चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है । इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है । ‘गुड़ी’...
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है । इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है । ‘गुड़ी’ का अर्थ ‘विजय पताका’ होता है । इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है ।
चैत्रमास की शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि की उत्पति हुई थी और इस दिन कुछ ऐसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैं जिसके कारण इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। आइये आपको इस दिन के इतिहास से जुड़ी कुछ घटनाएं बताते हैं…
इतिहास में इस प्रकार वर्णित है चैत्री वर्ष प्रतिपदा
1. भगवान ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि का सर्जन
2. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक
3. माँ दुर्गा के नवरात्र व्रत का शुभारम्भ
4. प्रारम्भयुगाब्द (युधिष्ठिर संवत्) का आरम्भ
5. उज्जैनी सम्राट विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत्प्रारम्भ
6. शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचांग) का प्रारंभ
7. महर्षि दयानन्द जी द्वारा आर्य समाज का स्थापना दिवस
8. भगवान झूलेलाल का अवतरण दिन
9. मत्स्यावतार दिवस
10. डॉ॰ केशवराव बलिरामराव हेडगेवार जन्मदिन ।
नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती हैं…!!! इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है । चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं ।
शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है । ‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है । महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक…दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की थी ।
वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में गुड़ी पड़वा की गिनती होती है । इसी दिन भगवान श्री राम ने बालि के अत्याचारी शासन से प्रजा को मुक्ति दिलाई थी ।
नव वर्ष का प्रारंभ प्रतिपदा से ही क्यों ?
भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है ।
आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यवहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है । इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है ।
विक्रमी संवत किसी की संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है । हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं । यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं, ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है ।
भारतीय गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थों में प्रकृति के शास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है ।
प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है । ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की। इसलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं ।
आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं । यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है । प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है । मानव, पशु-पक्षी यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है ।
इसी प्रतिपदा के दिन आज से उज्जैनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की । उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा ।
महाराज विक्रमादित्य ने चैत्री प्रतिपदा के दिन से राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की । साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई । उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी ।
महाराजा विक्रमादित्य ने भारत की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की । सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया । इसी दिन को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक के रूप में मनाया गया ।
यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है । इसी दिन महाराज युधिष्ठर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया ।
आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धर्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है । यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है । हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में शक्ति संचय करते हैं ।
कैसे मनाएं नूतन वर्ष ?
मस्तक पर तिलक, भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य , शंखध्वनि, धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कालेज आदि सभी मुख्य प्रवेश द्वारों पर बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भगवा ध्वजा फहराकर सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें । आज से अपने स्नेहीजनों, मित्रों को बधाईयां जरुर भेजें। अभी से सभी भारतीय संकल्प लें की इस साल 9 अप्रैल को हिंदू नववर्ष धूमधाम से मनाएंगे ।
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