सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा॥

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  जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि हैं, जिस के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उन का नाम 'राम' है, जो सुख का भवन और सम्पूर्ण लोकों...

  जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि हैं, जिस के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उन का नाम 'राम' है, जो सुख का भवन और सम्पूर्ण लोकों को शांति देने वाला है॥

  रम् का अर्थ है रमना या समा जाना और घम का अर्थ है ब्रह्मांड का खाली स्थान। इस तरह राम का अर्थ है सकल ब्रह्मांड में निहित या रमा हुआ तत्व यानी चराचर में विराजमान स्वयं ब्रह्म। शास्त्रों में लिखा है —रमन्ते योगिनः यस्मिन् स राम इति उच्यते। योगी ध्यान में जिस शून्य में रमते हैं उसे राम कहते हैं।

  'रम्' धातु में 'घञ्' प्रत्यय के योग से 'राम' शब्द निष्पन्न होता है। 'रम्' धातु का अर्थ रमण (निवास, विहार) करने से सम्बद्ध है। वे प्राणीमात्र के हृदय में 'रमण' (निवास) करते हैं, इसलिए 'राम' हैं तथा भक्तजन उनमें 'रमण' करते (ध्याननिष्ठ होते) हैं, इसलिए भी वे 'राम' हैं । रमते कणे कणे इति रामः।

  राग-विराग व अनुराग मानव अंत:करण के पहलू हैं। राग का मतलब है लगाव, विराग का मतलब है अलगाव अर्थात संसारी व्यक्ति, वस्तु में या तो हमें लगाव होता है या उससे हमारा विलगाव होता है। इन दोनों स्थितियों में रहने वाला मनुष्य परमात्मा की प्राप्ति नहीं कर सकता। ईश्वर तो अनुराग से मिलता है। अनुराग का मतलब लगाव-विलगाव के मध्य की स्थिति।

अनन्यचेता: सततं यो मां स्मरति नित्यश:।

तस्याहं सुगम्य: पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन:।।

  उन योगियों के लिए जो सदैव अनन्य भक्ति से मेरा चिंतन करते हैं, मुझमें निरंतर तल्लीन रहने के कारण मैं आसानी से प्राप्त हो सकता हूं।

  जब राग व वैराग्य दोनों का सामंजस्य ठीक ठाक रहेगा तो समझो हम सिद्ध हुए और परमात्मा का सच्चा सुख हमें मिला। संसार दु:खालय है और दु:खालय में सुख की खोज अल्पज्ञता का द्योतक है। सुखधाम तो राम हैं। उन्हीं से ही सच्चा सुख प्राप्त हो सकता है। जहां अंत:करण में राम मिलते हैं वहीं अंत:करण में रावण मिलता है। राग के कारण रावण उत्पन्न होता है जो दु:ख व विनाश का कारण है। धर्म कार्य में बाधक बनने वाला रावण बनता है तो वहीं शिव के अति निकट रहने वाले रूद्रगण भी नारद श्राप से रावण बनते हैं।

अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव।

मद्रथमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि।।

  जो लोग लगातार भगवान को याद नहीं कर सकते, उन्हें बस उनके लिए काम करने का अभ्यास करना चाहिए। वे जो भी कार्य करें, उन्हें यह इरादा रखना चाहिए कि वे इसे भगवान की प्रसन्नता के लिए कर रहे हैं।

 पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं।

 यह एक बहुत ही प्रचलित लोकोक्ति या मुहावरा है जिसका अर्थ होता है कि किसी के वर्तमान के लक्षण देख कर ही उसके भविष्य के संकेत मिल जाते हैं । भगवान राम के पैदा होते ही समझ में आने लगा था कि वो और कोई नहीं परमपिता परमेश्वर हैं ।

एक बार भूपति मन मांही ।

भै गलानि मोरे सुत नाहीं ।।

गुर गृह गयउ तुरत महिपाला।

चरन लागि करि बिनय बिसाला।

  एक बार महाराजा दशरथ के मन में ग्लानि उत्पन्न हुई कि उनके कोई पुत्र नहीं है । वह तुरंत अपने गुरु के घर गए और चरणों में प्रणाम करके गुरु से बहुत विनय की ।

  यहाँ तुलसीदास जी ग्लानि शब्द का उपयोग करते हैं चिंता का नहीं । किसी के भी अगर कोई संतान नहीं होती है तो उसे चिंता होती है कि शादी को इतना समय हो गया है या फिर मेरी अपनी इतनी उम्र हो गई लेकिन मेरे अभी तक कोई संतान नहीं है अगर कोई राजा महाराजा हो तो उसकी चिंता और बड़ी होती है कि मेरे बाद मेरा राज पाट का उत्तराधिकारी कौन होगा मेरा युवराज कौन होगा,फिर तो महाराजा दशरथ को चिंता होनी चाहिए थी लेकिन उनको ग्लानि हुई, किसी को भी ग्लानि तब ही होती है जब उसके अंदर कोई अपराध बोध होता है तो दशरथ जी से क्या कोई अपराध हुआ था ? जो उन्हे इस बात की ग्लानि हो रही थी,कि उनके अभी तक कोई संतान नहीं है ।

 राजा दशरथ को पुत्र की चिंता नहीं थी उन्हें मालूम था कि उनके यहाँ पुत्र के रूप में परमेश्वर का अवतार होना है लेकिन अभी तक भगवान प्रगट नहीं हुए हैं उनसे क्या अपराध हुआ है, उनसे क्या गल्ती हो गई है, दशरथ जी खुद महाज्ञानी और धर्मपरायण थे।

