सभी कल्पों की रामकथा सत्य है

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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हनुमान जी और श्रीराम जी की अँगूठी
हनुमान जी और श्रीराम जी की अँगूठी


 श्री रघुनाथ जी ने हनुमान जी से कहा– हनुमान ! तुम निरंतर हमारी सेवा मे रहते हो और नाम जप भी करते हो परंतु सत्संग और कथा श्रवण करने नही जाते,यह तुम्हारे अंदर थोडी सी कमी है ।

हनुमान जी बोले – प्रभु ! आपकी आज्ञा शिरोधार्य है परंतु जिन भगवान की कथा है वे तो निरंतर मिले हुए हैं और आपकी सेवा भी मिली हुई है,आपकी जो प्रत्यक्ष अवतार लीला है ,जो चरित्र है वे प्रायःसभी हमने देखे हैं अतः मै सोचता हूं की कथा श्रवण से क्या लाभ ? 

श्री रघुनाथ जी बोले – यह सब ठीक है परंतु कथा तो श्रवण करनी ही चाहिए, श्री हनुमान जी ने पूछा कि आप ही कृपा पूर्वक बताएं की किसके पास जाकर कथा श्रवण करें ?

श्रीरघुनाथ जी बोले – नीलगिरी पर्वत पर श्री कागभुशुण्डि जी नित्य कथा कहते हैं , वे बड़े उच्च कोटि के महात्मा हैं, शंकर जी, देवी देवता, तीर्थ सभी उनके पास जाकर सतसंग करते हैं , आप उन्हीं के पास जाकर कथा श्रवण करो, हनुमान जी ने बटुक रूप धारण किया और नीलगिरी पर्वत पर कथा में पहुँच गए, श्रीकागभुशुण्डि जी हनुमान जी की ही कथा कह रहे थे उन्होंने कहा - जब जाम्बवंतजी ने हनुमान जी को अपनी शक्ति का स्मरण कराया तब हनुमान जी ने विराट शरीर धारण किया , एक पैर तो था महेंद्र गिरि पर भारत के दक्षिणी समुद्र तट पर और दूसरा रखा सीधे लंका के सुबेल पर्वत पर,एक ही बार मे समुद्र लांघ गए।

 वहां विभीषण से मिले, अशोक वाटिका मे जाकर सीधे ,बिना चोरी छिपे श्री सीता जी से मिले और वहां जब उन पर राक्षसों ने प्रहार किया तब उन्होंने सब राक्षसों को मार गिराया, रावण के दरबार मे़ भी पहुंचे , वहां रावण ने श्री राम जी के बारे में अपशब्द प्रयोग किये और राक्षसों से कहा, इस वानर की पूंछ मे आग लगा दो । 

  हनुमान जी यह सुनकर जोर से हुंकार किया और उनके मुख से भयंकर अग्नि प्रकट हुई,उस अग्नि ने लंका को जला दिया और हनुमान जी पुनः एक पग रखा तो इस पार रामजी के पास पहुँच गए, यह सुनते ही हनुमान जी ने सोचा की कागभुशुण्डि जी यह कैसी कथा सुना रहे हैं,मैनें तो इस प्रकार न समुद्र लांघा और न इस प्रकर से लंका जली लगता है कथा व्यास आजकल असत्य कथा कहने लगे है।

 श्री हनुमान जी के वापस आने पर रघुनाथजी ने पूछा कि आज कथा में कौन सा प्रसंग सुनाया गया ? 

  हनुमान जी ने उदास मुख से बताया की प्रसंग तो समुद्र लंघन और लंका दहन लीला का था परंतु उन्होंने तो कथा को बहुत प्रकार से बढ़ा चढाकर कहा, इस तरह की कोई लीला मैने नहीं की रघुनाथ जी हंसते हए बोले- आपको संदेह नही करना चाहिए , व्यास आसान पर बैठे संत के प्रति मनुष्य बुद्धि नहीं होनी चाहिए – कागभुशुण्डि जी कोई सामान्य महात्मा नहीं हैं, हनुमान जी ने बात तो मान ली और प्रभु के चरण दबाने लगे पर मन मे संदेह था, वे बार बार वही बात सोच रहे थे की आखिर विश्वास करें तो कैसे करे ?

