कावेरी नदी के उद्गम के लिए कौआ बन गए गणेशजी

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  एक बार जम्बूद्वीप के कई क्षेत्रों में ऐसा सूखा पड़ा कि सब कुछ निर्जल हो चला। मनुष्य पशु पक्षी सभी की जान पर बन आई, पानी नहीं होने से सृष्टि पर संकट आ खड़ा हुआ, ऋषि-मुनि और देवता भी दुखी थे।

  अनर्थ की आशंका देखकर अगस्त्य ऋषि को बड़ी चिंता हुई । मानव जाति की रक्षा का प्रण ले कर वह ब्रह्माजी के पास पहुंचे । अगस्त्य मुनि ने ब्रह्मा जी से कहा- आपसे कुछ छिपा तो नहीं है फिर भी कहता हूं कि पृथ्वी पर त्राहि त्राहि मची हुई है ।

  अकाल के चलते मानव जाति पर जो संकट आया है वैसा संकट मैंने अभी तक नहीं देखा था। यदि आपने चिंता न की तो जंबूद्वीप का दक्षिण भूभाग तो जन और वनस्पति विहीन हो जायेगी । आपकी रची सृष्टि पर संकट भारी है ।

  ब्रह्माजी ने कहा- मैं सब समझता हूं। इस सृष्टि की रक्षा के लिए तुम्हारी चिंता से मुझे बहुत प्रसन्नता भी हो रही है लेकिन इस संकट के समाधान का मार्ग बहुत कठिन है। यदि कोई कर सके तो मैं निदान बता सकता हूं ।

  अगस्त्य ने कहा- सृष्टि के कल्याण के लिए जो भी संभव हो मैं वह करने को तैयार हूं, आप मुझे राह बताइए। ब्रह्मा जी ने कहा यदि कैलास पर्वत से कावेरी को भारत भूमि के दक्षिण में ले आया जाए तो इस संकट का निदान हो सकता है ।

  यह एक दुष्कर कार्य था पर ब्रह्मा जी ने यह कहकर इसे थोड़ा आसान बना दिया कि आपको पूरी नदी नहीं लानी है। बस कैलास की थोड़ी हिम या बर्फ ही अपने कमंडल में लानी होगी। उसी से कावेरी यहां पर स्वयं प्रकट हो जायेंगी ।

  अगस्त्य मुनि कैलास पर्वत की और चल पड़े। अगस्त्य अपने तपोबल से शीघ्र ही कैलास पर्वत पर जा पहुंचे। बिना देर लगाये अपने कमंडल में कैलास पर्वत की बर्फ भरी और सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित दक्षिण दिशा की ओर लौट चले ।

  मार्ग में उन्हें ध्यान आया कि शीघ्रतावश ब्रह्माजी से यह पूछना ही भूल गए कि कैलास पर्वत से लाये हिमजल का क्या करना है? कावेरी का उद्गम कहां रहेगा। यह सब विवरण तो पूछा ही नहीं।

  वह स्वयं के अनुमान से नदी के उद्गम स्थान की खोज करते हुए कुर्ग क्षेत्र में पहुंचे। कैलास से कमंडल भर कर लाते और उद्गम स्थान की खोज करते-करते ऋषि थक गए। उन्होंने कमंडल को भूमि पर रखा और विश्राम करने लगे।

  ऋषि थकान उतारने के लिए स्थान तलाशने लगे। पश्चिमी घाट के उत्तरी भाग में स्थित सुन्दर ब्रह्माकपाल पर्वत उन्हें दिखाई पड़ा। इस सुंदर पहाड़ के एक कोने में एक छोटा सा जलाशय भी था। अगस्त्य को विश्राम के लिए स्थान उत्तम लगा ।

  मनोरम स्थल पर विश्राम को बैठे अगस्त्य को झपकी लग गयी। थोड़ी देर में अचानक एक आहट से उनकी तंद्रा भंग हुई तो उन्होंने देखा कि जो कमंडल कैलाश से भरकर लाए थे वह भूमि पर लुढ़क चुका है। जल बह रहा है और पास ही एक कौवा बैठा है।

  अगस्त्य तत्काल समझ गये कि यह सब कौवे का किया धरा है। कौवा उड़ते उड़ते आया होगा और जल की अभिलाषा में कमंडल पर बैठा होगा। भूमि समतल न होने से कमंडल असंतुलित हो लुढ़क गया होगा ।

  जब ऋषि ने यह अनर्थ देखा और अपने संपूर्ण श्रम से ज्यादा मानव जाति की समाप्ति की समस्या के समाधान पर पानी फिरता देखा तो उन्हें कौवे पर अत्यंत क्रोध उमड़ आया ।

  क्रोध से भरे अगस्त्य कौवे को उसके किए का दंड देने ही वाले थे कि अचानक कौए ने रूप बदला और गणेशजी प्रकट हो गए। अब नतमस्तक होने की बारी ऋषि की थी। गणेशजी ने ऋषि से कहा कि मैं आपके परोपकार की भावना से बहुत प्रभावित हूं ।

  उद्गम स्थल ढूंढने में आप विलंब न करें। इस प्रक्रिया में न तो आपको ज्यादा श्रम लगे न थकान हो और न ही मानव जाति प्रतीक्षारत रहे। इसलिए कौवे का रूप धारण करके आपकी सहायता के लिए मैं स्वयं आया था ।

  कावेरी के लिए यही उचित उद्गम है। यह कहने के साथ भगवान गणेश अंतर्धान हो गए। उधर कावेरी की कलकल सुन कर ऋषि भी अत्यधिक प्रसन्न हुए। उनकी थकान लुप्त हो गयी।

  चूंकि गणेशजी के प्रहार से कमंडल का जल गिरकर पहले एकत्र हुआ और फिर बहा था इसलिए जहां वह जल गिरा था वह तालाब जैसा बन गया। कावेरी वहीं से निकलकर ब्रह्मकपाल पर्वत से प्रवाहित होती है ।

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