रेगिस्तानी मैदान से एक साथ सौ ऊंट अपने मालिक के साथ जा रहे थे। अंधेरा होता देख मालिक ने एक सराय में रुकने का आदेश दे दिया। निन्यानवे ऊंटों...
रेगिस्तानी मैदान से एक साथ सौ ऊंट अपने मालिक के साथ जा रहे थे। अंधेरा होता देख मालिक ने एक सराय में रुकने का आदेश दे दिया। निन्यानवे ऊंटों को जमीन में खूंटियां गाड़कर उन्हें रस्सियों से बांध दिया। मगर एक ऊंट के लिए रस्सी कम थी और काफ़ी खोजबीन के बाद भी नहीं मिला। तब सराय के मालिक ने सलाह दी कि तुम सिर्फ खूंटी गाड़ने जैसी चोट करो और ऊंट को रस्सी से बांधने का अहसास करवाओ।
यह बात सुनकर मालिक हैरानी में पड़ गया, पर दूसरा कोई रास्ता नहीं था। इसलिए उसने वैसा ही किया। झूठी खूंटी गाड़ी गई, चोटें की गईं। ऊंट ने चोटें सुनीं और समझ लिया कि बंध चुका है। वह बैठा और सो गया।
सुबह निन्यानबे ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं और रस्सियां खोलीं। सभी ऊंट उठकर चल पड़े, पर वही एक ऊंट बैठा रहा। मालिक को आश्चर्य हुआ - 'अरे, यह तो बंधा भी नहीं है, फिर भी उठ नहीं रहा है !'
सराय के मालिक ने समझाया-- "तुम्हारे लिए वहां खूंटी का बंधन नहीं है मगर ऊंट के लिए है। जैसे रात में व्यवस्था की, वैसे ही अभी खूंटी उखाड़ने और बंधी रस्सी खोलने का अहसास करवाओ।"
मालिक ने खूंटी उखाड़ने और रस्सी खोलने की अभिनय किया। इसके बाद ऊंट उठकर चल पड़ा। जो बिना बँधे ही खुद को बँधा माने वही तो गधा है।
ऐसा इंसानो के साथ भी कभी- कभी होता है। इंसान ऐसी ही खूंटियों से और रस्सियों से बंधे होते हैं, जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता; मगर बंधता है अपने ही गलत दृष्टिकोण से, गलत सोच से, विपरीत मान्यताओं की पकड़ से। ऐसा व्यक्ति सच को झूठ और झूठ को सच मानता है। उनके लिए दोहरा जीवन जीने की आदत पड़ जाता है। फल स्वरूप उसके आदर्श और आचरण में लंबी दूरी होती है। इसलिए जरूरी है कि मनुष्य का मन जब भी जागे, लक्ष्य का निर्धारण सबसे पहले करे।
क्यों की उद्देश्य हीन होकर मीलों तक चलने से सिर्फ थकान, भटकाव और निराशा मिलेगी किन्तु असली मंजिल नही। सफल जीवन जीने की असली मन्त्र है-- 'Be Positive'...। पहले अपना लक्ष्य निर्धारित करें और उसी दिशा में ही चलपडे।
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