दमनक चतुर्थी व्रत

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  भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिये दमनक चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है।   चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यह पर्व मनाया जाता है। इ...

  भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिये दमनक चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है।

  चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यह पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष 12 अप्रैल 2024 को दमनक चतुर्थी का उत्सव मनाया जाएगा। भगवान श्री गणेश जी को दमनक नाम से भी पुकारा जाता है। इस कारण से चैत्र माह के शुक्ल पक्ष कि चतुर्थी को गणेश दमनक चतुर्थी भी कहा जाता है।

  भगवान श्री गणेश सभी संकटों का हरण करने वाले हैं, सभी दुख कलेश का नाश करने वाले है इसलिए इस दमनक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश जी का व्रत एवं पूजन करने से सभी कष्टों का दमन होता है। शत्रुओं का नाश होता है।

गणेश पूजन विधि

  दमनक चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है। इस दिन प्रात:काल उठते हू भगवान श्री गणेश जी का स्मरण करना चाहिए और उनके 11 नामों का स्मरण अवश्य करें। एकदंत, गजकर्ण, लंबोदर, कपिल, गजानन, विकट, विघ्नविनाशक, विनायक, भालचन्द्र, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष. भगवान के नाम स्मरण के पश्चात स्नान इत्यादि कार्यों से निवृत होकर पूजन का आरंभ करना चाहिए।

  भगवान गणेश जी के सम्मुख बैठ कर ध्यान करें और पुष्प, रोली ,अक्षत आदि चीजों से पूजन करें और विशेष रूप से सिन्दूर चढ़ाएं तथा दूर्बा अर्पित करनी चाहिए। गणेश जी को लड्डू प्रिय हैं उन्हें यह चढ़ाने चाहिये। गणेश जी के मंत्र ॐ चतुराय नम: , ॐ गजाननाय नम: , ॐ विघ्रराजाय नम: ॐ प्रसन्नात्मने नम: का जाप करना चाहिए।

  गणेश जी की मूर्ती को स्नान कराना चाहिये। गंगाजल और पंचामृत से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान करवाना चाहिये। इसके बाद मंदिर में मूर्ति को स्थापित करना चाहिये। श्रद्धा पूर्वक भगवान के समक्ष पुष्प चढ़ाने चाहिये। चन्दन, रोली, सिन्दूर,अक्षत से भगवान का तिलक करना चाहिये। फूल माला पहनानी चाहिये। आभूषण एवं सुगन्धित पदार्थ अर्पित करने चाहिये। धूपबत्ती, कपूर, दीपक जलाने चाहिये। भगवान की कथा करनी चाहिये और उसके बाद आरती करके पूजन संपन्न करना चाहिये। आरती पश्चात भगवान को भोग लगाएं और अपने द्वारा भगवान से घर परिव एवं संसार के कल्याण की कामना करनी चाहिये।

दमनक चतुर्थी की कथा

  दमनक चतुर्थी से जुड़ी एक प्राचीन कथा भी है। इस कथा अनुसार एक नगर में राजा राज्य करता था। राजा के दो पत्नियां थी और उन दोनों के एक-एक पुत्र भी थे। एक रानि के पुत्र का नाम गणेश था और दूसरी रानी के पुत्र का नाम दमनक था। दोनों बच्चों का बहुत अच्छे से लालन-पालन होता है। परंतु एक प्रकार का अंतर दोनों के साथ रहता था। जब गणेश अपने ननिहाल जाता था तो उसके ननिहाल में सभी उसे बहुत प्रेम करते थे और उसका बहुत ख्याल रखा जाता था। लेकिन दूसरी ओर दमनक जब भी अपने ननिहाल जाता थो उसको वहां पर प्रेम नहीं मिलता था, उसके मामा और मामियां उससे घर के काम करवाते और उसके साथ बुरा व्यवहार किया करते थे।

