धर्म के 10 लक्षण हैं -
धृतिक्षमः दमोस्तेयः शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥
(मनुस्मृति)
अर्थात् - धैर्य, क्षमा, इन्द्रिय संयम, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य तथा क्रोध न करना, ये धर्म के दश लक्षण हैं।
1. धैर्य
मनुष्य का जो पहला धर्म है, वह अपने धैर्य को कायम रखना है। किसी भी हालत में अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए।
2. क्षमा
धर्म का दूसरा लक्षण है क्षमा। क्षमा समर्थ पुरुष के भीतर रहती हैं। किसीने गलती की और हम सोचने लगें कि इसका क्या करें ? तो यह हमारी मजबूरी हैं। दण्ड देने का सामथ्र्य अपने अन्दर रहने पर भी हम चाहें तो उसको क्षमा कर सकते हैं।
3. दम
धर्म का तीसरा लक्षण है दम, अर्थ यही कि उत्तेजना का प्रसंग आने पर भी उत्तेजित नहीं होना।हमें उत्तेजित करनेवाले लोग तो बहुत मिलते हैं, लेकिन हमारे साथ वास्तविक सहृदयता प्रकट करनेवाले बहुत कम हैं।
4. अस्तेय
चोरी न करना।
5. शौच अर्थात् पवित्रता
हम जब प्रातःकाल उठते हैं। उस समय यदि नित्यकर्म आवश्यक हो, लघुशंका-शौच जाना आवश्यक हो तब तो जायें और न जाना हो तो थोड़ी देर बैठकर उस ब्राह्ममुहूर्त का सदुपयोग करें। सूर्योदय से पहले उठें और उठकर पवित्र चिन्तन करें।
6. इन्द्रियनिग्रह
धर्म की छठी भूमिका है इन्द्रियनिग्रह, इन्द्रियों में पर संयम चाहिए। जैसे घोड़े की बागडोर अपने हाथ में रखते हैं, वैसे ही इन्द्रियों की बागडोर हमारे हाथ में होनी चाहिए।
7. बुद्धि
धर्म का सातवाँ लक्षण है बुद्धि । एक मनुष्य के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी बुद्धि को छोड़े नहीं।
8. विद्या
धर्म का आठवाँ लक्षण है विद्या। बुद्धि ऐसी चीज है जिसको हम लोगों सीख लेते हैं किंतु विद्या बुद्धि से अलग है।जो बात हम अपनी बुद्धि से नहीं जान पाते, उसका ज्ञान देने के लिए विद्या होती हैं।
9. सत्य
धर्म का नौवाँ लक्षण है सत्य। सत्य बोलने में हमारा एक शाश्वत संबंध निहित रहता हैं।
10. अक्रोध
धर्म का १०वाँ लक्षण है अक्रोध अर्थात् क्रोध न करना। हम हमेशा क्रोध में ही रहेंगे यह नियम कोई नहीं ले सकता परंतु अहिंसा का नियम ले तो वह शाश्वत हो सकता हैं।