भगवान शिव एवं पार्वती —सनातन सत्य कथा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  जब माता सती के वियोग में भगवान शिव ने किया तांडव, जानिए महादेव की प्रेम कहानी।

  गौरी-शंकर, उमा-महेश, शिव-पार्वती, भैरव-काली यह सभी भगवान महादेव और माता पार्वती के नाम है। क्या आपने कभी गौर किया है कि महादेव के हर नाम के साथ उनकी पत्नी का नाम भी जोड़ा जाता है।

  अगर आप भगवान शिव के जीवन पर ध्यान दोगे, तो आपको पता चलेगा कि भगवान शिवजी की जिंदगी प्यार से भरपूर रही हैं। हालांकि भगवान शिव और माता पार्वती को जीवन में कई उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ा है। आइए हम आपको बताते हैं, भगवान शिव और माता पार्वती किस किस रूप में एक दूसरे मिले और उन्हें कितने उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा।

भगवान शिव और माता सती

   माता सती ब्रह्मा के मानस पुत्र प्रजापति दक्ष की पुत्री थी। कहा जाता है कि माता सती ने अपने पिता दक्ष की इच्छा के विपरीत भोलेनाथ से शादी की थी। यही कारण है कि प्रजापति दक्ष अपनी बेटी से घृणा करने लगे थे। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उसमें अपनी पुत्री सती को नहीं बुलाया।

  हालांकि अपने पिता के मुंह में उस माता सती बिना बुलाए ही उस यज्ञ में जा पहुंची। अपनी पुत्री को वहां देखकर दक्ष ने अपेक्षा के भाव से सती को भगवान शिव के बारे में अपमान भरे शब्द कहें। अपने पिता के मुंह से अपने पति शिव के बारे में अपमान भरे शब्द सुनकर माता सती को बहुत दुख हुआ और वह उसी समय यज्ञ में कूद गई और अपने प्राण त्याग दिए। 

   जब भगवान शिव को इसके बारे में पता चला तो वह माता सती के जले हुए शरीर के साथ तांडव करने लगे। इसे देखकर तीनों लोक के लोग व्याकुल हो गए। इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के अलग-अलग टुकड़े कर दिए। यही आज 51 शक्ति पीठ के रूप में विराजमान है।

भगवान शिव और माता पार्वती

  इसके बाद माता सती ने हिमालय के राजा हिमवान और मेनावती के घर में जन्म लिया। क्योंकि उनका जन्म हिमालय के राजा के घर में हुआ था इसलिए उनका नाम पार्वती रखा गया। पार्वती का अर्थ पर्वतों की रानी होता है।

   माता पार्वती बचपन से ही भगवान शिव को अपना पति मानती थी। भगवान शिव को पाने के लिए उन्होंने कई सालों तक वन में तपस्या की। एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती के प्रेम की परीक्षा लेने के लिए देवर्षि को उनके पास भेजा। देवर्षि ने माता पार्वती के पास जाकर उन्हें समझाया कि शिव औघड़ है और तुम उनके साथ कभी खुश नहीं रह पाओगी, लेकिन माता पार्वती अपने फैसले पर अडिग रहें और उन्होंने भगवान शिव के लिए अपना प्रेम चाहे किया। 

   माता पार्वती के मन में अपने प्रति प्रेम देखकर देखकर भगवान शिव काफी प्रसन्न हुए वह जान गए थे कि पार्वती को अपना सती रूप अभी भी याद है इसके बाद भगवान शिव ने पार्वती से शादी की और उन्हें अपने साथ कैलाश पर्वत ले आए।

भगवान शिव और माता उमा

 माता पार्वती की माता उम्र थी जब भगवान शिव महेश हुए तो पार्वती ने भी उमा का रूप धारण कर लिया था।

  माता उमा को भूमि की देवी कहा जाता है। उन्हें सरल हृदय और दयालुता की वजह से जाना जाता है। माता उमा की उत्पत्ति उत्तराखंड में हुई थी, वही कापरिपट्टी के शिव मंदिर को उनका ससुराल माना जाता है।

भगवान शिव और माता काली

  भगवान शिव में चौथी पत्नी के रूप में माता काली को पाया था। मां काली का जन्म दानवों का अन्त करने के लिए हुआ था। उस समय एक ऐसा दानव हुआ करता था, जिसके शरीर के रक्त की एक भी बूंद अगर जमीन पर गिर जाती तो उस रक्त की एक बूंद से हजारों दानवों का जन्म हो जाता था। उस दानव का वध करना किसी भी देवता के वश में नहीं था।

  ऐसे में मां काली ने उस दानव का वध किया लेकिन उस दानव का वध  करने के बाद माता काली का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था। माता काली का गुस्सा शांत करने के लिए भगवान शिव उनकी राह में लेट गए, इसी दौरान गलती से माता काली ने एक पैर भगवान शिव के सीने पर रख दिया, इससे उनका गुस्सा शांत हो गया।

 हालांकि माता काली को अपनी इस गलती के लिए वर्षों तक हिमालय के जंगल में भटकना पड़ा। कई साल तपस्या करने के बाद महादेव ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें इस पाप से मुक्ति दिलाई।

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