अवधपुरीं रघुकुलमनि राऊ।

बेद बिदित तेहि दसरथ नाऊँ।।

धरम धुरंधर गुननिधि ग्यानी।

हृदयँ भगति मति सारँगपानी।।

  दशरथ जी को ज्ञान था कि वो पिछले जन्म में महाराजा मनु थे उन्होने और उनकी पत्नी सतरूपा ने घोर तपस्या करके भगवान से यह वर प्राप्त किया था कि भगवान एक बार उनके यहाँ पुत्र के रूप में प्रगट होंगे, भगवान ने उन्हे वर दिया था कि जब त्रेता युग में वो दशरथ और कौसल्या के रूप में जब जन्म लेंगे तब भगवान उनके यहाँ पुत्र के रूप में प्रगट होंगे । तभी से महाराज दशरथ को उनके जन्म का इंतज़ार था लेकिन विलंब होने से उनके मन में ग्लानि उत्पन्न हो रही थी उनके अंदर अपराध बोध आ रहा था कि भगवान अपने वचन के बाद भी प्रगट नहीं हो रहे हैं तो दशरथ जी को लगा कि उनसे कहीं कोई जाने अंजाने में अपराध तो नहीं हुआ है जो भगवान प्रगट नहीं हो रहे ,इसीलिए वो तुरंत अपने गुरु के पास समस्या ले कर गए ।

  यहाँ बहुत ही ध्यान से यह समझने की बात है कि बिना गुरु के ज्ञान के,गुरु की कृपा के आपके हृदय रूपी घर में भगवान का जन्म नहीं हो सकता । आप कितने भी ज्ञानी हो, ध्यानी हो आपको भगवत प्राप्ति के लिए गुरु की शरण में जाना ही पड़ेगा, गुरु ही बता सकता है कि भगवत प्राप्ति में रुकावट कहाँ है और उसके लिए क्या उपाय क्या साधन करने होंगे।

  दशरथ महाराज के गुरु उनको उपाय बताते हैं और सिर्फ बताते ही नहीं उसके लिए साधन भी बनाते हैं । वो पुत्रकाम यज्ञ के लिए श्रंगी ऋषी को बुलाते हैं और उनसे ही पुत्रकाम यज्ञ कराते हैं । कोई भी संत महात्मा बिना किसी संत के आग्रह के आ जाये यह थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन जब गुरु की कृपा होती है तो सब साधन अपने आप बन जाते हैं । श्रिंगी ऋषी द्वारा यज्ञ किया जाता है और प्रसाद सभी रानियों को देकर उन्हे आशीर्वाद दिया जाता है । उस यज्ञ और आशीर्वाद से सभी रानी गर्भवती होती हैं ।

जा दिन तें हरि गर्भहिं आए।

सकल लोक सुख संपति छाए।।

  जिस दिन से भगवान गर्भ में आए, सभी लोकों में सुख और संपत्ति छा गई ।

  यहाँ तो पूत के पाँव पालने में भी नहीं आए सिर्फ गर्भ में आए उसी से सभी लोकों में मतलब धरती पर, आकाश में,और पाताल में संपत्ति छा गई ।

  अगर शब्दार्थ के रूप में समझें तो यही समझ में आता है कि किसी के भी जन्म से पहले उसके भाग्य के हिसाब से परिस्थितियों का निर्माण हो जाता है । अगर कोई संतान भाग्यवान है तो उसके गर्भ में आते ही उसके माता पिता के दिन फिरने लगते हैं भाग्य साथ देने लगता है जहां जो करते हैं उसमें उन्हें लाभ होने लगता है । अगर संतान का भाग्य कमजोर होता है तो उसके गर्भ में आते ही माता पिता को अचानक से दुर्भाग्य घेर लेता है वो कितने भी धनवान हों अगर संतान दुर्भाग्यशाली है तो कुछ ऐसा कुछ होगा कि वो दिनों दिन निर्धन होते जाएँगे । धन का सिर्फ एक उदाहरण लिया है संतान के गर्भ में आते ही बहुत से दुर्भाग्य घेर सकते हैं ।

  इसको अगर हम सूक्ष्मता से समझें तो समझ आएगा, चौपाई में जो तीनों लोक बताए गए हैं वो हमारे तीनों काल हैं मतलब भूतकाल,भविष्य काल और वर्तमान । जिस दिन से भगवान हमारे हृदय रूपी गर्भ में आते हैं हमारे तीनों काल सुधरने लगते हैं, भूतकाल में किए गए हमारे पाप कटने लगते हैं,वर्तमान शुद्ध होने लगता है जिससे चारों तरफ आनंद ही आनंद छा जाता है । जिस भी हृदय में भगवान का वास होता है वो सभी भविष्य की चिंताओं से मुक्त हो जाता है।

  हर सवाल का जबाब रामचरितमानस और गीता में आप कोई भी रामायण प्रसंग उठा लें आप को अपने जीवन के लिए उससे एक प्रेरणा मिलती है । रामचरितमानस की भाषा इतनी सरल है की अगर आम जनमानस ध्यान से पढे तो उसके अंदर उठने वाले हर सवाल का जबाब रामचरितमानस में मिल जाएगा । जो भी भगवान राम का भक्त नियमित रूप से रामचरितमानस का पाठ करता है उसे भगवान की कृपा निश्चित रूप से प्राप्त होती है ।

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