भागवत दर्शन |
ब्राह्मण शब्द से ही इनका अर्थ पता चलता है कि ब्रह्म को जाननेवाले और ब्रह्मपथगामी को ब्राह्मण कहते हैं , 3 युगों तक वैदिक सनातन धर्म में ज्ञान वर्ग को ब्राह्मण के नाम से जाना गया कर्म से ब्राह्मण ने सदैव ज्ञान दिया, धर्म को धारित , पालित-पोषित किया परन्तु कलयुग में ब्राह्मण और धर्म दोनों को कही ना कही चोट पहुँची।
अखंड भारत की सोच देने वाले आचार्य चाणक्य जी के काल तक ब्राह्मणों का ज्ञान वर्ग अपने कर्म को लेकर सजग था, धीरे धीरे नास्तिक मत के उदय के कारण हिन्दू धर्म में कई बदलाव आते गए । कालांतर में ब्राह्मणों में ही आपसी मतभेद बढ़ने लग गए और धीरे धीरे इस बिखराव ने विकराल रूप ले लिया जिसका प्रभाव प्रत्यक्ष धर्म पर पड़ा।
आजाद भारत में आते आते कुछ ब्राह्मण अपने मूल कर्म से विमुख हुए, कहीं लन्दन तो कही ब्रिटिश ऑफिस में कार्य करते नजर आये। मुग़ल काल में ब्राह्मण उभर आये क्योंकि ब्राह्मणों ने इस्लामिक पद्धति और उसका अनुसरण नहीं किया परन्तु अंग्रेजी हुकूमत में ब्राह्मणों ने आगे बढ़ते हुए अंग्रेजी और संस्कृति को अपनाया भी जिसके कारण बड़ी संख्या में ब्राह्मण सरकारी विभागों में पाए गए। यद्यपि आदि से ही सरकार के मार्ग दर्शन के लिए राजतंत्र में भी ब्राह्मण राजमहल में रहते थे परन्तु सांस्कृतिक ह्रास नहीं था उस समय।
धीरे धीरे अंग्रेजी सत्ता अपने राज्य का प्रसार कर रही थी। वहीं एक और कुछ ब्राह्मण ऐसे भी थे जो गुरुकुल व्यवस्था और वैदिक धर्म की पूर्ण रक्षा के लिए समस्त शक्ति से प्रयास में लगे थे। परन्तु जब अंग्रेजो की समझ आया की ये गुरुकुल व्यवस्था भारत के स्वाभिमान और आत्मसम्मान का मेरुदण्ड है तो उन्होंने इसे तोड़ने का मन बना लिया और अपने कही ब्रिटिश विद्वान को लन्दन से बुलाया जिसमे लार्ड मैकाले, रॉल्फ , ग्रिफिथ जैसों को भारत बुलाया और श्री ग्रन्थ वेदों के अंग्रेजी अनुवाद के नाम पर उसमे छेड़छाड़ की गयी। हालाँकि जो वैदिक वेद है वो आज भी उसी स्वरुप में है । अंग्रेजी अनुवाद से हिंदी में बदले गए वेदों में अंग्रेजो द्वारा कुछ बदलाव किये गए।
एक ओर जहाँ बड़ी तेजी से ब्रिटिश विद्वान वेदों का अनुवाद कर रहे थे दूसरी तरफ गुरुकुल बंद करवा कर कान्वेंट की स्थापना हो रही थी। अंग्रेजी संस्कृति को स्थापित कर वैदिक संस्कृति को मिटाया जा रहा था क्योंकि अंग्रेजो को समझ आ गया भारत की शक्ति यहाँ की संस्कृति है , कल तक जो अंग्रेज भारत में रहके हिंदी बोलते थे , उन्होंने अंग्रेजी के प्रसार पर बल दिया और हिंदी / संस्कृत भाषा का ह्रास होता गया। उसी में ब्राह्मण अगर अपने कर्तव्यों को समझकर वेदों के रक्षा के लिए उतर जाते तो शायद वैदिक संस्कृति का इतना ह्रास नहीं होता।
आजाद भारत में ब्राह्मणों का महत्व और सम्मान उतना ही गिरा क्योंकि ब्राह्मण अपने कर्मो के विरुद्ध अनेक कार्यों में जा घुसे थे। कहीं व्यापार तो कही रंगमंचो पर जा पहुँचे। तो दूसरी तरफ जातीय व्यवस्था चरम पर जा पहुँची। कर्म से ब्राह्मण भटक रहे थे तो विधर्मी और अज्ञानी लोगो ने धर्म का व्यवसाय आरम्भ कर दिया। अंधाधुंध भगवान के नाम पर पाखण्ड बढ़ता गया। एक तरफ ब्राह्मण जो कल तक समाज को वेदों के विज्ञान से परिचित करवाते थे। उनके रहते सनातन धर्म में अन्धविश्वास ने जगह बना ली। गली गली बाबा बैठने लगे गली गली व्यापारी आ बैठे मात्र ब्राह्मणों के अपने कर्म विमुख होने से धर्म का भयंकर ह्रास हो रहा था।
वैदिक धर्म के इसी हास को लेकर महर्षि दयानंद जी ने आर्य समाज की स्थापना की ताकि पाखण्ड और अंधविश्वास को दूर किया जा सके। कही धर्म सुधार आन्दोलन हुए परन्तु ब्राह्मणों की उनके द्वारा उपेक्षा के कारण विफल होते गए और आन्दोलन खुद भ्रष्ट होते गए। धीर धीरे आरक्षण जैसी व्यवस्था से शिक्षण पर असर पड़ना शुरू हुआ तब ब्राह्मणों के सर पे भार आके गिरा जिसको हटाने के लिए ब्राह्मणों ने पूरी तरह अपने आप को आज के युग में ढाल कर वैदिक सभ्यता, संस्कार और वेदों को पीछे छोड़ दिया।
वैदिक धर्म के 4 हिस्से हे जिसे वर्ण कहा गया हे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र धर्म में चारो का अपना महत्व है, जब भी इनमे से कोई हिलता गिरता है तो उसके पीछे सभी गिरते जाते है। क्षत्रिय वर्ण से जैन, बोद्ध और सिख धर्म बने तो वैदिक मतों का ह्रास हुआ ब्राह्मण वर्ण से उनके कर्म विमुख हुए तब पाखण्ड का विस्तार हुआ। अब शूद्रों के प्रति अंग्रेजी काल में उनके ही संस्कृति के प्रभाव में कर्तव्यच्युत कुछ सवर्णों द्वारा नकारात्मक व्यवहार से देश में हम सभी आरक्षण जैसी व्यवस्था झेल रहे हैं जो किसी का भला नहीं कर सकती।
ब्राह्मणों को समझना होगा, युवाओं को जागना होगा अगर आज नहीं संभले तो कल कही के नहीं रहेंगे। जरा सोचिये आप किस कुल में जन्मे हैं उसका महत्व क्या है, उसका सम्मान क्या और क्या ये जन्म फिर से मिलेगा। निःसंदेह आप बड़े डॉक्टर, इंजिनियर, सीए बन जाओगे परन्तु अगर भगवान को मानते हो तो ये याद रखना उसी ईश्वर ने आपको ब्राह्मण की उच्चतम उपाधि दी है । आपका उत्तरदायित्व है धर्म की रक्षा और ज्ञान की रक्षा आप अपने उस कर्त्तव्य से पीछे नहीं हट सकते।
सोचना बहुत जरुरी है, विचार जरुरी है। ब्राह्मणों में एकता थी और रहेगी परन्तु एकता को किस रूप में आप देखते हैं वो आपके ऊपर है।
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