  श्री राम जी ने उस समय अपनी अनामिका से अंगूठी निकाल कर गिरायी और कहा - हनुमान जी मेरी अंगूठी उठाकर दो, हनुमान जी अंगूठी उठाने झुके तो वह अंगूठी और आगे सरक गयी, उसको पुनः पकड़ने गए तो और आगे जाने लगी, पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर अंत मे सुमेरु पर्वत की एक कंदरा में प्रविष्ट हो गयी, वहां पर एक विशाल गुफा के भीतर वह चली गयी, हनुमान जी अंदर जाने लगे तो एक विशाल वानर ने उन्हें रोक लिया और उसने हनुमान जी से कहा कि मैं यहां का द्वारपाल हूं , तुम्हें भीतर जाने से पहले मुझसे अनुमति लेनी चाहिए । 

 हनुमान जी ने द्वारपाल से कहा की तुम मुझे जानते नही हो इसलिए मुझसे ऐसा कहते हो , मैं श्री राम जी का दास, पवनपुत्र हनुमान हूँ। यह बार सुनकर वह द्वारपाल वानर हंसकर बोला की हनुमान कब से इतने निर्बल, तेजहीन हो गए ? झूठ कहते हुए तुम्हे लज्जा नहीं आती ? तुम हनुमान जी कैसे हो सकते हो, हनुमान जी तो गुफा के भीतर ध्यान मे बैठे हैं।

  हनुमान जी समझ गए की अवश्य ही इसमें प्रभु की कोई लीला है। हनुमान जी ने द्वारपाल से आदर पूर्वक कहा कि आप भीतर जाकर हनुमान जी से विनती करो के बाहर एक वानर खड़ा है और आपके दर्शन करना चाहता है ।

  द्वारपाल ने भीतर जाकर हनुमान जी से कहा - एक वानर बाहर खड़ा है और अपने को श्रीराम दास हनुमान कहता है,भीतर बैठे हनुमान जी ने द्वारपाल से कहा वे हनुमान जी ही हैं, तुम उनको प्रणाम करके बहुत आदर पूर्वक यहां लाओ, बाहर खड़े हनुमान जी को द्वारपाल भीतर लाया तब उन्होंने देखा की दिव्य प्रकाश से वह गुफा चमक रही है और स्वर्ण सिंहासन पर करोड़ो सूर्य के समान तेजस्वी हनुमान जी बैठे है।

 उन्होंने हनुमान से कहा - श्री कागभुशुण्डिजी ने जो कथा सुनाई थी वह किसी अन्य कल्प की है,हर कल्प में भगवान के अवतार होते रहते हैं , अलग अलग कल्पों में अलग अलग पद्धति से लीला होती रहती है।

   युग के अनुसार और लीला के अनुसार भगवान श्रीराम अपने लीला पात्रों मे जैसी शक्ति स्थापित करना चाहते हैं वैसी करते हैं। एक पैर से लंका पर जाने वाले और फूंक मारकर लंका जलाने वाला हनुमान मै ही हूं , तुम संदेह रहित हो जाओ आपके द्वारा पूँछ बांधने के कारण लंका दहन करवाया और मेरे द्वारा फूंक मारकर, यह शक्ति आपकी और मेरी नहीं, यह शक्ति तो श्रीराम जी की है, यह जो मेरे पास जो कुंड है, उसमे जाकर देखो – उसमे तुम्हें भगवान की अंगूठी मिल जाएगी जिसका पीछा करते हुए तुम यहां आये। 

 हनुमान जी ने कुंड मे देखा तो पूरे कुंड मे एक जैसी सैकड़ो अंगूठियां दिखाई पड़ी, सिंहासन में बैठे हनुमान जी ने कहा कि जब जब अवतार काल मे श्रीराम जी हनुमान जी को कथा श्रवण करने भेजते है और उन्हें संदेह होता है तब वे ऐसी लीला करते हैं, अब तक सैकड़ों बार अवतार हुआ और सैकड़ो हनुमान यहां आये हैं।

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