दृष्टि अलग होती है, और दृष्टिकोण अलग होता है

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  दृष्टि अलग होती है, और दृष्टिकोण अलग होता है। "दृष्टि तो उसे कहते हैं, जो हम आंखों से बाह्य स्थूल पदार्थों को देखते हैं।" और ...

  दृष्टि अलग होती है, और दृष्टिकोण अलग होता है। "दृष्टि तो उसे कहते हैं, जो हम आंखों से बाह्य स्थूल पदार्थों को देखते हैं।" और "दृष्टिकोण वह मानसिक विचार होता है, जो प्रत्येक व्यक्ति के संस्कार चिंतन अध्ययन परिवेश आदि के आधार पर होता है।"

    "अब आंखें तो सबकी एक जैसी हैं, और दो दो ही हैं। इसलिए सबको पीली वस्तु पीली दिखती है, हरी वस्तु हरी दिखती है, लाल और नीली वस्तुएं, लाल और नीली दिखती हैं। इस प्रकार से दृष्टि तो सबकी समान है।" "फिर भी सबका दृष्टिकोण अलग-अलग होता है। क्योंकि सब के संस्कार चिंतन अध्ययन परिवेश आदि अलग-अलग हैं।"

   एक वस्तु किसी को अच्छी लगती है, वही वस्तु दूसरे व्यक्ति को अच्छी नहीं लगती। "जैसे बड़ी उम्र वालों को टिंडा शलजम पालक बैंगन गाजर मूली आदि खाना अच्छा लगता है, परंतु बहुत से बच्चों को यह सब खाना अच्छा नहीं लगता।" "कोई स्वास्थ्य रक्षा की दृष्टि से भोजन खाता है, कोई भोजन का सुख लेने के उद्देश्य से।" "किसी को भोगवाद अच्छा लगता है, तो किसी को अध्यात्मवाद अच्छा लगता है। जबकि संसार सबके लिए एक ही है।" "इस प्रकार से सबका दृष्टिकोण अलग-अलग हो जाता है।"

    "जिन्हें आज भोगवाद अच्छा लग रहा है, कुछ समय बाद, जब उन्हें भोगवाद के दोष तथा अध्यात्मवाद के लाभ समझ में आ जाएंगे, तब उन्हें भी भोगवाद अच्छा नहीं लगेगा और अध्यात्मवाद अच्छा लगने लगेगा। क्योंकि अंतिम रूप से शांति तो अध्यात्मवाद में ही है।" "इस प्रकार से दृष्टिकोण समय समय पर संस्कार चिंतन अध्ययन अनुभव आदि के आधार पर बदलता भी रहता है।" इसी कारण से लाखों लोग भूतकाल में अध्यात्मवाद को अपनाते रहे और संसार के जन्म मरण रूप दुखों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त कर गए। "मोक्ष प्राप्ति का केवल एक ही मार्ग है। और वह है वेदों के अनुसार अध्यात्मवाद को स्वीकार करना और उसका आचरण करना।" "अलग-अलग आयु ज्ञान अनुभव परिस्थितियों में भले ही दृष्टिकोण कुछ समय के लिए अलग-अलग हो जाए, तो भी अंतिम सत्य तो एक ही रहता है। इसलिए जो अंतिम सत्य होता है, वही दृष्टिकोण भी सबसे उत्तम होता है।"

   "अब कुछ लोग अपने हठ दुराग्रह छल कपट अभिमान आदि दोषों के कारण अपना दृष्टिकोण अलग ही बनाए रखते हैं। वे सत्य को समझने का प्रयास ही नहीं करते। यदि जैसे तैसे सत्य समझ में आ भी जाए, तो सत्य को स्वीकार नहीं करते, बल्कि असत्य को ही बढ़ावा देते रहते हैं।" "वे लोग "अपना-अपना दृष्टिकोण है," यह बहाना बनाकर स्वयं तो झूठा जीवन जीते ही हैं, और दूसरों को भी गलत दिशा में धकेलते रहते हैं। ऐसा करना मानवता के लिए अपराध है।"

  यदि आप इतना समझ लें, कि "यह संसार की सच्चाई है, यह संसार ऐसे ही चलता है, और आगे भी ऐसे ही चलेगा," "तो आप किसी भी परिस्थिति में परेशान नहीं होंगे और आनन्द से अपना जीवन जीएंगे।"

   "संसार में अधिकांश लोग भोगवादी हैं, तथा अध्यात्म की ओर बहुत कम लोग चलते हैं। इसका कारण भी यही समझना चाहिए, कि "सभी में अविद्या है।"अविद्या के कारण सब की दो दो आंखें होने पर भी, अर्थात दृष्टि समान होने पर भी, सबका दृष्टिकोण एक समान नहीं है।"अतः इस बात की अधिक चिंता नहीं करनी चाहिए, कि लोग असत्य को छोड़ते क्यों नहीं, और सत्य को धारण क्यों नहीं करते। क्योंकि सबका दृष्टिकोण अलग-अलग है।"

    "आप तो अपने लक्ष्य 'मोक्ष की प्राप्ति' के लिए पूर्ण पुरुषार्थ करें। मैं भी यही करता हूं। इसी पुरुषार्थ में परोपकार भी एक अंग है। परोपकार तो करना ही होगा। उसके बिना भी मोक्ष नहीं मिलेगा।" "तो यथाशक्ति परोपकार करते हुए, संसार की चिंता न करते हुए, बुद्धिमत्ता से काम लेते हुए, कुछ मात्रा में परोपकार भी करें और अपना ध्यान समाधि लगाकर मोक्ष को प्राप्त करें। यही मार्ग सुखदायक है।"

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भागवत दर्शन: दृष्टि अलग होती है, और दृष्टिकोण अलग होता है
दृष्टि अलग होती है, और दृष्टिकोण अलग होता है
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