प्रेम की अन्तिम आचार्या

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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   प्रेम की अन्तिम आचार्या ब्रजांगनाएं हैं, ब्रजगोपियाँ हैं जिनकी चरणधूलि ब्रह्मा शंकर सनकादिक, जनकादिक उद्धवादिक समस्त परम हंस चाहते हैं । वे वृक्ष बन बन कर ब्रज में उनकी चरण धूलि के लिये गये थे। ब्रजगोपियों के प्रेम के आगे और किसी का प्रेम न हुआ था न होगा। महाभाव कक्षा पर पहुंची हुई ब्रजगोपियों में दो प्रकार की गोपियाँ थीं- एक ऊढ़ा एक अनूढ़ा माने एक , विवाहिता और एक कन्यायें । जो विवाहिता गोपियाँ थीं, उनका प्रेम अधिक उच्च कक्षा का था और नंबर दो की कन्यायें थीं। विवाहिता का प्रेम परकीया भाव का प्रेम कहलाता है और कन्याओं का का प्रेम स्वकीया भाव का प्रेम है । स्वकीया माने जिसका और किसी से सम्बन्ध न हो । और परकीया माने जिसका विवाह हो चुका है पति है लेकिन चोरी-चोरी प्यार करती हैं श्यामसुन्दर से। तो परकीया भाव का प्रेम ब्रजांगनाओं का सर्वश्रेष्ठ माना गया है । तो ये दो प्रकार की गोपियाँ थीं । ये दोनों प्रकार की गोपियों का प्रेम सर्वोच्च प्रेम कहलाता है। इन दोनों ब्रजगोपियों ने दुर्गा की उपासना की थी -

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ।

नन्दगोपसुतं देव पतिं में कुरु ते नमः।।

                                                                ( भाग. १०-२२-४ )

  दुर्गा के बहुत नाम हैं बहुत रूप हैं चार भुजा की दुर्गा आठ भुजा की, हजार भुजा की । तो उन्हीं दुर्गा का एक रूप कात्यायनी देवी हैं उसी को योगमाया कहते हैं । श्रीकृष्ण की बड़ी बहिन हैं ये योगमाया जो यशोदा की पुत्री हैं । यशोदा की पुत्री हुई थी और देवकी के पुत्र हुये थे, श्रीकृष्ण। तो श्रीकृष्ण को वसुदेव ले जाकर यशोदा के बगल में लिटा दिये थे और योगमाया को यानी यशोदा की पुत्री को उठा लाये थे और देवकी को दे दिया था उसी को कंस नें चट्टान पर पटका था लेकिन चट्टान पर गिरने के पहले ही वो आकाश को चली गयी और आठ भुजा से प्रकट होकर कंस को डाँटा तुझे मारने वाला आ गया हूँ तू मुझे क्या मारेगा ? तो वो कात्यायनी देवी योगमाया दुर्गा हैं उनकी उपासना किया था ब्रजगोपियों ने और उनसे वर माँगा था कि मेरे वर श्रीकृष्ण बनें ।

' पतिं मे कुरुते नमः ।' ( भाग.१०-२२-४ )

  हे कात्यायनी ! हम तुमको नमस्कार करते हैं । ऐसा वरदान दो कि कृष्ण हमारे पति बनें । प्रियतम बनें । और यही दुर्गा रामावतार में पार्वती के रूप में थीं जिनसे सीता ने राम ने सबने इनकी उपासना की । और -

मन जाहि राच्यो मिलहिं सो वर सहज सुन्दर साँवरो ।

  वहाँ वर दिया था । पार्वती ने सीता को ' जाओ तुमको तुम्हारे पति राम मिलेंगे ' । तो दुर्गा की उपासना करके हम उनसे वर माँगे हमको श्रीकृष्ण प्रेम दो।

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