प्रकृति का नियम

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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एक बार नारद जी ने भगवान से प्रश्न किया कि प्रभु आपके भक्त गरीब क्यों होते हैं ?

  भगवान बोले–"नारद जी ! मेरी कृपा को समझना बड़ा कठिन है।" इतना कहकर भगवान नारदजी को साथ लेकर साधु भेष में पृथ्वी पर पधारे और एक सेठ जी के घर भिक्षा माँगने के लिए दरवाजा खटखटाने लगे।

   सेठ जी बिगड़ते हुए दरवाजे की तरफ आए और देखा तो दो साधु खड़े हैं। 

   भगवान बोले–"भैया ! बड़े जोरों की भूख लगी है। थोड़ा सा खाना मिल जाए।" 

  सेठ जी बिगड़कर बोले–"तुम दोनों को शर्म नहीं आती। तुम्हारे बाप का माल है ? कर्म कर के खाने में शर्म आती है, जाओ-जाओ किसी होटल में खाना माँगना।" 

  नारद जी बोले–"देखा प्रभु ! यह आपके भक्तों और आपका निरादर करने वाला सुखी प्राणी है। इसको अभी शाप दीजिये।" नारद जी की बात सुनते ही भगवान ने उस सेठ को अधिक धन सम्पत्ति बढ़ाने वाला वरदान दे दिया।

   इसके बाद भगवान नारद जी को लेकर एक बुढ़िया मैया के घर में गए। जिसकी एक छोटी सी झोपड़ी थी, जिसमें एक गाय के अलावा और कुछ भी नहीं था। जैसे ही भगवान ने भिक्षा के लिए आवाज लगायी, बुढ़िया मैया बड़ी खुशी के साथ बाहर आयी। 

  दोनों सन्तों को आसन देकर बिठाया और उनके पीने के लिए दूध लेकर आयीं और बोली–"प्रभु ! मेरे पास और कुछ नहीं है, इसे ही स्वीकार कीजिये।" 

   भगवान ने बड़े प्रेम से स्वीकार किया। तब नारद जी ने भगवान से कहा–"प्रभु ! आपके भक्तों की इस संसार में देखो कैसी दुर्दशा है, मेरे से तो देखी नहीं जाती। यह बेचारी बुढ़िया मैया आपका भजन करती है और अतिथि सत्कार भी करती है। आप इसको कोई अच्छा सा आशीर्वाद दीजिए।" 

   भगवान ने थोड़ा सोचकर उसकी गाय को मरने का अभिशाप दे डाला।" यह सुनकर नारदजी ने कहा–"प्रभु जी ! यह आपने क्या किया ?"

   भगवान बोले–"यह बुढ़िया मैया मेरा बहुत भजन करती है। कुछ दिनों में इसकी मृत्यु हो जाएगी और मरते समय इसको गाय की चिन्ता सताएगी कि मेरे मरने के बाद मेरी गाय को कोई कसाई न ले जाकर काट दे, मेरे मरने के बाद इसको कौन देखेगा ? 

    तब इस मैया को मरते समय मेरा स्मरण न होकर बस गाय की चिन्ता रहेगी और वह मेरे धाम को न जाकर गाय की योनि में चली जाएगी। उधर सेठ को धन बढ़ाने वाला वरदान दिया कि मरते वक़्त धन तथा तिजोरी का ध्यान करेगा और वह तिजोरी के नीचे साँप बनेगा। यही प्रकृति का नियम है।"

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