  जब दोनों बच्चे अपने ननिहाल से घर वापिस आते तब गणेश तो अपने साथ ढेर सारा सामान लाता था पर दमनक को उसके ननिहाल से कुछ भी नहीं मिलता था। वह खालिहाथ ही लौट आता था। इसी प्रकार दोनों अपने सुख दुख को भोगते हुए बड़े होते हैं। दोनों का विवाह होता है और दोनों अपनी बहुओं के साथ अपने-अपने ससुराल जाते हैं। गणेश के ससुराल में उसका बहुत सम्मान होता है और उसे बहुत से पकवान एवं मिठाइयां खिलाई जाती हैं।

  दमनक जब अपने ससुराल जाता, तब उसके ससुराल वाले उसकी कोई खास खातिरदारी नहीं करते हैं और उसे सोने के लिए भी स्थान नहीं देते हैं और बहाने से उसे घोड़ों के सोने की जगह पर जाकर सोने को कहते हैं।

  गणेश अपने ससुराल से तो बहुत कुछ सामान लेकर आता है लेकिन दमनक खालीहाथ ही वापिस आता है उसे कुछ भी नहीं मिलता है। उन दोनों की स्थिति को बुढिया को पता थी क्योंकि वह उन्हें बचपन से देखती आ रही थी। बुढि़या को दमनक की स्थिति पर बहुत दया आती थी वह इससे दुखी होती थी। एक बार शाम के समय भगवन शिव और माता पार्वती संसार की दुख सुख को जानने के लिए पृथ्वी पर आते हैं, तो वह बुढि़या उनके मार्ग में आकर उन्के सामने हाथ जोड़ कर खड़ी हो जाती है। बुढि़या गणेश और दमनक के बारे में भगवान को सारा किस्सा बता देती है। वह भगवन से पूछती है की आखिर क्यों बचपन से ही कभी भी दमनक को अपने ननिहाल से सुख नहीं मिल पाया और अब युवा अवस्था में उसे ससुराल पक्ष से भी तिरस्कार ही सहन करना पड़ रहा है।

  भगवान शिव तब उन्हें बताते हैं कि गणेश ने पिछले जन्म में जो ननिहाल से लेकर आता था उसे वह वापिस भी उन्हें कर देता था। किसीन भी तरह से या फिर मामा-मामी की संतानों को कुछ न कुछ देकर वापिस कर देता था। इसी तरह से ससुराल में भी उसने जो अपने पुर्व जन्म में लिया था वह उसने सभी कुछ वापिस भी दे दिया था। इसी कारण उसे आज भी अपने इस जन्म में अपने ननिहल ओर ससुरल पक्ष से बहुत सारा आदर और सम्मान प्राप्त होता है।

  दूसरी ओर दमनक अपने पूर्व जन्म में जो भी अपने ननिहाल व ससुराल पक्ष से पाता है उसको कभी वापिस नहीं करता था। किसी न किसी कारण से या अपने काम काज के चलते वह उनको कुछ भी नही दे पाया ऎसे में इस जन्म में उसे ननिहाल और ससुराल पक्ष से कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ और उसके हर जग अपेक्षा ही होती रही है।

  हमे हमेशा किसी से प्राप्त हुई वस्तु को अवश्य लौटाने की कोशिश जरुर करनी चाहिए किसी का हक या कोई भी वस्तु नहीं लेनी चाहिए। यदि किसी से प्रेम वश प्राप्त भी हो तो कोशिश करनी चाहिए की उसे किसी न किसी रुप में वापिस किया जा सके। भाई से प्राप्त हुई वस्तु को उसकी संतानों को, मामा से खाने पर मामा की संतानों को वह लौटा देना चाहिये, अगर ससुराल से कोई वस्तु खाते हैं तो उसे साले की संतान को लौटा देना चाहिये क्योंकि जिसका जो भी खाया है, उसको लौटा देने पर दोबारा और दुगना मिलता है। अगर वापिस किया जाए तो उसका भुगतान करना पड़ता है।

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भागवत दर्शन: दमनक चतुर्थी व्रत
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