इसी दिन राधे रानी जी ने भगवान श्रीकृष्णजी से पहली बार खेली थी गुलाल की होली। इस खास अवसर पर धन की देवी मां लक्ष्मीजी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, रंग पंचमी के दिन भगवान श्री कृष्ण जी ने राधा रानी जी के संग होली खेली थी। इसी वजह से इस दिन भगवान श्री कृष्ण जी और राधा रानी जी को गुलाल लगाया जाता है।
पौराणिक कथा
पहली बार नंदगाँव बरसाने की लठामार होली के बाद जब राधे रानी जी व श्रीकृष्ण जी पहली बार ब्रज के गोवर्धन के समीप तलहटी में मिले तो राधे रानी जी ने भगवान जी से शिकायत की, कि "कान्हा ! समस्त ब्रज के ब्रजवासियों ने तो होली खेल ली।मैं तो अपने मायके बरसाना में थी तो वहां तो आप से होली खेल नहीं सकती थी। इसलिये मुझे तो आपसे होली खेलनी है।"
कान्हा जी ने कहा कि क्यों नहीं राधे आओ हम इस सरोवर के पास चलकर होली खेलते हैं। सरोवर में जाकर भगवान जी ने वहां की रज से गुलाल प्रकट किया एवं पहली बार राधे जी को गुलाल दिया और राधे रानी जी ने श्रीकृष्णजी को पहली बार गुलाल लगाकर होली खेली। जिस सरोवर की मिट्टी से गुलाल प्रकट किया उस कुंड का नाम गुलाल कुंड पड़ गया जो आज भी विद्यमान है।
जब वे आपस मे होली खेल रहे थे तो उनकी इस दिव्य लीला को देखने सभी देवी देवता प्रकट हो गए एवं उनके साथ होली खेलने में आनंद लेने लगे। गांठ बांधकर खेली गई थी होली इसलिये गांव का नाम पड़ गया गाँठोली। तभी सखियों व ग्वाल बालों ने भगवान जी एवं राधे रानी जी के दुपट्टे में आपस मे गांठ बांध दी । और दोनों गांठ बांधकर होली खेलने लगे। इसलिए उस स्थान का नाम गाँठोली पड़ गया जो आज भी विद्यमान है।
आज भी विद्यमान है दिव्य वृक्ष
यहां एक ही जड़ से दो रँग की लताओं के वृक्ष हैं जो एक श्याम रँग का है व दूसरा गौरवर्ण का है।ये आपस में एक दूसरे से लिपटे हुए हैं।
यहां पूरे साल खेली जाती है गुलाल की होली
आज भी यहां पूरे साल होली खेली जाती है।भगवान जी के भक्त इस स्थान पर जाकर गुलाल की होली खेलते हैं एवं दिव्य वृक्ष के दर्शन करते हैं।
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