आत्मा की अमरता पर विश्वास कीजिए

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  आत्मा की अमरता का विश्वास सचमुच भू-लोक का अमृत है। इसे पान करने के उपरांत मनुष्य की दिव्य दृष्टि खुलती है। वह कल्पना करता है कि मैं अतीत काल से, सृष्टि के आरंभ से एक अविचल जीवन जीता चला आया हूँ। अब तक लाखों करोड़ों शरीर बदल चुका हूँ। पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े, जलचर-नभचर के लाखों मृत शरीरों की कल्पना करता है और अंतर्दृष्टि से देखता है कि ये इतने शरीर समूह मेरे द्वारा पिछले जन्मों में काम में लाए एवं त्यागे जा चुके हैं। उसकी कल्पना भविष्य की ओर भी दौड़ती है, अनेक नवीन सुंदर ताजे शक्ति संपन्न शरीर सुसज्जित रूप से सुरक्षित रखे हुए उसे दिखाई पड़ते हैं। जो निकट भविष्य में उसे पहनने हैं। यह कल्पना- यह धारणा - ब्रह्म विद्या के विद्यार्थी के मानस लोक में सदैव उठती, फैलती और पुष्ट होती रहती है। यह विचारधारा धीरे-धीरे निष्ठा और श्रद्धा का रूप धारण कर जाती है, जब पूर्णरूप से, समस्त श्रद्धा के साथ यह विश्वास करता है कि वर्तमान जीवन मेरे महान अनंत जीवन का एक छोटा-सा परमाणु मात्र है, तो उससे समस्त मृत्यु जन्य शोकों की समाप्ति हो जाती है। उसे बिल्कुल ठीक वही आनंद उपलब्ध होता है जो किसी अमृत का घट पीने वाले को होना चाहिए।

  "मैं पवित्र अविनाशी और निर्लिप्त आत्मा हूँ" इस महान सत्य को स्वीकार करते हुए मनुष्य अमरत्व के समीप पहुँच जाता है। उसका दृष्टिकोण अमर, सिद्ध, महात्मा और देवताओं जैसा हो जाता है। इस परिस्थिति के भव-बंधन में बँधा हुआ इधर-उधर नाचता नहीं फिरता, वरन् अपने लिए वैसे ही संसार का जान-बूझकर निर्माण करता है, जैसा आत्म-विश्वास और आत्म-परायणता का मार्ग है। यदि आप अपना सम्मान करते हैं, अपने को आदरणीय मानते हैं, अपनी श्रेष्ठता और पवित्रता पर विश्वास करते हैं, तो सचमुच वैसे ही बन जाते हैं। जीवन की अंतःचेतना उसी साँचे में ढल जाती है, और रक्त के साथ दौड़ने वाली विद्युत शक्ति में ऐसा प्रवाह उत्पन्न हो जाता है, जिसके द्वारा हमारे सारे काम-काज ऐसे होने लगते हैं, जिनमें उपरोक्त भावनाओं का प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखाई देने लगता है। आत्म-तिरस्कार करने वालों के कामों को देखकर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यह नीच वृत्ति का अकर्मण्य, आलसी, दास, दीन और अपाहिज है। अपने आपे का तिरस्कार करने वाले आत्म-हत्यारे अपना यह लोक भी बिगाड़ते हैं और परलोक भी। आत्मा की अमरता पर विश्वास करना ही अमृत है। मैं अविनाशी हूं, पग -पग पर दिखाई देने वाले भय को मार भगाकर निर्भयता प्रदान करने वाला यह मृत्युञ्जय बीज मंत्र है। अपने अंदर पवित्रता अनुभव करने में आत्म सम्मान है और अपने को अविनाशी समझने से आत्म विश्वास का प्रदुर्भाव होता है । निराशा और भय के झूले में झूलने वाले लोगों को "मैं अविनाशी हूं" यह मंत्र जीवन संदेश देता है, वह कहता है - उठो ! कर्तव्य पर प्रवृत्त होओ, तुम्हारा जीवन अखंड है।

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