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krishna, jamwant & jambawati |
जाम्बवान ने अपने प्रभु श्रीरामजी को श्रीकृष्ण रूप में पहचान कर अपनी पुत्री जामवंती का विवाह प्रभु श्रीकृष्ण के साथ कर दिया तथा सम्यन्तक मणि भी उपहार स्वरूप श्रीकृष्ण को भेंट कर दी।
जाम्बवान एक रीछ थे अतः उनकी पुत्री जामवंती भी रीछ पुत्री थीं। जो देखने में श्रीकृष्ण की अन्य रानियों जैसी रूपमती नहीं थीं। श्रीकृष्ण को शंका थी कि अन्य रानियाँ जामवंती को देखकर उसका उपहास करेंगी। अन्य कोई रानी ना भी करे पर रूकमणी तो अवश्य ही जामवंती का उपहास करेंगी।
जामवंती का कोई उपहास ना करे और जामवंती को ग्लानि ना हो इसके लिये श्रीकृष्ण जामवंती को पूर्ण घूँघट करा कर द्वारिका लेकर आये। श्रीकृष्ण जामवंती से विवाह करके आये हैं जब यह समाचार द्वारिका में पहुँचा तो सभी जामवंती के दर्शन के लिये आये किन्तु जामवंती के घूँघट में होने के कारण कोई उनके दर्शन नहीं कर पाया।
रूक्मिणी ने श्रीकृष्ण हे जामवंती का घूँघट हटवाने के लिये कहा तो वे बोले जामवंती अत्यन्त रूपमती हैं यदि कोई उनका दर्शन करेगा तो उन्हें नजर लग जायेगी अतः वे घूँघट में ही रहेंगी। रूकमणी ने पूछा क्या जामवंती मुझसे भी ज्यादा रूपवती है तो कृष्ण बोले जामवंती उनसे भी अधिक रूपवती हैं। इतना कह कर उन्होंने जामवंती को उनके कक्ष में भेज दिया तथा किसी को भी उनकी कक्ष में ना जाने की आज्ञा दी।
श्रीकृष्ण के मुख से जामवंती की प्रशंसा सुनकर रूकमणी को ईर्ष्या हो गयी और उन्होंने निश्चित किया की वे जामवंती के रूप का दर्शन अवश्य करेंगी। कैसे कोई अन्य रानी रूकमणी से भी अधिक रूपवान हो सकती है जिसे श्रीकृष्ण भी किसी को देखने नहीं दे रहे। इन्हीं विचारों के साथ रूकमणी जामवंती के कक्ष में जाने का अवसर तलाशने लगीं।
जब श्रीकृष्ण सम्यन्तक मणि सत्राजित को देने के लिये गये तब रूकमणी जी मौका पाकर जामवंती के कक्ष में चली गयीं। रूकमणी को कक्ष में आया देख जामवंती ने अपना घूँघट खींचा और रूकमणी की के चरण स्पर्श किये। जामवंती को घूँघट खींचते देख रूकमणी को और जामवंती के रूप से और भी अधिक ईर्ष्या हुयी और उसी ईर्ष्या में उन्होंने जामवंती के चरण स्पर्श करते ही अपना ईर्ष्या पूर्ण आशीर्वाद दिया, "जामवंती तू भी रूकमणी जैसी हो जा।
आशीर्वाद देने के साथ ही रूकमणी ने जामवंती का घूँघट हटा दिया। जामवंती का रूप देखकर रूकमणी भी अचंभित हो गयीं, क्योंकि तब तक उनका दिया गया जामवंती को आशीर्वाद फलीभूत हो जामवंती के लिये वरदान बन चुका था। रूकमणी को जामवंती के अपने ही जैसे सुन्दर रूप में दर्शन हुए, और श्रीकृष्ण की बनाई गयी योजना सफल हो गयी।