दिव्यास्त्रों के उपयोग द्वारा जिसके प्रतिकार के लिए कर्ण व अश्वत्थामा जैसे दिव्यास्त्रधारी योद्धा वहाँ खड़े थे। यही कारण है कि कृष्ण को अपना मायाव्यूह और मनोवैज्ञानिक खेल खेलना पड़ा जिसमें फंसकर जयद्रथ बाहर निकल आया और मारा गया।
आगे चलकर रथ व्यूह के अपरिष्कृत रूप के दर्शन हमें महान चैक हीरो यान झींझका द्वारा ऑस्ट्रियन नाइट्स के विरुद्ध अपनी गाड़ियों के जमावड़े के रूप में होते हैं जिसमें वह सदैव अजेय रहे।
लेकिन प्राचीन भारत में इस रथ व्यूह का पुनः उपयोग एक ऐसे प्राचीन गणक्षत्रिय गणराज्य के द्वारा किया गया जो भारत में अपने अमर एकेश्वरवाद और नीली- भूरी आंखों, क्षीर गौर वर्ण वाले अपने असाधारण सौंदर्य व यमराज को भी चुनौती देने वाले भयंकर पराक्रम के लिए प्रसिद्ध था।
अपनी जाति की शरीर संपत्ति की रक्षा में ये इतने जुनूनी थे कि अस्वस्थ व अगौर जन्मे बच्चों को मार डालते थे। वर्तमान पाकिस्तान के स्यालकोट में इनके गणराज्य की राजधानी थी जिसे कहा जाता था- 'सांगल'।
इनका सामना हुआ मैसीडोनिया के विश्वविजेता युवक सम्राट व सार्वकालिक महान जनरलों में से एक अलक्क्षेन्द्र से जिसे यूनानी कहते थे 'अलैग्जैंड्रियस' और फारसी में कहा गया 'सिकंदर'।
कठों ने अपनी राजधानी के सामने रचा प्राचीन 'रथ व्यूह'। यूनानी जाते और वहीं ढेर हो जाते।
गॉगामेला में अपने से तीन गुनी बड़ी फारसी सेना को हराने वाला महान जनरल किंकर्तव्यविमूढ़ था। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
लेकिन भारत का दुर्भाग्य। इन आजाद गणों से अपनी निजी खुन्नस में रथ व्यूह को तोड़ने का उपाय बताया स्वयं पोरस ने।
पोरस ने न केवल उपाय बताया बल्कि अपने हाथी भी सिकंदर को इस रथ व्यूह तोड़ने हेतु प्रदान किये।
भले ही पोरस को इसका पश्चाताप हुआ और चंद्रगुप्त को मदद देकर अपने पाप का प्रायश्चित करने का प्रयास किया लेकिन यूनानी क्षत्रप यूथेडेमस के हाथों विश्वासघातपूर्वक मृत्यु से कर्मसिद्धांत पूर्ण हुआ।
चौंकिए मत। इतिहास टीवी सीरियलों और भावुक मान्यताओं से नहीं जाना जाता। यूनानी विवरण, परवर्ती भारतीय लेखकों ने कठों के दारुण विनाश का पूर्ण विवरण दिया है और स्वयं इन गणक्षत्रियों के वर्तमान वंशजों द्वारा पोरस के इस विश्वासघात को आजतक अपनी लोकस्मृति में जीवित रखा है। (प्रमाणों को विस्तार से जानने के लिए देखें 'इंदु से सिंधु तक')
आप जानना चाहेंगे कि इन गणक्षत्रियों का नाम और उनके वर्तमान वंशजों को ?
ये गणक्षत्रिय थे प्राचीन आर्य मद्र गणों की शाखा और नचिकेता के वंशज 'कठ' और उनके वंशज कहलाते हैं "काठी दरबार"।
आज नरेन्द्र मोदी ने भी पोप और इटालियन औरत की सेना के सामने अपने रथों द्वारा 'कमल व्यूह' रच दिया है जिसे तोड़ने के लिए सामर्थ्यशाली हाथी सेना की जरुरत है।
परंतु, विदेशी औरत की सेना में हाथी तो दूर घोड़ा भी नहीं है। हां एक गधे को सूंड पहनाकर हाथी के रूप में प्रचारित जरूर किया जा रहा है परंतु मोदी व उनके 'रथ कमल व्यूह' को कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक कि हमारे ही पक्ष के लोग जातिवाद में फंसकर 'विश्वासघात' करके 'हाथी' न बन जाये।
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